न्यूज डेस्क
दीपावली के बाद से कई राज्यों में लोग परेशान हैं। लोगों के सीने में जलन है और मुंह पर मास्क। अधिकांश लोग सिरदर्द जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। यह वाकया पिछले पांच साल से लगातार हर दीपावली के बाद होता है, लेकिन फिर भी लोग सबक नहीं लेते। हवा जहरीली होती जा रही है और लोग इसे जहरीली करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे।
जाहिर है आज वायु प्रदूषण लोगों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है तो इसके जिम्मेदार हम खुद हैं। फिलहाल वायु प्रदूषण को लेकर एक शोध प्रकाशित हुआ है जिसमें खुलासा किया गया है कि गंगा से सटे मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों की औसत उम्र पर वायु प्रदूषण का खतरनाक असर पड़ रहा है।
अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी की शोध संस्था एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन में यह बात कही गई है। स्टडी के मुताबिक गंगा से सटे इलाकों में रहने वाले लोगों की औसत उम्र लगभग सात साल तक कम हो सकती है। ये इलाके हैं दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिमी बंगाल। स्टडी के अनुसार यहां के लोग दूसरी जगहों के मुकाबले ज्यादा प्रदूषण झेल रहे हैं।
एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉक्टर माइकल ग्रीनस्टोन ने इस अध्ययन से जुड़ी रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 1998 से 2016 के बीच गंगा से सटे मैदानी इलाकों में वायु प्रदूषण में 72 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। इन इलाकों में भारत की करीब 40 फीसदी आबादी बसती है। 1998 में प्रदूषण का जो स्तर था उससे इस इलाके में रहने वाले लोगों की उम्र में औसतन 3.7 साल की कमी होने की संभावना थी।
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रिपोर्ट के मुताबिक समय के साथ प्रदूषण की मार बढ़ी है। दूर जाने की जरूरत नहीं है। दिल्ली-एनसीआर में तो आपातकाल जैसी स्थिति है। वहीं उत्तर प्रदेश के आठ शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार है। प्रदूषण के मामले में तो दिल्ली ने तो सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। तभी तो कई सालों से दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में वह पहले पायदान पर रह रही है।
दिल्ली के साथ एनसीआर के शहरों गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोनीपत में वायु गुणवत्ता का स्तर (Air Quality Index) खतरनाक बना हुआ है। शुक्रवार सुबह दिल्ली के लोधी रोड इलाके में पीएम 2.5 का स्तर 500 तो पीएम 10 का स्तर भी 500 पर आ गया है। यह लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद खतरनाक है। वहीं, बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर दिल्ली के स्कूलों में छुट्टी की मांग भी उठने लगी है।
प्रदूषण बढ़ने से लोगों की मुश्किलें बढ़ गई है। आंखों में जलन व गले में एलर्जी से करीब हर कोई परेशान है। डॉक्टर कहते हैं कि ओपीडी में 30 से 40 फीसद सांस के मरीज बढ़े हैं। वहीं अस्पतालों में 15 फीसद तक मरीजों के दाखिले बढ़ गए हैं। सांस की पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोग अस्थमा के अटैक से पीड़ित होकर इमरजेंसी में पहुंच रहे हैं। जिन्हें नेब्यूलाइज की जरूरत पड़ रही है।
ऐसा नहीं है कि लोगों को जागरूक नहीं किया जा रहा है। हर साल तमाम डरावने रिपोर्ट प्रकाशित हो रहे हैं फिर भी हम नहीं चेत रहे हैं। छोटे-छोटे और यंग लोग फेफड़े की बीमारियों की चपेट में आ रहे है। यह सब बहुत डरावनी स्थिति है। यह तो तय है कि यदि समय रहते हम नहीं चेते तो आने वाले समय में बहुत भयावह स्थिति का सामना करना पड़ेगा।
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