जुबिली न्यूज डेस्क
दुनियाभर में मानवाधिकार के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मंगलवार को चेतावनी देते हुए कहा कि दुनिया भर की दमनकारी सरकारें अभिव्यक्तिकी स्वतंत्रता और स्वतंत्र मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के लिए कोरोना वायरस को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं।
संस्था ने इस संबंध में उसने कुछ सरकारों के कदम का भी जिक्र भी किया। एमनेस्टी ने कहा कि कई सरकारों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को और प्रतिबंधित करने के अवसर के रूप में कोरोना महामारी का इस्तेमाल किया है। इसने गलत सूचना के प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका का भी हवाला दिया।
एमनेस्टी की रिपोर्ट का नाम “साइलेंट एंड मिस्ड इनफॉर्मेड: फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन इन डेंजर ड्यूरिंग कोविड-19” है। अधिकार संस्था ने अपनी रिपोर्ट में दुनिया भर की सरकारों द्वारा घोषित उपायों का हवाला दिया, जिन्होंने 2020 के बाद से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर “अभूतपूर्व” अंकुश लगाया।
एमनेस्टी में अनुसंधान वकालत और नीति के वरिष्ठ निदेशक रजत खोसला ने कहा, “मीडिया चैनलों को लक्षित करने का प्रयास किया गया है, सोशल मीडिया को सेंसर किया गया और कई मीडिया आउटलेट बंद कर दिए गए हैं।” साथ ही उन्होंने कहा उचित जानकारी के अभाव में कई लोगों की जान भी गई होगी।
अपनी रिपोर्ट में एमनेस्टी ने कहा, “जिन सरकारों ने लंबे समय तक सार्वजनिक क्षेत्र में अत्यधिक प्रतिबंधात्मक कानून के साथ साझा किए जाने पर कड़ा नियंत्रण रखा है, उन्होंने कोरोना महामारी का इस्तेमाल आलोचना, बहस और सूचनाओं को साझा करने के लिए कानूनों को लागू करने के लिए किया है।”
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रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, ” कुछ अन्य सरकारों ने कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न स्थिति और चिंताओं का उपयोग आपातकालीन उपायों को अपनाने और नए कानून बनाने के लिए किया है जो न केवल अनुपातहीन हैं बल्कि गलत सूचना जैसे मुद्दे भी हैं। इससे निपटने में भी अप्रभावी साबित हुए हैं।”
सोशल मीडिया और फेक न्यूज
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में सोशल मीडिया पर भी प्रकाश डाला कि कैसे वे गलत सूचना के प्रसार को सुविधाजनक बनाते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार इसका कारण यह है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट को इस तरह से बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है कि यह यूजर्स का ध्यान खींच सके और उन्हें जोड़े रखें।
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इस संबंध में वे झूठी और भ्रामक जानकारी के प्रसार को रोकने के लिए लगन से काम नहीं करते हैं।
मानवाधिकार संस्था ने अपनी 38 पन्नों की रिपोर्ट में कहा,”गलत सूचनाओं का हमला… अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वास्थ्य के अधिकारों के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।”