प्रीति सिंह
तीन तलाक विधेयक यानी मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 आखिरकार राज्यसभा में पास हो ही गया। अब इसके कानून बनने का रास्ता साफ हो गया है। यह बिल लाकर जहां बीजेपी अपनी पीठ थपथपा रही है तो वहीं कांग्रेस इसे राजनीति से प्रेरित बता रही है।
यह ठीक है कि यह शत-प्रतिशत राजनीति से प्रेरित है परंतु इसके लिए जिम्मेदार तो मुस्लिम कट्टरपंथी ही हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक साथ तीन तलाक दिए जाने को असंवैधानिक बताने के बाद भी अपने समाज में महिलाओं को संरक्षण देने के लिए कोई पहल नहीं की। जबकि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इस पर कोई कानून न बनाया जाए और पर्सनल लॉ बोर्ड स्वयं कोई ऐसा मसौदा पेश करेगा जिससे कानून की मंशा पूरी हो जायेगी। परंतु ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया।
तीन तलाक बिल को लेकर पिछले कई साल से विपक्षी दल भाजपा की घेराबंदी किए हुए थे। राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण वह 2018 में यह बिल लोकसभा से तो पास हो गया था, परंतु राज्यसभा में अटक गया था। इस बार भी सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था परंतु उसने क्षेत्रीय दलों को पटाकर कांग्रेस को पटकनी देते हुए यह बिल राज्यसभा में पास करा लिया। क्षेत्रीय दलों ने स्वयं राज्यसभा में मतदान के दौरान अनुपस्थित रहकर बिल को पास करा दिया।
इसका एक सीधा-साधा कारण यह था कि क्षेत्रीय दल यह महसूस कर रहे थे कि तीन तलाक बिल का विरोध कर वे स्वयं अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं और जिस कांग्रेस के साथ वे खड़े हैं वह टूट-फूट सी गई है और पिछले दो महीने से कांग्रेस अपने लिए नया अध्यक्ष तक नहीं चुन पायी है। कांग्रेस इन सब परिस्थितियों से इतनी अनभिज्ञ रही कि उसे इस बात की भनक ही नहीं लगी कि क्षेत्रीय दल कुछ और खिचड़ी पका रहे हैं।
यह तर्क बेहद ही बचकाना व मूर्खतापूर्ण है कि जब एक साथ तीन तलाक गैर कानूनी करार दे दिया गया है तो इसके लिए कानून बनाने की क्या जरूरत थी। इन लोगों को ये बात क्यों नहीं समझ में आती कि हत्या, डकैती व रेप जैसे तमाम काम अपराध की श्रेणी में माने जाते हैं फिर भी यदि कोई ये सब काम करता है तो उसे दंडित करने के लिए भारतीय दंड संहिता में तमाम धाराओं के अंतर्गत दंडित किए जाने का प्रावधान किया गया है।
अगर कठमुल्लाओं के तर्क को सही मान लिया जाए तो फिर इस देश में किसी क्रिमिनल कानून की जरूरत ही नहीं है, परंतु ये माना जाता है कि कानून होने के बावजूद तमाम लोग कानूनों का उल्लंघन करते हैं। इसलिए इनको दंडित किए जाने के लिए बकायदा एक भारतीय दंड संहिता है, ताकि दोषी लोगों को कानून का भय रहे और वह कानून विरोधी काम करने से बचे। इस तरह का दंड विधान दुनिया के हर समाज में बरकार है।
यह नियम है कि जब भी समाज में कुछ बदलाव होता है तो कुछ लोग उसके पक्ष में भी होते हैं और कुछ विपक्ष में। तीन तलाक के मामले में भी ऐसा ही है। इस बिल के पास होने के बाद जहां एक तबका खुश है तो वहीं एक तबका इस बिल का पुरजोर विरोध कर रहा है। सबकी अपनी-अपनी वजहें हैं, लेकिन एक सत्य यह भी है कि कानून का कुछ लोगों के भीतर डर तो होता ही है। कानून की पालन अधिकांश लोग करते हैं। कुछ ही लोग होते हैं जिनको कानून का डर नहीं होता।
अगर इस तरह के कानून न हो तो भारत वर्ष में जो एक परिवार की कल्पना है वह अपने आप ध्वस्त हो जायेगी। परिवार में पति-पत्नी, बच्चे और मां-बाप सब कहीं न कहीं नैतिक बंधन के साथ ही कानूनी बंधन से भी जुड़े हुए हैं।
किसने दिया भाजपा को राजनीति करने का मौका
राजनीतिक नजरिए से देखा जाए तो मोदी सरकार का यह कदम पूर्णरूप से राजनीतिक है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि दरअसल मोदी सरकार इस बिल के भरोसे ही मुस्लिम समाज में घुसना चाह रही थी, जिसमें वह कामयाब रही। राज्यों के विधानसभा चुनावों में और लोकसभा चुनाव में मोदी को मुस्लिम महिलाओं का भरपूर साथ मिला। इसलिए इस बिल को पास कराना मोदी की प्राथमिकता में आ गया था।
विपक्षी दलों द्वारा राजनीति से प्रेरित बताने के पीछे तर्क यह है कि भाजपा की बहुमत की सरकार में मुस्लिम प्रतिनिधित्व न के बराबर है और लोकसभा में बीजेपी के 303 सांसदों में से एक भी मुसलमान नहीं है। सत्ताधारी पार्टी के नेता मुसलमानों के प्रति आग उगलते रहते हैं। सत्तारूढ़ दल के समर्थकों के जय श्रीराम के नारे मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का बहाना बन रहे हैं, फिर भी तीन तलाक विधेयक से मुस्लिम औरतों के सशक्तीकरण का दावा किया जाता है कि इससे औरतें मजबूत होंगी तो देश मजबूत होगा।
यह आरोप बिल्कुल सही है कि भाजपा पूर्णत: एक हिंदू समर्थक राजनीतिक दल है, परंतु यदि वह अपनी अस्मिता और विचारधारा को सुरक्षित रखते हुए किसी दूसरे समुदाय की भलाई के लिए कुछ करना चाहती है, भले ही उसकी निगाह इस समाज के महिला वोट बैंक पर हो तो उसकी आलोचना का कोई औचित्य नहीं बनता है।
भारतीय जनता पार्टी ने मुसलमानों को अपने समाज में व्याप्त तीन तलाक की कुप्रथा को समाप्त करने पर कोई पाबंदी नहीं लगा रखी थी, पर मुस्लिम समाज ने भय व आतंक में जी रही महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा से मुक्त करने का जब बीड़ा नहीं उठाया तो भाजपा ने इस दिशा में पहल कर अपना जनाधार बढ़ाने का सफल प्रयास किया। अभी मुस्लिम समाज के कठमुल्लों को इस बात का एहसास ही नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी उनके न चाहते हुए भी उनके घरों में घुस गई है और चाहे या अनचाहे मुस्लिम महिलाएं भाजपा के प्रति कृतज्ञता से भर उठी हैं।
जहां तक मॉब लिंचिंग और जय श्रीराम के नारे के नाम पर मुसलमानों को आतंकित करने या मार डालने तक की घटनाओं का मामला है उसको तीन तलाक बिल से जोड़कर राजनीति करने वालों को यह बात समझनी होगी कि मॉब लिंचिंग और जय श्रीराम के नारों के नाम पर हो रही गुंडागर्दी से बहुतायत हिंदू समाज भी सहमत नहीं है। परंतु तीन तलाक बिल पर अधिकांश हिंदू पुरुष व महिलाएं मुस्लिम महिलाओं के साथ हैं और इस संबंध में कानून बनाए जाने पर सभी के बीच एक संतोष का माहौल है।
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