जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ/संभल। यूपी के स्वास्थ्य महकमे में चाहे कुछ भी कर लिया जाए कितने भी बड़े अफसर आ जाएं लेकिन उसमें सुधार नहीं हो सकता है जब भी कोई बड़ा घोटाला होता है, तो स्वास्थ्य महानिदेशालय के भ्रष्ट अधिकारी मामले को दबाने में लग जाते हैं और इसके लिए सबसे आसान तरीका होता है कि महानिदेशक जांच कराने के नाम पर एक जांच कमेटी बना देते हैं लेकिन कमेटी न तो जांच रिपोर्ट सौंपती है और न ही महानिदेशक या निदेशक प्रशासन कमेटी से जांच रिपोर्ट मांगते हैं।
मामला है मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय संभल का जहां पर वर्ष 2014- 15, 15- 16 ,16 -17 और 17-18 में लाखों रुपए का गबन और वित्तीय गड़बड़ियां हर साल की जाती रहीं। सूत्रों के अनुसार सही ढंग से सभी वर्षों की जांच की जाय तो कुल मिलाकर यह करोड़ों रूपये का घोटाला हो सकता है।
स्थानीय स्तर पर बनायी जांच कमेटी ने आरोपों को सही पाया
तत्कालीन सीएमओ डॉ अमिता सिंह ने एक विभागीय कमेटी बनाकर इन आरोपों पर जांच करायी जिसमें आरोप सही पाये गये और इसे स्वास्थ्य महानिदेशालय के उच्चाधिकारियों को अवगत भी करा दिया गया।
महानिदेशालय के अधिकारियों ने नहीं सौंपी जांच रिपोर्ट
सूत्रों के अनुसार इस प्रकरण में लिप्त सीएमओ,एसीएमओ और लिपिकों के विरूद्ध कारवाई करने गबन एवं वित्तीय गड़बड़ियों की जांच करने के लिये निदेशक (स्वास्थ्य)की अगुवाई मे़ जांच कमेटी बनी,लेकिन रिपोर्ट नहीं आई और निदेशक रिटायर भी हो गईं।
ये भी पढ़े : गबन और लाखों रूपये की हेरफेर के आरोपियों को बचाने के लिये जांच टीम ने नहीं सौंपी जांच रिपोर्ट
महानिदेशालय के सहायक वित्त एवं लेखाधिकारी अखिलेश कुमार राय के पर्यवेक्षण में 8-4-2019 से 11-4-2019 तक विशेष सम्प्रेक्षा की गई लेकिन रिपोर्ट कार्यालय में नहीं दी गई।
इसी प्रकरण में दोबारा अखिलेश कुमार राय एवं राम मिलन गौतम सहायक वित्त एवं लेखाधिकारी द्वारा जांच की कार्यवाही दिनांक 5 फरवरी 2020 से 8 फरवरी 2020 तक की गई परंतु फिर भी जांच रिपोर्ट नहीं दी गई।
29.09.2021 को एक बार फिर निदेशक स्वास्थ्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं उत्तर प्रदेश लखनऊ की अध्यक्षता में बनी जांच कमेटी में अखिलेश राय को सदस्य बनाया गया लेकिन उसकी भी रिपोर्ट नहीं सौंपी गई।
सूत्रों के अनुसार अखिलेश राय भी दिसम्बर 2022में रिटायर हो रहे हैं और भी बिना रिपोर्ट दिये ही जाने की तैयारी में हैं।
ये भी पढ़े : योगी के नाक के नीचे ऐसे फल-फूल रहा स्वास्थ्य विभाग में फैला भ्रष्टाचार
आरोप लगा है कि जांच कमेटी और विशेष सम्प्रेक्षा करने वाले अधिकारी आरोपियों को बचाने के लिये ऐसा कर रहे हैं ,सवाल है कि आखिर किस कारण से ये अधिकारी दोषियों को बचा रहे हैं।
महानिदेशक और निदेशक प्रशासन भी संदेह के घेरे में
बार बार जांच कमेटी बनाने और जांच का आदेश देने के बाद भी जांच रिपोर्ट तलब न करने और इस तरह की अनियमितता को नजरंदाज करने से महानिदेशक और निदेशक प्रशासन की भूमिका पर भी प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।
जनप्रतिनिधियों ने भी की मामले की शिकायत,फिर भी अधिकारी नहीं हुए गंभीर
विधान मंडल सदस्य दुर्गा प्रसाद यादव ने 14-02-2019 को विधानसभा के प्रथम सत्र में सीएमओ संभल के कार्यालय के प्रकरण को दबाए जाने का मामला उठाया था।
पुन:आजमगढ़ के सदर विधायक दुर्गा प्रसाद यादव ने दिनांक 31.07.2019को मुख्य अभियुक्त लिपिक विनय शर्मा के विरूद्ध पत्र लिखा जिसमें दो वरिष्ठ सहायकों और मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के सहयोग से जीपीएफ,एरियर,फर्मों के भगतान को उनके खातों में न डालकर अपने या अपने जानने वालों के खाते में ट्रांसफर करके लाखों रुपये के गबन का आरोप लगा है।
ये भी पढ़े : स्वास्थ्य महानिदेशालय ने गबन के आरोपी बाबू को बचाया था, अब फिर होगी जांच
इसी तरह के आरोप दिनांक 6.09.2019को पिछड़ा दलित एवं अल्पसंख्यक वर्ग संघ के अध्यक्ष डा इन्द्र दयाल गौतम ने भी लगाया।
वित्तीय अनियमितताओं और अवैध वसूली के सम्बन्ध में अधिवक्ता अजयवीर सिंह का भी दिनांक 22. 12.2020 को एक शिकायती पत्र प्राप्त हुआ जिसमें जांच करने की मांग की गई ।
आरोप इन पर है
- सूत्र बताते हैं कि तत्कालीन मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ राजवीर सिंह जो दो बार वहां कार्यवाहक सीएमओ रह चुके हैं, पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर ए के मिश्रा और मामले का खुलासा करने वाली डॉ अमिता सिंह तत्कालीन सीएमओ इस मामले से जुड़े हुए हैं।
- इसी तरह से विनय शर्मा तत्कालीन लिपिक,”जिसके ऊपर आरोप है कि ये सभी गड़बड़ियां इन्हीं के द्वारा की गई हैं” और वरिष्ठ सहायक धीरज सक्सेना इससे सम्बन्धित हैं।
- यह सभी तथ्य भी सामने आ पाते जब महानिदेशालय की जांच टीम रिपोर्ट सौंप देती।
- अब देखना है कि तेज तर्रार कही जाने वाली स्वास्थ्य महानिदेशक और निदेशक प्रशासन जांच रिपोर्ट लेने के लिये क्या कोई करते हैं या फिर इस मामले को रफा दफा कर देते हैं।
पढ़िये अगले अंक में- स्वास्थ्य विभाग में अड़तीस करोड़ के पुनर्विनियोग बजट से सीएचसी पीएचसी में हुए अनुरक्षण के व्यय में कैसे हुआ घोटाला और विशेष आडिट के नाम पर कैसे हो रहा है बड़ा खेल ।