जुबिली न्यूज डेस्क
पिछले दिनों महाराष्ट्र पुलिस ने खुलासा किया था कि टीआरपी में धोखाधड़ी का खुलासा किया है। उसके बाद बीते दिनों उत्तर प्रदेश में “अज्ञात” चैनलों के खिलाफ टीआरपी की कथित धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया है। फिलहाल अब यह मामला सीबीआई के पाले में चला गया है।
टीआरपी धोखाड़ी मामले की जांच अब सीबीआई करेगी, लेकिन बुधवार को उद्धव सरकार ने सीबीआई को जांच के लिए दी गई ‘आम सहमति’ वापस ले ली। अब सवाल उठ रहा है कि आखिर सरकार ने ऐसा क्यों किया?
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उनके आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि यूपी में सीबीआई के इस कदम के बाद महाराष्ट्र सरकार में आशंका है कि एजेंसी यहां भी टीआरपी से जुड़े मामलों की जांच कर सकती है।
सूत्रों का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार नहीं चाहती कि टीआरपी मामले की जांच सीबीआई करे। इसलिए ठाकरे सरकार का यह निर्णय टीआरपी स्कैम जांच के बीच में सीबीआई के दखल के तौर पर देखा जा रहा है।
फिलहाल महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले का मतलब है कि सीबीआई को अब महाराष्ट्र में पंजीकृत होने वाले हर मामले के लिए राज्य सरकार से सहमति लेनी होगी। केंद्रीय एजेंसी को अब महाराष्ट्र में किसी मामले की जांच बिना सरकार की अनुमति लिए नहीं कर सकेगी।
महाराष्ट्र गृह विभाग द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6 द्वारा प्रदान की गई शक्तियों के अभ्यास में, महाराष्ट्र सरकार ने दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिशमेंट के सदस्यों को सरकार के आदेश पर दी गई सहमति को वापस ले लिया है।
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मालूम हो कि मुंबई पुलिस ने 6 अक्टूबर को एफआईआर दर्ज करने के बाद, आरोप लगाया था कि रिपब्लिक टीवी सहित तीन चैनल टीआरपी में हेरफेर करने में शामिल हैं।
हालांकि रिपब्लिक टीवी ने बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां उनके वकील हरीश साल्वे ने मामले को सीबीआई को सौंपने की बात कही थी।
इस घोटाले में छह लोगों को मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जिसमें कथित तौर पर उन घरों को भी शामिल किया गया जहां चैनलों को उच्च रेटिंग देने के लिए सैंपले सेट लगाए गए थे।
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मालूम हो कि मोदी सरकार और भाजपा दोनों चैनलों के समर्थन में सामने आए हैं और मुंबई पुलिस की इस कार्रवाई को प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया है।
इससे पहले, सीबीआई ने सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की भी जांच भी मुंबई पुलिस से ले ली थी। इस मामले में बिहार पुलिस ने मामले में एफआईआर दर्ज कर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जिसके बाद दोनों राज्यों की पुलिस के बीच जमकर बयानबाजी देखने को मिली थी। बाद में कोर्ट ने यह मामला सीबीआई को सौंप दिया था।
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