न्यूज डेस्क
एक वक्त था जब गरीब सूदखोर महाजनों के यहां पैसे के लिए खेत और जेवर गिरवी में रखते थे। समय बदला तो महाजनों की प्राथमिकता भी बदल गई। अब तो आलम यह है कि ये सूदखोर महाजन गरीबों के राशन कार्ड पर भी नजर बनाए हुए हैं। ये पैसे के एवज में गरीबों का राशन कार्ड बंधक बना रहे हैं।
सूदखोर महाजनों का नेटवर्क पूरे देश में फैला हुआ है। इनकी जड़े इतनी मजबूत हो चुकी है कि इनका यह कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। सदियों से ये गरीबों का खून चूसते आ रहे है और आज भी बदस्तूर जारी है। पश्चिम बंगाल में ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है।
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पश्चिम बंगाल में झारखंड से सटे पुरुलिया जिले के गांवों से ऐसी ही चौंकाने वाली बात सामने आई है। जिले के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग महाजन से खेती और इलाज के लिए राशन कार्ड गिरवी रख कर पैसे लेते रहे हैं। यदि लॉकडाउन न होता तो शायद यह खुलासा भी नहीं होता।
कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था और इन इलाकों में सूदखोर महाजनों के जाल की पोल खोल दी है। ये महाजन राशन कार्ड के एवज में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से मिलने वाला सस्ता अनाज लेकर बेचता रहे है। महाजन की पोल उस समय खुली जब सीएम ममता बनर्जी ने लॉकडाउन की वजह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को छह महीने तक हर महीने पांच किलो चावल और पांच किलो दाल देने का ऐलान किया।
इसके बाद लॉकडाउन के दौरान सरकारी सुविधाओं से वंचित आदिवासी जब स्थानीय बीडीओ के पास पहुंचे तो इस बात का पता चला। जिला प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए संबंधित महाजनों से राशन कार्ड लेकर आदिवासियों को सौंपा। उधर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राशन के वितरण में होने वाली अनियमितताओं से नाराज होकर इसी सप्ताह खाद्य सचिव मनोज अग्रवाल को हटा कर परवेज अहमद सिद्दिकी को नया सचिव बनाया है।
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क्या है मामला
पुरुलिया जिले के झालदा ब्लॉक के सरोजमातू गांव में लगभग डेढ़ सौ परिवार रहते हैं। इन सबके राशन कार्ड महाजन के पास गिरवी रखे थे। यहां आलम यह है कि किसी का दस साल से कार्ड गिरवी है तो किसी आठ साल से।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गांव के एक बुजुर्ग गौड़ कालिंदी कहते हैं, “मैंने 10 साल पहले पत्नी के इलाज के लिए एक महाजन से 10 हजार रुपये का कर्ज लिया था। उसके बदले राशन कार्ड गिरवी रखना पड़ा था। ” दस साल बाद भी कालिंदी का दस हजार रुपए का कर्ज चुका नहीं है। इसी गांव की 70 साल की राधिका ने चार साल पहले सात हजार रुपये के लिए अपना कार्ड गिरवी रख दिया था।
वहीं झालदा के बीडीओ राजकुमार विश्वास कहते हैं, “इस मामले की जांच की जा रही है। फिलहाल महाजनों से राशन कार्ड लेकर संबंधित लोगों को सौंप दिया गया है, लेकिन दोनों पक्षों में आपसी समझौता होने की वजह से गांव वालों ने महाजन के खिलाफ कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई है।”
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सरोजमातू गांव के अलावा आसपास के और कई दर्जन गांवों में सूदखोर महाजन दस-बीस हजार के एवज में दसियों सालों से लोगों का कार्ड गिरवी रखे हुए हैं। महाजन पैसे चुकाने पर ही कार्ड लौटाता है।
वहीं समाजशास्त्रियों का कहना है कि गांव के इन आदिवासियों के पास पूंजी के नाम पर राशन कार्ड के अलावा कुछ नहीं है। इसलिए इलाज हो या बेटी की शादी, कर्ज के लिए यह कार्ड ही इनकी पूंजी है। इसे गिरवी रख कर कर्ज लेना इन इलाकों में आम बात है।
समाजशास्त्री डॉ. आर के मिश्रा कहते हैं महाजन के यहां सामान गिरवी रखकर पैसा लेना देश में आम बात है। मध्य वर्ग परिवार जिस तरह सोना रखकर कर्ज लेते हैं, उसी तरह इस इलाके के लोग राशन कार्ड गिरवी रखकर कर्ज लेते हैं। कई मामलों में तो कर्ज चुकाने में नाकाम रहने की वजह से पीढ़ी-दर-पढ़ी वह कार्ड महाजन के पास ही रहता है।
यह मामला प्रकाश में आने के बाद से पश्चिम बंगाल की सियासत में हड़कंप मच गया है। इस मामले को लेकर ऊपर से लेकर नीचे तक सक्रियता बढ़ गई है। खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक ने भी जिलाशासक व पुलिस अधीक्षक को इस मामलेे में हस्तक्षेप करने का निर्देश दिया है साथ ही जिले के बाकी अन्य गांवों में भी जांच करने को कहा है ताकि ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो।
वहीं पुरुलिया के जिलाशासक राहुल मजुमदार इस मामले में कहते हैं, “लॉकडाउन नहीं होता तो यह बात सामने ही नहीं आती। ”
मालूम हो राशन कार्ड दूसरे को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके इलाके में बरसों से यह काम चल रहा था। राशन कार्ड गिरवी रखने और उसे लेने वाले दोनों लोग समान रूप से कसूरवार हैं। आरोप मिलने पर प्रशासन कार्रवाई करेगा, लेकिन पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर करना शायद कोई नहीं चाहता। इसलिए गांव के लोगों ने अब तक महाजन के खिलाफ लिखित शिकायत नहीं की है। दूसरी ओर प्रशासन की सक्रियता से महाजनों में नाराजगी है। ये अपने पैसे को लेकर चिंतित हैं।
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