अली रजा
सीएए और एनआरसी के विरोध में देश की राजधानी दिल्ली के जामिया से शुरू हुआ प्रदर्शन देश के अन्य राज्यों में पहुंच चुका है। पुलिस और प्रदर्शनकारियों में जबरदस्त टकराव के बावजूद प्रदर्शन पर काबू नहीं किया जा सका। आलम ये है कि कभी प्रदर्शनकारी आलोचना का शिकार हो रहे हैं तो कभी प्रशासन और सरकार।
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गौरतलब है कि, राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन की शुरूआत महिलाओं द्वारा एक स्थान पर इकट्ठा होकर सरकार और पुलिस विरोधी नारेबाजी के साथ हुई जो धीरे-धीरे चर्चा का केंद्र बन गई। फिर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के घंटाघर में भी दिल्ली के शाहीन बाग की तरह विरोध प्रदर्शन शुरू किया हुआ। यह प्रदर्शन भी धीरे-धीरे जोर चर्चा में आ गया।
जो प्रदर्शन 17 जनवरी 2020 को दो-तीन दर्जन महिलाओं से शुरू किया एक सप्ताह बाद एक बड़े प्रदर्शन की शक्ल ले चुका है।
विरोध प्रदर्शन जैसे-जैसे तेज हुआ वैसे-वैसे कानून व्यवस्था संभालने वाली उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रदर्शन का खत्म कराने की काफी कोशिश की, कई तरह की रूकावटें डाली गई कभी पुलिस द्वारा कम्बल उठा ले जाने की घटना घटित हुई तो कभी प्रदर्शन कर रही महिलाओं का खाना पहुंचने से रोकने की घटना से लेकर एफआईआर तक कार्रवाई होने बाद भी प्रदर्शन और ज्यादा चर्चित हुआ।
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इतना ही नही इस प्रदर्शन में धीरे-धीरे गैर मुस्लिम समुदाय के लोग भी पहुंचने लगे। कोई खाना की व्यवस्था देखने लगा तो कोई कम्बल और गद्दे की व्यवस्था में लग गया।
राजधानी के पुराने शहर स्थिति घंटाघर के आधे से ज्यादा मैदान में सिर्फ महिलाओं के हजूम की शक्ल में सीएए के खिलाफ प्रदर्शन जारी है।
दिन भर महिलाएं अपने छोटे-छोटे नन्हे-मुन्ने बच्चों के साथ शहर के अलग-अलग इलाकों से अलग-अलग समय पर अलग-अलग ग्रुप में पहुंचकर प्रदर्शन में शामिल होती है। प्रदर्शन में शामिल महिलाओं में से एक ग्रुप अपना विरोध दर्ज कराकर अलगे दिन और बड़े ग्रुप के साथ आने के इरादे से जाता है तो दूसरे तरफ से नया ग्रुप आता रहता है।
प्रदर्शन में शामिल महिलाएं अपने घरों की चूल्हा-चौका की जिम्मेदारी को छोड़कर घंटाघर में डटी हुई हैं। यहीं हवन-पूजन, रोज़ा, नमाज़, आदि कार्य किए जा रहे हैं। विरोध दर्ज कराने के तरीके भी बड़े ही अनोखे हैं। रेखा चित्र और पदचिन्ह के माध्यम से सन्देश दिए जा रहे हैं। प्रदर्शन में शामिल महिलाएं एक-दूसरे से ऐसा घुली-मिली हुई है जैसे वर्षों पुरानी जान-पहचान हो।
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प्रदर्शनकारी महिलाओं की संख्या लगातार बढऩे के साथ प्रशासन ने चौकसी बढ़ाने के साथ-साथ अपने तेवर भी सख्त कर दिए है लेकिन जोश से लबरेज प्रदर्शनकारी महिलाओं का जज्बा लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
(लेख में पत्रकार के निजी विचार हैं)