प्रीति सिंह
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने आज ट्विटर पर एक सवाल पूछा है। सवाल है-अपराधी का तो अंत हो गया, संरक्षण देने वाला का क्या? उनका यह सवाल यूपी के हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद आया। प्रियंका का यह सवाल मौजूं है, क्योंकि देश में न जाने कितने ऐसे विकास दुबे मौजूद हैं और पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रही है। उनके दहशत के आगे पुलिस भी नतमस्तक है।
सवाल है आखिर ऐसा क्यों है? यह आज का सवाल नहीं है। दशकों से यह सवाल लोग पूछ रहे हैं। इन सवालों का जवाब सबके पास है। फिल्मों में कई बार आपने बेवश पुलिस को यह कहते हुए देखा और सुना होगा कि उनके हाथ सत्ता ने बांध रखे हैं नहीं तो किसी अपराधी की इतनी हिम्मत नहीं कि वह मंदिर से एक चप्पल भी चुरा ले। हैं तो यह फिल्मी डायलॉग, लेकिन असल जीवन में भी पुलिस ऑफ द रिकार्ड यही बोलती है। सवालों का जवाब मिल ही गया कि राजनीतिक संरक्षण ही अपराध को फलने-फूलने में मदद कर रहे हैं।
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उत्तर प्रदेश में तो अपराधियों की लंबी फेहरिस्त रही है। इन अपराधियों की राजनीति में पकड़ का अंदाजा इस तरह लगाया जा सकता है कि आज हर बड़े नाम का अपराधी किसी न किसी पार्टी के टिकट से माननीय बना बैठा है। राजनीति और अपराध का कॉकटेल जनता को भी शायद रास आता है इसलिए इन्हें चुनकर विधानसभा और लोकसभा भेज देती हैं। सत्ता के लिए राजनीति और अपराध का गठजोड़ आज का नहीं है। नेताओं और अपराधियों के रिश्ते का बहुत पुराना इतिहास रहा है।
अपराध के मामलों में उत्तर प्रदेश का नाम सबसे पहले लिया जाता रहा है। यूपी शायद देश का पहला राज्य हैं जहां माफियाओं को फलने-फूलने का खूब मौका मिला। राजनीतिक संरक्षण की वजह से पुलिस की उन पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर पाती। पिछले कुछ सालों में माफियागिरी का तरीका बदल गया है। अब विकास दुबे टाइप के माफिया कम हैं, अब सफेदपोश माफिया ज्यादा हैं।
यह हम नहीं कह रहे हैं। प्रदेश की विधानसभा में मौजूद दागी विधायकों की संख्या इसकी गवाही दे रहे हैं। दागी विधायकों की संख्या से आप आसानी से राजनीति और अपराध के बीच सांठगांठ के रिश्ते का अंदाजा लगा सकते हैं। साल 2017 में 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा में बीजेपी ने 312 पर जीत दर्ज की थी, जबकि सपा- 47, बसपा-19 और कांग्रेस-7 व अपना दल को 9 सीटें मिली थीं। इसके अलावा तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत हासिल की थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस चुनाव में कुल 402 विधायकों में से 143 ने अपने ऊपर दर्ज आपराधिक मामलों का ऐलान किया था। इन सभी नेताओं ने चुनावी हलफनामे में इन मुकदमों की जानकारी दी थी। अब ये भी जान लेते हैं कि कितने दागी विधायक किस पार्टी में हैं।
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सत्तारूढ़ बीजेपी के 37 फीसदी विधायकों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं। मतलब 312 विधायकों में से 114 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें 83 विधायक संगीन आपराधिक मामलों में संलिप्त हैं, इसका जिक्र इन्होंने अपने चुनावी हलफनामे में भी किया था। यूपी दूसरी बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी में जीते 47 विधायकों में से 14 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। एक समय था जब समाजवादी पार्टी अपराधियों को संरक्षण देने के लिए ही जानी जाती थी। विपक्षी दल सपा को गुंडों की पार्टी कहते थे।
उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती की पार्टी बसपा के 19 विधायकों में से पांच विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज। इनमें से चार के खिलाफ तो गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं कांग्रेस के 7 विधायकों में से एक पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसके अलावा जो तीन निर्दलीय विधायक हैं, वो भी आपराधिक मामलों में संलिप्त हैं। तीनों के खिलाफ संगीन आपराधिक मामले दर्ज हैं। ये सारे खुलासे एडीआर के आंकड़ों से हुआ था।
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थोड़ा और आगे बढ़ते हैं। हाल ही में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीते विधायकों में से आधे से ज्यादा विधायक दागी निकले हैं, जिनपर किसी न किसी मामले में आपराधिक केस दर्ज हैं। 70 विधानसभा वाली दिल्ली में 43 विधायकों (61प्रतिशत पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। इनमें से 35 विधायकों (53 प्रतिशत) पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। जबकि साल 2015 विधानसभा से ये संख्या 24 थी।
इन आंकड़ों से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपराधियों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है तो किसकी वजह से। थोड़ी पड़ताल और कर लेते हैं। देश के मंदिर में बैठे माननीयों के बारे में भी बात कर लेते हैं। वर्तमान में देश की संसद में बैठने वाले 43 फीसदी सांसद दागी छवि के हैं। मतलब 233 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। सभी प्रमुख दलों में हैं दागी सांसद मौजूद हैं जो संसद में शोभा बढ़ा रहे हैं। इतना ही नहीं 2009, 2014 व 2019 के आम चुनाव में जीते आपराधिक मामलों में शामिल सांसदों की संख्या में 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सांसदों के हलफनामों के हिसाब से 159 यानि 29 प्रतिशत सांसदों के खिलाफ हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर मामले लंबित है।
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सत्तारूढ़ बीजेपी की बात करें तो भाजपा के 303 में से 116 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं तो कांग्रेस के 52 में से 29 सांसद आपराधिक मामलों में घिरे हैं। इसके अलावा सत्तारूढ़ राजद के घटक दल लोजपा के सभी छह निर्वाचित सदस्यों, बसपा के आधे (10 में से 5), जदयू के 16 में से 13, तृणमूल कांग्रेस के 22 में से नौ और माकपा के तीन में से दो सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। इन आंकड़ों से स्पष्टï है कि किसी भी दल को अपराधिक प्रवृत्ति के नेताओं से कोई परेशानी नहीं है।
प्रियंका गांधी ने जो सवाल किया है उसका जवाब हर किसी के पास है। अपराधियों को संरक्षण कौन दे रहा है यह प्रियंका गांधी भी जानती है और आम जनता भी। इसलिए सवाल की बजाए असल मुद्दों पर बात करना जरूरी है। सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी नहीं है कि वह अपराधियों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाए या उनका आपराधिक रिकार्ड बेवसाइट पर डालने का आदेश दे। इसकी जिम्मेदारी राजनीतिक दलों के साथ-साथ जनता की भी है। अपराध और राजनीति के गठजोड़ को जनता का समर्थन मिल रहा है तभी तो विकास दुबे जैसे लोगों की तूती बोलती है और पुलिस उनके आगे नतमस्तक रहती है।