Friday - 25 October 2024 - 5:43 PM

क्या ट्रम्प को सिर्फ चुनाव की चिंता है ?

सुरेंद्र दुबे

अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर व समृद्ध देश है। इस लिहाज से अमेरिका का राष्ट्रपति दुनिया का सबसे शक्तिशाली नेता समझा जाता है। पर अपनी ताकत व ऐश्वर्य के बल पर इतराने वाले लोगों को यह नहीं मालूम कि प्रकृति के कहर के आगे हम लोगों की औकात कीड़ों-मकोड़ों से ज्यादा कुछ नहीं है। हम भाले ही विश्व विजय का दंभ पाल लें पर सच यही है कि वायरस से भी लड़ने लायक नहीं हैं। कोविड 19 ने पूरी दुनियां को हिलाकर रख दिया है। सबसे ज्यादा दुर्दशा सबसे ताकतवर अमेरिका की ही है।

अमेरिका में 40 हजार लोग कोरोना की चपेट में आकार अपनी जान गवां चुके है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पहले कोरोना को सीरियसली लिया ही नहीं। ठीक भी है। जब ट्रम्प साहेब बड़े-बड़े देशों को सीरियसली नहीं लेते तो कोरोना की क्या औकात। फरवरी माह में जब उन्ह कोरोना से निपटने की तैयारी करनी थी तब वह चुनाव की तैयारियों मैं लगे हुए थे। अमेरिका के लोगों के बीच शेखी बघार रहे थे। भारत जैसा देश उनके स्वागत के लिये 70 लाख लोगों से तालियां बजवाने का इंतजाम करने में लगा था। ट्रम्प को भी मालूम था और हमको भी मालूम था कि लाख पचास हजार ही लोग जुटने वाले हैं। पर ट्रम्प को झूठ बोलने की आदत है और हमे सुनने की आदत है। इसलिए हमदोनो ने बुरा नहीं माना। भारत ने भी कोरोना से निपटने के बजाय पूरी ताकत ट्रम्प की चापलूसी में लगा दी। नतीजा दोनो देशों ने भुगता। भारत ने अगर शुरआती कदम उसी समय उठा लिये होते तो आज हम कम्युनिटी संक्रमण की स्थिति में नहीं होते।अमेरिका की जो दुर्गति हुई वह सबके सामने है।

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अब ट्रम्प को आभास हो गया है कि उनके शेखचिल्लीपन के कारण पूरा देश कोरोना के आवोश में आ गया है इसलिए वह पहले चीन को इसके लिए जिम्मेदार बताते रहे और उसे धमकाते रहे। फिर जब उन्हें लगा की अकेले चीन को दोषी बताने से काम नहीं चलेगा तो उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी अमेरिका में कोरोना फैलने के लिए जिम्मेदार बताना शुरू कर दिया। ट्रम्प करते भी क्या? तोहमत लगाने के लिए कोई न कोई तो चाहिए। देखिये हमने सारा इल्जाम तब्लीगी जमात पर मढ़ दिया। मीडिया को राष्ट्र प्रेम दर्शाने पर लगा दिया। दो हफ्ते से अखंड कीर्तन जारी है। ट्रम्प साहब बड़े काबिल बनते है एक तब्लीगी जमात नहीं तलाश पाये। विदेशी चीन की आड़ में लोगों को बरगलाना चाहते है। एक हम है जो स्वदेशी माल से लोगों को बरगला रहे हैं।

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जब हमारे भक्तों ने कहां कि कुछ और मटेरियल दीजिये तो हमने रोहिग्या को ढूंढ निकाला। अब कोई संकट नहीं है । जो भी अच्छा होगा उसके लिए नेता का जयकारा लगा देंगे और जो भी बुरा होगा उसके लिए तब्लीगी जमात व रोहिंग्या को सूली पर चढ़ा देंगे। ट्रम्प ने हमारे नेता से दोस्ती जरूर की पर उससे राजनीति नहीं सीखी।

अगर सब कुछ ठीक रहा तो अमेरिका में नवम्बर में राष्ट्रपति के चुनाव होंगे। ट्रम्प परेशान है। कोरोना का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा। ट्रम्प की हालात इतनी दयनीय है कि न्यूयार्क के गवर्नर ने यहां तक तंज कर दिया कि ट्रम्प राष्ट्रपति होंगे भगवान नहीं हैं। हमारी तो भुजाएं फड़कने लगीं। गवर्नर की इतनी जुर्रत। मीडिया ने भी अपने राष्ट्रपति का सम्मान बचाने की कोशिश नहीं की। हमारे देश में ऐसा होता तो मीडिया इनसे निपट लेता। हम ऐसे ही दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी नहीं है।

ट्रम्प समझ गये हैं कि उनकी चुनावी नाव कोरोना के दलदल में फंस गयीं है। इसलिए वह हर हाल मैं लॉकडाउन खत्म करवा कर देश में बंद पड़े उद्योग शुरू करवाना चाहते है ताकि एक संदेश जाय कि कोरोना के तांडव के बीच भी ट्रम्प ने अमेरिका को गरीब नही होने दिया। उसकी रईसी और दादा गिरी अभी भी कायम है। ट्रम्प यह भी संदेश देना चाहते हैं कि बुरी से बुरी स्थिति में भी वह अमेरिका का जलवा कायम रख सकते हैं। इसीलिए वह कोरोना की विभीषिका से लडऩे के बजाय अमेरिका की माली हालात सुधारने के लिए ज्यादा फिक्रमंद हैं।

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