Monday - 28 October 2024 - 10:13 AM

आज मेरा देश पूरा लाम पर है

कृष्णमोहन झा

कोरोना वायरस के बढते प्रकोप के कारण सारी दुनिया दहशत के साए में जी रही है। हमारा देश भी इससे अछूता नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर जब देश वासियों ने गत 22 मार्च को स्वेच्छा से जनता कर्फ्यू का पालन किया था तब यह अनुमान लगाना कठिन नहीं था कि सारे देशवासी इस विश्वव्यापी महामारी के खिलाफ सरकार की हर लड़ाई में उसे तन मन धन से सहयोग देने के लिए सहर्ष तैयार हैं।

कुछ अपवादों को छोड दिया जाए तो सारे देश की आबादी 21 दिनों के लिए लाकडाउन का ईमानदारी से पालन कर रही है। सबकी एक ही इच्छा है कि इस जानलेवा वायरस के प्रकोप से जल्द से जल्द छुटकारा मिले इसलिए लाकडाउन की इस कड़वी दवा से किसी को एतराज नहीं है। प्रधानमंत्री ने लाक डाउन के फलस्वरूप होने वाली कठिनाइयों के लिए जनता से विनम्रतापूर्वक माफी मांगी है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि लाकडाउन का फैसला सरकार ने अत्यधिक विवशता की स्थिति में लिया। सरकार की इस विवशता को समझना कठिन नहीं है।

प्रधानमंत्री की इस बात से असहमत होऩे का कोई कारण नहीं है कि अगर सरकार यह कठोर कदम नहीं उठाती तो देश 21 साल पीछे चला जाता। जिन देशों ने लाक डाउन जैसे कड़े कदम नहीं उठाए वे आज पछता रहे हैं। समय रहते सही कदम उठाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी साधुवाद के पात्र हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना वायरस के कारण पिछले कुछ दिनों में हमारे देश में भी कुछ दुखद घटनाएं घटी हैं परंतु फिर भी अमेरिका, इटली, स्पेन आदि देशो की तुलना में हम आज बेहतर स्थिति में हैं। अब यह उम्मीद भी की जा सकती है कि कुछ कठोर पाबंदियों का पालन कर के कुछ दिनों में हम कोरोना के खिलाफ अपनी लड़ाई में सफलता के नजदीक पहुँच जायेगे।

यह संतोष की बात है कि अब दूसरे राज्यों में काम करने वाले लोगों का अब अपने ग्रहराज्यों की ओर पलायन थमने लगा है अगर ऐसे लोगों की पहले ही उन स्थानों में, जहाँ वे काम करके रोजीरोटी कमा रहे थे, रहने खाने की व्यवस्था हो जाती तो इस पलायन को काफ़ी कम किया जा सकता था।

दरअसल उन्हें यह समझाए जाने की जरूरत थी कि वे अगर अपने काम के स्थान पर ही रुके रहेंगे तो उन्हें ठहराने व उनके भोजन पानी की बेहतर व्यवस्था हो सकेगी।

जब उनके रहने खाने की पर्याप्त व्यवस्था कर दी गई तो पलायन भी थमने लगा। अब सबसे बड़ी आवश्यकता इन बेबस बेसहारा लोगों के मन में बैठे इस डर को बाहर निकालने की है कि कोरोना वायरस के संक्रमण का कोई इलाज नहीं है।

अब सारे देश वासियों तक यह संदेश जल्द से जल्द पहुंचाया जाना चाहिए कि कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में से 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग स्वस्थ हो रहे हैं। इसके लिए एक संगठित और सक्रिय अभियान चलाने की आवश्यकता है।

इस अभियान में सभी प्रचार माध्यमों, मीडिया के अलावा वे स्वयंसेवी संगठन महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं जो इस संकट की घड़ी में बेबस  और बेसहारा लोगों के लिए भोजन पानी की व्यवस्था में खुले दिल से योगदान दे रहे हैं निसंदेह कोरेना वायरस के संक्रमण के खिलाफ लोगों को सचेत किया जाना चाहिए परंतु हमारी अधिक से अधिक कोशिश यह होना चाहिए कि लोग इस संकट के प्रति जागरूक तो अवश्य हों परन्तु भयभीत नहीं।

देश में लाकडाउन लागू हुए एक सप्ताह से अधिक समय बीत चुका है। कुछ अपवादों को छोड कर सारे देशवासी इस अपरिहार्य व्यवस्था का स्वेच्छा से पालन कर रहे हैं।

करोनावायरस को शीघ्रतिशीघ्र देश से विदा करने हेतु सारे देश वासी सामूहिक लड़ाई लड रहे हैं। हर व्यक्ति इस लड़ाई में अपना योगदान सुनिश्चित करने के लिए तत्पर है समाज सेवी संस्थाएं और परोपकारी लोग   बेबस बेसहारा गरीब लोगों को रोज खाने के पैकेट बांट रहे हैं।

दवा विक्रेता, किराना व्यापारी, दूध वाले, फल और सब्जी वाले लोगों की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्तिकर कर रहे हैं। चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मियों के द्वारा अपनी जान जोखिम डालकर कोरोना संक्रमितोंकी सेवा की जा रही है सस्ती दर पर अथवा निशुल्क मास्क उपलब्ध कराने के लिए लोग आ रहे हैं।

जो लोग लाकडाउन का ईमानदारी से पालन कर रहे हैं वे भी परोक्ष रूप से करोना केविरुद्ध लड़ाई में अपना योगदान कर रहे हैं ।ऐसे में मुझे रह रह कर दिवंगत हिन्दी कवि श्रद्धेय राजेन्द्र अनुरागी की निम्नलिखित पंक्तियां सन् 1962 में चीनी आक्रमण के समय यह पंक्ति बच्चे बच्चे की जबान पर थी और आज जब चीन से आये वायरस कॅरोना ने देश को संक्रमित कर दिया है तो यह कविता प्रासंगिक हो गई है

” आज अपना देश लाम पर है
जो जहाँ भी है, वतन के काम पर है”

आज इस विकट संक्रमण काल मे हम प्रधानमंत्री के लॉक डाउन के आग्रह को आत्मसात करके इस महामारी से बचने में बड़ी भूमिका का निर्वहन कर सकते है।

(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)

डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)

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