कुलपतियों की मनमानी पर राज्य सरकार की स्थिति मूकदर्शक की..
दक्षिण भारतीय राज्यों के मुकाबले उत्तर भारतीय राज्यों में उच्च शिक्षा की गति रसातल की ओर है। भारत जोड़ो यात्रा के नायक राहुल गांधी भी बेरोजगारी के पीछे शैक्षिक कारणों को गिना रहे हैं। देश की नई शिक्षा नीति को लागू हुए डेढ़ वर्ष बीत गए है और अभी तक इसकी गुत्थियां सुलझने का नाम नहीं ले रही हैं। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मामले में तो स्थिति बेहद गंभीर है।
राज्य विश्वविद्यालयों में पठन पाठन ठप्प है। कुलपतियों का काम एक खास विचारधारा के तले दीक्षांत, नैक, निर्माण, नियुक्ति कराना रह गया है। राज्य सरकार की स्थिति मूकदर्शक की है। नई शिक्षा नीति और उत्तर प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों का बेड़ा गर्क कैसे हो रहा है।
यह जानने के लिए दो तीन उदाहरण काफी हैं। कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति पर भ्रष्टाचार के बेहद गंभीर आरोप हैं। योगी सरकार ने शिकायत पर एसटीएफ जांच कराई। सूत्र बताते हैं कि भ्रष्ट कुलपति को संरक्षण देने में कई बड़े नाम शामिल हैं। एसटीएफ के खुलासे के पहले ही जांच सीबीआई को सौंप दी गई। इतना होने के बाद भी राज्यपाल ने कुलपति को पद से नहीं हटाया है।
रामनगरी के डाक्टर राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय की तो महिमा ही निराली है। आर्थिक घोटाला, अवैध नियुक्तियों के चलते दागी कुलपति से इस्तीफा तो ले लिया गया लेकिन अन्य आरोपियों को बख्श दिया गया। सूत्रों के अनुसार नियुक्तियों में अधिकांश एक संगठन से पोषित हैं। नई कुलपति ने भी अपने निर्णयों से शिक्षक संघ को आंदोलित कर दिया है। यहां पठन पाठन की स्थिति बेहद गंभीर है। वर्ष भर बिना पढ़ाई के परीक्षाओं का ही दौर चलता है।
अवध विश्वविद्यालय के द्वितीय सेमेस्टर का रिजल्ट पिछले माह घोषित हुआ है और इस माह के तृतीय सप्ताह से तृतीय सेमेस्टर की परीक्षाएं प्रस्तावित हो गई है । अब शिक्षक को अपना पाठ्यक्रम भी पूरा करना है, मिड सेमेस्टर की परीक्षाएं लेनी है, उन उत्तर पुस्तिकाओं का मुफ्त में मूल्यांकन भी करना है। विश्वविद्यालयीय परीक्षा भी शुचितापूर्ण करवाना है।अब यह समझ में नहीं आ रहा है कि विश्वविद्यालय, शिक्षकों को शिक्षक ही समझता है या फिर अफलातून। प्राचार्यों के आदेश पर आदेश अलग से आते हैं।
अवध विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमानी से शिक्षक संघ आंदोलन की राह पर है। अध्यक्ष का कहना है कि शिक्षक संघ की स्थापना के साथ ही अध्यक्ष व महामंत्री परीक्षा समिति के पदेन सदस्य रहे हैं । चालीस वर्षों से अधिक समय से चली आ रही परंपरा को एकाधिकार वाद के तहत हटा दिया गया है।
परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन शिक्षकों द्वारा संचालित पूर्व व्यवस्था को मनमाने ढंग से हटा दिया गया है। क्रीड़ा शुल्क में विश्वविद्यालय महाविद्यालय का 70 :30 का अनुपात मनमाने ढंग से तोड़ मरोड़ कर 50-50 कर दिया गया है। प्राप्तांक शुल्क से महाविद्यालयों के प्राचार्य व नानटीचिंग को मिलने वाला 25% अंशदान समाप्त कर दिया गया है।
शिक्षकों द्वारा किए गए कार्य -पेपर सेटिंग ,मॉडरेशन, मूल्यांकन आदि का समयबद्ध भुगतान नहीं हो रहा। वर्ष पर्यंत चलने वाली परीक्षाओं से शिक्षण कार्य प्रभावित होता है।महाविद्यालयों पर केंद्र जबरन थोपें जा रहे हैं। इस संबंध में पूर्व कुलपति द्वारा दिए गए लिखित समझौते का अनुपालन नहीं हो रहा। परिनियमवाली में दी गई व्यवस्था के बावजूद कृषि संकाय की बीओएस आज तक गठित नहीं की गई है।
महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय आज़मगढ़ की पहली पीएचडी प्रवेश परीक्षा ही विवादों में घिर गई है। यहां पीएचडी प्रवेश परीक्षा के कोआर्डिनेटर की पुत्री ने क्वालीफाई किया।नियम है कि परीक्षा में कोई निकट संबंधी या पाल्य नहीं प्रतिभाग नहीं कर सकता। परीक्षा के तीन दिन बाद कुलपति को यह पता चलता है तो कोआर्डिनेटर की पुत्री का परिणाम निरस्त कर दिया गया लेकिन कोआर्डिनेटर बने रहेंगे। कोआर्डिनेटर का कहना है कि उन्हें नहीं मालूम था कि उसकी बेटी ने भी फार्म भर दिया है।बाकी अब आप तय करें बेटी का दोष है या पिता का?
नई शिक्षा नीति में छात्र और शिक्षक पिस रहे हैं। प्रशासन मजे ले रहा। विश्वविद्यालयों में मेजर विषय और माइनर विषय के पाठ्यक्रम में कोई अंतर नहीं है और एक ही माइनर विषय दो सेमेस्टर में पढ़ना/ पढ़ाना है। परास्नातक के सभी विषयों के पाठ्यक्रम भी अभी तक बनकर विश्वविद्यालय के वेब पोर्टल पर अपलोड नहीं हो पाए हैं और परीक्षाएं होने के लिए तैयार है। शिक्षक डाक्टर जनमेजय तिवारी का कहना है कि अब अंदाजा यह लगाना है कि एन ई पी नई शिक्षा नीति है या फिर नो एजुकेशन नीति।
कानपुर, अवध,आजमगढ़ के विश्वविद्यालयों से यूपी के राज्य विश्वविद्यालयों की स्थिति को समझा जा सकता है। कहने को तो योगी सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री भी हैं लेकिन उनके आदेशों का पालन ही नहीं होता है। कुलपतियों की जवाबदेही राजभवन के प्रति है। कुलपतियों की नियुक्तियों में उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय 1973 के मानकों को दरकिनार कर दिया जाता है। ज्ञान देने वाले शिक्षा के मंदिर लूट के केंद्र में तब्दील हो रहे हैं।
बढ़ रही बेरोजगारी और शिक्षा के वास्तविक अर्थ पर भारत जोड़ो यात्रा के नायक राहुल गांधी की चिंता वाजिब है। यात्रा के दौरान नौजवानों से बातचीत के आधार पर शिक्षा को लेकर जो निष्कर्ष निकला वह बेहद गंभीर है। हमारे देश की शिक्षा अभी भी रोजगार देने के दायरे से बाहर नहीं निकल सकी है। निजी शैक्षणिक संस्थानों ने तो रोजगारपरक शिक्षा का ढ़िढोरा पीट रखा है। विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम भी इसी दृष्टिकोण से बनाए जा रहे हैं।
ये भी पढ़ें-राहुल के साथ चले मानवाधिकारवादी, बताया क्यों जरूरी है राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’
महानगर हों या छोटे शहर, गारंटी देने के बड़े बड़े होर्डिंग्स से पटे पड़े हैं। मार्गदर्शन के नाम पर खुले कोचिंगों ने व्यवसाय का रुख अख्तियार कर लिया है। देहात की बाजारों में भी लाइब्रेरियों का मकड़जाल फैल चुका है। ये लाइब्रेरियां विश्वविद्यालयों व शैक्षणिक संस्थानों की ‘रिच लाइब्रेरी’ के दावे की भद्द पिटती नजर आती हैं। स्ववित्तपोषित शिक्षा अभियान कोढ़ में खाज की स्थिति पैदा कर रहा है। प्रबंधन को ऊपर का तंत्र डस रहा है तो प्रबंधन निचले तंत्र को।
ये भी पढ़ें-राहुल गांधी ने बताया, वो कड़ाके की ठंड में भी हाफ़ टी-शर्ट पर क्यों चल रहे हैं