मल्लिका दूबे
गोरखपुर । चुनावी इतिहास मे वोट बैंक का कांसेप्ट हमेशा से रहा है। धर्म और जाति आधारित वोट बैंक हमेशा ही पार्टियों को लुभाता रहा है और चुनावी लड़ाई जीतने में यह वोट बैंक सबसे ताकतवार हथियार का काम करता रहा है। पर, पांच साल पहले सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में जातीय वर्गीकरण से इतर एक नया वोट बैंक तैयार हुआ था, मोदी वोट बैंक।
2014 के चुनाव में बीजेपी की तरफ से पीएम कैंडिडेट घोषित किए गए नरेंद्र मोदी ने उस समय गुजरात विकास माडल के ताबड़तोड़ प्रचार, अपने निजी आभामंडल और धारदार कम्युनिकेश स्किल से मतदाताओं में जो पैठ बनायी वह एक नए वोट बैंक में तब्दील दिखा।
पांच साल तक सत्ता में रहकर मोदी ने अपने नाम पर तैयार वोट बैंक को बरकरार रखा है। इस वोट बैंक के आगे बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक भी कहीं पीछे नजर आ रहा है। 17वें लोकसभा चुनाव के परिणाम इस वोट बैंक की महत्ता पर मुहर लगाने वाले हैं।
व्यक्ति केंद्रित रहा चुनाव
इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा कि लोकसभा का यह चुनाव मुद्दों से इतर एक व्यक्ति यानी मोदी केंद्रित होकर रहेगा। पूरा चुनाव ही दो खांचों में बंटा दिखा-प्रो मोदी और एंटी मोदी। भाजपा ने चुनाव में मोदी गान को बुलंद किया तो वहीं विपक्ष की रणनीति मोदी पर निजी हमले पर केंद्रित रही।
उप चुनाव में सफल लेकिन आम चुनाव में असफल हुआ सपा-बसपा का सम्मिलित समीकरण
यूपी में मोदी के नाम पर 2014 के लोकसभा चुनाव में एक तरफ से क्लीन स्वीप और इसके तीन साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में मोदी के नाम पर ही प्रचंड बहुमत एक नया समीकरण लेकर आयी। इन दोनों चुनावों की देन थी कि दो दशक तक एक दूसरे की कट्टर प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को नया निर्णय लेने को मजबूर होना पड़ा।
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यूपी के लोकसभा उप चुनावों में दोनों दलों ने अनौपचारिक साथ किया और यूपी की तीन संसदीय सीटें जीतकर अपने प्रयोग को सफल मान लिया। इस प्रयोग के बाद इस आम चुनाव में दोनों दलों ने औपचारिक गठबंधन कर भाजपा का विजय रथ रोकने की रणनीति तैयार की। दोनों दलों के जातीय समीकरणों का अंकगणित बेहद मजबूत माना भी जा रहा था लेकिन चुनावी समर में इस वोट बैंक को मोदी के नाम पर पांच साल पुराने वोट बैंक ने धराशायी कर दिया।
भाई-बहन की जोड़ी का फ्लाप शो
यूपी में लचर संगठन के चलते पहले से ही खराब हालत वाली कांग्रेस को राहुल गांधी-प्रियंका गांधी की जोड़ी से इस बार जादुई परिणाम की उम्मीद थी लेकिन मोदी वोट बैंक के आगे कोई जादू नहीं चल पाया।
वास्तव में मोदी वोट बैंक ऐसा वोट बैंक बनकर उभरा जिसमें भाजपा का परंपरागत वोटर तो शामिल ही था, अन्य जातियों के वे लोग जो मोदी सरकार की योजनाओं के लाभ से लाभान्वित हुए या उनके निजी इमेज से प्रभावित हुए, वो भी इसका हिस्सा बन गये।
सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक की मार्केटिंग से मजबूत हुआ मोदी वोट बैंक
कहना गलत नहीं होगा कि नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दे पर कुछ हद तक घिरे रहे मोदी की निजी ब्राांडिंग को सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक की मार्केटिंग ने मजबूत किया जिससे उनके नाम पर बने वोट बैंक को नुकसान नहीं पहुंचा।
ये मोदी वोट बैंक का ही असर रहा कि यूपी में महागठबंधन की चुनौती से गोरखपुर-बस्ती मंडल में बीजेपी के लिए कमजोर मानी जा रही गोरखपुर, बांसगांव, कुशीनगर, सलेमपुर, बस्ती, संतकबीरनगर और डुमरियागंज सीट पर भी भाजपा प्रत्याशियों ने विजयश्री हासिल की।