न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली। दो दिन से चंद्रमा के चारों ओर 35 किमी की ऊंचाई पर मंडरा रहा भारत का चंद्रयान-2 छह और सात सितंबर की दरमियानी रात चंद्रमा की सतह पर कदम रखेगा। लैंडिंग का समय करीब आते ही इसरो के वैज्ञानिकों सहित सभी की धड़कनें तेज होने लगी हैं।
978 करोड़ लागत वाले इस मिशन पर भारत सहित पूरी दुनिया की निगाह है। 1471 किलो के लैंडर ‘विक्रम’ की सॉफ्ट लैंडिंग सफल रही तो भारत ऐसा करने वाले दुनिया के चार देशों में शामिल हो जाएगा।
चंद्रमा पर अब तक अमेरिका, रूस और चीन ही अपने यान उतार सके हैं। बंगलूरू स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के वैज्ञानिक लैंडिंग की तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, सभी का ध्यान विक्रम की गतिविधि पर टिका है।
इसरो अध्यक्ष के. सिवन भी लैंडिंग को बेहद चुनौतीपूर्ण बता चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसरो पहुंचकर 70 स्कूली बच्चों के साथ सॉफ्ट लैंडिंग का सीधा प्रसारण देखेंगे।
Watch this video to find out more about Vikram — Chandrayaan 2’s Lander — and the different stages of its journey to the Moon’s south polar region! https://t.co/2qBLe0T710#ISRO #Moonmission #Chandrayaan2
— ISRO (@isro) September 5, 2019
ऐसे होगी लैंडिंग
- रात 1 से 2 बजे के बीच विक्रम और इसमें रखे रोवर ‘प्रज्ञान’ को बूस्टर प्रोपल्शन सिस्टम की मदद से लैंडिंग के लिए तैयार किया जाएगा।
- 1:30 से 2:30 के बीच विक्रम को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारा जाएगा। ध्रुव के इस हिस्से में आज तक कोई देश लैंडिंग नहीं कर सका है।
- 5:30 से 6:30 के बीच छह पहिये वाला 27 किलो का प्रज्ञान लैंडर से निकलेगा। यह चांद की सतह पर 500 मीटर चलेगा।
- इसके पहियों पर उकेरा गया राष्ट्रचिह्न चांद की सतह पर अंकित हो जाएगा।
इसरो के पूर्व अध्यक्ष एएस किरण कुमार के अनुसार सॉफ्ट लैंडिंग मिशन का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है। अब तब सब योजना के अनुसार हुआ है, आगे भी ऐसा ही होगा।
चंद्रयान-1 मिशन के निदेशक रहे ए अन्नादुरई ने कहा, इसरो के पास 40 से अधिक जियोसिंक्रोनस इक्वेटेरियल ऑर्बिट (जीओ) मिशन संभालने का अनुभव है। ऐसे में सॉफ्ट लैंडिंग सफल होने की पूरी उम्मीद है। करीब 35 किमी ऊंचाई से विक्रम 15 मिनट में उतरेगा।
चांद धरती के राज खंगालेंगे विक्रम और प्रज्ञान
विक्रम और प्रज्ञान एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) तक काम करेंगे। चांद की परिक्रमा करते हुए ऑर्बिटर एक वर्ष शोध व अध्ययन करता रहेगा। मिशन का उद्देश्य चांद पर मौजूद खनिजों- धातुओं और तत्वों की खोज और अध्ययन, चंद्रमा की मैपिंग और पानी की खोज करना है।