जुबिली न्यूज डेस्क
केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 26 नवंबर से किसान दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र सरकार भी किसानों के इस आंदोलन को कोई तव्वजों नहीं दे रही है। पिछले चार माह में सरकार और किसान संगठनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई है।
सरकार के इस रवैये के बाद से किसानों ने अपने आंदोलन को और तेज कर दिया है। किसान दिल्ली में किसान संसद तो चला ही रहे हैं बाकी कई राज्यों में भी आंदोलन को धार देने में लगे हुए हैं।
इस बीच किसान नेता राकेश टिकैत ने गुरुवार को यूपी में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद में बड़े पैमाने पर अनियमितता का आरोप लगाया और सीबीआई जांच की मांग की।
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने दावा किया कि गेहूं सहित कई फसलें किसानों के बजाय बिचौलियों के माध्यम से खरीदी गई हैं और उनकी सरकारी रिकॉर्ड में जाली पहचान है।
यूपी के रामपुर जिले में ऐसी ही कथित अनिमियतता का दावा करते हुए किसान नेता टिकैत ने आरोप लगाया कि मिल मालिक, बिचौलिए, प्रशासनिक अधिकारी और खरीद केंद्र संचालक इस “घोटाले” के लाभार्थी हैं।
गाजीपुर बार्डर पर पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनके पास कथित अनियमितताओं के सबूत हैं और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से आरोपों की जांच कराने की मांग की।
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टिकैत ने दावा किया कि, “सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार देश भर के सिर्फ आठ फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिल रहा है। इन आठ फीसदी में से भी 40 फीसदी किसानों की पहचान जाली है।”
उन्होंने अपने एक बयान में कहा, “दरअसल, देश में आठ फीसदी किसानों को भी एमएसपी नहीं मिल रहा है। एमएसपी के नाम पर देश में सरकार किसानों को लूट रही है।”
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राकेश टिकैत ने कहा कि एमएसपी आधिकारिक तौर पर 23 फसलों के लिए घोषित की गई है, लेकिन सरकार केवल दो या तीन फसलों पर ही एमएसपी देती है।
किसान नेता ने दावा किया कि बिहार और दक्षिणी राज्यों में धान न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर बेचा गया है। उनका आरोप है, “उत्तर प्रदेश में गेहूं और धान की खरीद संगठित तरीके से सांठगांठ करके की जाती है। किसानों से एमएसपी पर फसलों की खरीद का सरकार का दावा एक छलावे से ज्यादा कुछ नहीं है। उत्तर प्रदेश में किसानों से गेहूं नहीं खरीदा गया है।”
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