न्यूज डेस्क
पश्चिम बंगाल इन दिनों एक नई किस्म की राजनीति की प्रयोगशाला बना हुआ है। चंद वर्षों में यहां की राजनीति की परिभाषा बदल गई है। लगभग सभी राजनीतिक दल विभिन्न मजहब के लोगों को लुभाने में काफी समय बिता रहे हैं। टीएमसी हो या बीजेपी, कांग्रेस हो या लेफ्ट कोई पीछे नहीं है। लोकसभा चुनाव 2019 में भी ऐसा ही माहौल है।
पश्चिम बंगाल में ममता को चुनौती देने वाली बीजेपी ने यहां का सियासी समीकरण बदल दिया है। यहां हिंदू-मुस्लिम, राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे हैं। बीजेपी की सक्रियता ने 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल को राजनीति का केन्द्र बिंदु बना दिया है।
बीजेपी को उम्मीद है कि बंगाल में राजनीति परिवर्तन का फायदा उसे होगा और इस चुनाव में उसकी संख्या में भी इजाफा होगा। पश्चिम बंगाल में बीजेपी अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश कर रही है। जानकारों की माने तो पीएम मोदी और अमित शाह लेफ्ट के वोट बैंक पर नजर बनाए हुए है, जिसकी अंदाजा टीएमसी नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी हो गया है।
लेफ्ट और अपना वोट बैंक बीजेपी की ओर न खिसक जाए इस बात को लेकर गंभीर ममता, शाह और मोदी को कड़ी टक्कर दे रही हैं। जानकार भी कहते हैं कि 2014 के आम चुनाव में लेफ्ट को जो 30 प्रतिशत वोट मिला था वो अब काफी हद तक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को शिफ्ट हो रहा है। यह तृणमूल के प्रमुख चुनौती है।
बंगाल में बीजेपी हिंदू वोटों को मजबूत करने की कोशिश कर रही है और उसकी निगाहें राज्य की उन नौ सीटें जिस पर ज्यादा संख्या में हिंदी भाषी आबादी वाले बीजेपी समर्थक रहते हैं। अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे लेफ्ट, बीजेपी को तृणमूल की तुलना में कम दुश्मन के रूप में देखते हैं, जिसने उसे सत्ता से अलग कर दिया।
दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल को 34 सीटें मिलीं जबकि बीजेपी ने 42 संसदीय क्षेत्रों में 17 फीसदी वोटों के साथ केवल 2 सीटों पर जीत हासिल की। तब सीपीएम के भी दो ही सांसद जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। लेफ्ट को जहां 2009 की तुलना में 13 सीटों का नुकसान हुआ था तो वहीं बीजेपी को एक सीट का फायदा हुआ था।
तृणमूल बंगाल में 2011 से सत्ता में है। 2014 के लोकसभा चुनाव में लेफ्ट का वोट शेयर 30 फीसदी था, जबकि भाजपा को 16 फीसदी वोट मिले थे। इसके अलावा 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की 6 फीसदी वोट की बढ़ोत्तरी हुई और पार्टी को 10 फीसदी मत मिले। बीजेपी के तीन विधायक जीतने में सफल रहे। जबकि उसके गठबंधन को 6 सीटें मिलीं। हालांकि, इससे पहले बीजेपी के एक भी विधायक नहीं थे।
इससे पहले वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मात्र 4 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन वर्ष 2018 के पंचायत चुनाव के बाद भगवा पार्टी अचानक मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई।
इस चुनाव में ममता को इस बात का भी डर है कि राज्य की उन 15 सीटों पर जहां अल्पसंख्यक एकाग्रता कम है, बीजेपी उन सीटों पर तृणमूल से ज्यादा मजबूत स्थिति बना ली है। अगर लेफ्ट का वोट बीजेपी को जाता है तो इससे उनकी बंगाली मध्यम वर्ग के बीच पकड़ और बढ़ेगी।
पश्चिम बंगाल में हो रही है प्रधानमंत्री बनने की लड़ाई
दरअसल पश्चिम बंगाल की इस बार की लड़ाई प्रधानमंत्री बनने की है। बीजेपी हिंदी पट्टी राज्यों में कम हुई सीटों की भरपाई यहां से करना चाह रही है तो वहीं ममता बनर्जी ज्यादा से ज्यादा सीट जीतकर प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रही है।
यदि तृणमूल 42 में से 35-38 सीट जीतती है तो किसी भी कीमत पर प्रधानमंत्री की कुर्सी से समझौता नहीं करेंगी। इसीलिए ममता का तेवर सातवें आसमान पर है। वह बीजेपी को उसी के तरीके से टक्कर दे रही हैं।
पश्चिम बंगाल में मोदी-शाह ने की ताबड़तोड़ रैली
42 सीटों पर पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जितना वक्त दिया उतना 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश को नहीं दिया। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तो एक साल पहले से पश्चिम बंगाल में अपनी जड़े मजबूत करने में लगे हुए थे।