डॉ. प्रशांत राय
कोरोना महामारी से निपटने के लिए विशेषज्ञ एक बार फिर प्लाज्मा थेरपी का सहारा ले रहे हैं। प्लाज्मा थेरपी रेबीज और डिप्थीरिया जैसे इन्फेक्शन के खिलाफ प्रभावी साबित हुआ है। कोरोना की वैश्विक लड़ाई में वैज्ञानिक और डॉक्टरों को उम्मीद है कि इसके इलाज के लिए यह उपाय कारगर साबित होगा।
सौ साल से भी काफी पहले वर्ष 1880 में पहली बार प्लाज्मा थेरपी का ईजाद हुआ था। साल 1981 में इसका उपयोग रेबीज और डिप्थीरिया जैसे इन्फेक्शन के इलाज में किया गया था और यह प्रभावी साबित हुआ। इसके बाद 2002 में किया गया। 2002 में सार्स (SARS, Severe Acute Respiratory Syndrome) नाम के वायरस ने कई देशों में तबाही मचा रखी थी। इस वायरस के खात्मे के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया। बाद में 2010 में H1N1इनफ्लुएंजा के दौरान किया गया । इतना ही नहीं इबोला और इनफ्लुएंजा में भी इसका इस्तेमाल हो चुका है।
कोरोना वायरस का अभी तक कोई स्थायी इलाज नहीं मिल पाया है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इसका टीका बनाने में लगे हैं, लेकिन साथ में कई देशों में प्लाज्मा थेरेपी के जरिये मरीजों का इलाज किया जा रहा है। भारत के अलावा अमेरिका, स्पेन, दक्षिण कोरिया, इटली, टर्की और चीन समेत कई देशों में इसका इस्तेमाल हो रहा है।
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चीन में जब कोरोना वायरस का मामला तेजी से बढऩे लगा था तब इसके इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल शुरू किया गया था। चीन में जहां कोरोना का मामला बढ़ा, वहां पर भी प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया। वहां भी रिजल्ट सकारात्मक रिजल्ट आए।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने हाल ही में कोरोना वायरस के लिए प्लाज्मा ट्रीटमेंट के क्लिनिकल ट्रायल के लिए मंजूरी दी है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस थेरेपी से गंभीर रूप से बीमार रोगियों को ठीक करने में मदद मिलेगी। दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में मरीजों पर प्लाज्मा का ट्रायल शुरू किया गया है। दिल्ली में चार मरीजों का प्लाज्मा टेस्ट हुआ और इसके सकारात्मक परिणाम भी आये हैं।
कैसे होगा इलाज
प्लाज्मा थेरेपी में कोरोना संक्रमण से मुक्त हो चुके व्यक्तियों के खून से प्लाज्मा निकालकर दूसरे कोरोना वायरस संक्रमित रोगी को चढ़ाया जाता है। दरअसल संक्रमण से ठीक हुए व्यक्ति के शरीर में उस वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बन जाती है और 3 हफ्ते बाद उसे प्लाज्मा के रूप में किसी संक्रमित व्यक्ति को दिया जा सकता है ताकि उसके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढऩे लगे।
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इसको अगर मोटे तौर पर कहे तो ये कोरोना से बीमार व्यक्ति में ऐंटीबॉडी का निर्माण करना है या फिर इम्यूनिटी को बढ़ाना भी कह सकते है, यानी ये संक्रमित की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। स्वस्थ हो चुके मरीज के शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है जो उस वायरस से लडऩे के लिए होती है। एंटीबॉडी ऐसे प्रोटीन होते हैं जो इस वायरस को डिस्ट्रॉय या खत्म कर सकते हैं। वो एंटीबॉडी अगर प्लाज्मा के जरिए किसी मरीज को चढ़ाएं तो वह एंटीबॉडी अभी जो मरीज है, उसके शरीर में मौजूद वायरस को मार सकती है।
किसी एक मरीज को ठीक करने के लिए लगभग 200-250 मिली प्लाज्मा की आवश्यकता होती है। इसको ट्रांसफर करने में करीब 60-90 मिनट लगतर है। लेकिन यह एक अस्थाई इलाज है। इसकी जरूरत बार बार पड़ सकती है। इसमें व्यक्ति 3 से 7 दिन में ठीक हो सकता है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि ठीक हुए मरीज और प्लाज्मा लेने के बीच कम से कम 28 दिनों का अंतराल होना चाहिए तथा सामान्य तौर पर वायरस से गंभीर रूप से प्रभावित और श्वसन संक्रमण से पीडि़त मरीजों को प्लाज्मा दिया जा सकता है।
हालांकि प्लाज्मा ट्रीटमेंट का नकारात्मक पक्ष यह है कि यह थेरेपी थोड़ी महंगी और सीमित है। एक ठीक हुए मरीज के एकबार के प्लाज्मा दान से उपचार की केवल दो खुराक मिल सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस थेरेपी को बेहतर माना है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग एक ‘बहुत ही मान्य’ दृष्टिकोण है, लेकिन परिणाम को अधिकतम करने के लिए समय महत्वपूर्ण है।
चीनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य कमीशन के एक अधिकारी गुओ यानहोंग ने फरवरी के आखिर में इसके प्रयोग के बारे में कहा था कि अब तक ये सुरक्षित और कारगर साबित हुई है। उस समय इस पर दुनिया भर में बहस हुई थी कि क्या कोरोना के बढ़ते कदम रोकने में कॉन्वालेसंट प्लाज्मा थेरेपी को बेहद महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है? दुनिया के तमाम वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने कहा था कि “आपको समझना होगा कि टीका और प्लाज्मा थेरेपी दो अलग-अलग चीजें हैं। प्लाज्मा थेरेपी से इलाज तो हो रहा है लेकिन लंबे वक्त के लिए हमें कोरोना से बचने के लिए टीके की जरूरत होगी। प्लाज्मा थेरपी, टीके की जगह नहीं ले सकता।
दुनिया भर के डॉक्टरों और विशेषज्ञों को हाल-फिलहाल प्लाज्मा थेरपी से ही उम्मीद हैं। उनका कहना है कि कोविड-19 के इलाज के लिए अभी तक एंटी-वायरल ड्रग नहीं हैं। ऐसे में जब तक इसके लिए एंटी-वायरल नहीं मिल जाता तब तक उम्मीद की हलकी किरण प्लाज्मा थेरेपी ही है। इसके लिए जरूरी है कि बड़े पैमाने पर प्लाज्मा डोनर आगे आए, ताकि इससे कोरोना मरीजों को ठीक किया जा सके।
(डॉ. प्रशांत राय, सीनियर रिचर्सर हैं। वह देश-विदेश के कई जर्नल में नियमित लिखते हैं।)
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