जुबिली न्यूज डेस्क
यूरोप के सबसे अमीर देशों में शुमार जर्मनी में महिलाओं को मैनेजमेंट में जगह देने के मामले में उतनी प्रगति नहीं हो रही है, जितनी उम्मीद की जा रही थी।
बैंकिंग उद्योग में हुए एक अध्ययन के मुताबिक पिछले साल इसमें मामूली वृद्धि हो पाई।
जर्मनी के बैंकों के मैनेजमेंट में सिर्फ 34.8 फीसदी महिलाएं हैं। रोजगार के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था एजीवी बांकेन के अनुसार यह संख्या पिछले साल से बस थोड़ी सी ज्यादा है, क्योंकि साल 2019 में 34.3 प्रतिशत महिलाएं बैंकों के मैनेजमेंट में थीं।
महिलाओं को वेतन में गैरबराबरी भी यूरोप में जिन देशों में सबसे ज्यादा है, जर्मनी उनमें से एक है।
जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार सन 2020 में यूनिक्रेडिट की जर्मनी में सीनियर एग्जिक्यूटिव को पुरुषों से 76 प्रतिशत कम वेतन मिला और यह बाकी दुनिया की शाखाओं से कम है। हालांकि बैंक का कहना है कि इस साल उसने यह अंतर काफी कम कर दिया है।
दरअसल यह आंकड़ा जर्मनी के विभिन्न उद्योगों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की एक बानगी के तौर पर देखा जा रहा है। खासकर वित्त उद्योगों में तो इसे चिंता का सबब मानकर कुछ बड़े कदम उठाने की बात भी हो सकती है।
यदि 90 के दशक की तुलना करें तो आज के हालात बहुत बेहतर हैं। सन 1990 में तो मैनेजमेंट में महिलाओं की संख्या 10 फीसदी से भी कम हुआ करती थी, लेकिन जर्मन उद्योग ब्रेक्जिट के बाद लंदन से मुकाबला कर रहे हैं तो हालात सुधारने की जरूरत महसूस की जा रही है।
इसलिए कुछ संस्थाओं जैसे डॉयचे बैंक और कॉमर्स बैंक ने 35 प्रतिशत को अपना लक्ष्य बनाया है।
डीडब्ल्यू के मुताबिक डॉयचे बैंक का कहना है कि वह हालात पर लगातार नजर रखेगा, और साथ ही तरक्की का हिसाब भी रखेगा। जर्मनी की सबसे प्रमुख बैंकरों में शामिल कैरोला फोन श्मोटो जब अप्रैल में एचएसबीसी के प्रमुख पद से रिटायर हुईं तो उनकी जगह एक पुरुष ने ली।
एचएसबीसी ने कहा कि वह सीनियर मैनेजमेंट में महिलाओं की संख्या बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध है लेकिन फैसलों में अंतर नजर आ ही जाता है। जर्मन सांसद कान्सल कित्सेलटेपे कहती हैं कि वित्त क्षेत्र में पुरुषों का अधिपत्य है और इसे बदलना ही चाहिए।
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सरकार है चिंतित
जर्मनी की सरकार भी इस जरूरत को अच्छे से समझती है। इसलिए इस दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं। मसलन, जून में संसद में एक कानून बनाने पर बात हो सकती है जिसमें सूचीबद्ध 70 बड़ी कंपनियों में, जहां बोर्ड में तीन या उससे ज्यादा सदस्यों का होना जरूरी है, उनमें कम से कम महिला का होना अनिवार्य किया जा सकता है।
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हालांकि आलोचक इससे बहुत संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि जिन कंपनियों के बोर्ड में दस लोग होंगे, वहां भी सिर्फ एक महिला का होना काफी होगा।
डीडब्ल्यू के मुताबिक फ्री डेमोक्रैट सांसद बेटिन स्टार्क-वात्सिंगर कहती हैं, “कानूनों के बावजूद हाल के दशकों में सच ज्यादा नहीं बदल पाया है।” दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में शामिल यूबीएस की यूरोप में अध्यक्ष क्रिस्टीन नोवाकोविच कहती हैं कि मुश्किलें सिर्फ कानून को लेकर नहीं हैं। वह कहती हैं, “दुर्भाग्य से, अब भी अक्सर ऐसा होता है कि महिलाएं परिवार और करियर में सामंजस्य नहीं बिठा पातीं।”
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