प्रीति सिंह
आखिरकार मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्रिमंडल का विस्तार हो ही गया, जिसका लंबे समय से इंतजार किया जा रहा था। पर इस विस्तार के साथ ही पार्टी के भीतर विरोध भी शुरु हो गया, जिसकी उम्मीद की जा रही है। भाजपा के कुछ विधायक मंत्री न बनाये जाने ये नाराज हैं।
कोरोना महामारी के बीच ही मध्य प्रदेश में भाजपा सत्तासीन हुई थी। उस समय महामारी और सोशल डिस्टेंसिंग का तर्क देकर शिवराज सिंह चौहान सिर्फ पांच मंत्रियों के साथ शपथ लिए थे। करीब 100 दिन तक मुख्यमंत्री चौहान पांच मंत्रियों के साथ इस महामारी के काम करते रहे, जबकि इस कोरोना संकट के दौर में, जब मध्य प्रदेश खतरनाक स्थितियों से जूझ रहा है, बिना मंत्रियों के सरकार के लिए काम करना कठिन था। बावजूद इसके बीजेपी ने मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं किया।
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मंत्रिमंडल के विस्तार में देर होना लाजिमी था। इसमें इतनी देर लगी, तो उसकी कुछ वजहें भी थीं। मध्य प्रदेश की सत्ता में बीजेपी कैसे आई यह सभी जानते हैं। जोड़-तोड़ की सत्ता चलाना आसान काम नहीं होता। इस बात का अंदाजा मुख्यमंत्री चौहान भलीभांति है। शायद इसीलिए उन्होंने मंत्रिमंडल का विस्तार करने में इतना समय लिया, पर इतना मंथन करने के बाद भी मंत्रिमंडल के विस्तार के कुछ घंटों के बाद ही पार्टी के भीतर से ही विरोध के सुर उठने लगे। भाजपा के कुछ विधायकों के समर्थकों ने अपने नेता को मंत्री न बनाए जाने पर जमकर विरोध किया है।
आज जब बीजेपी के कुछ विधायक इसका विरोध कर रहे हैं तो इसमें कोई ताजुब्ब की बात नहीं लगता। पार्टी को भी इसका अंदाजा तो रहा ही होगा, लेकिन बीजेपी की मजबूरी थी। वह चाहकर भी अपनी पार्टी के नेताओं के मंत्री नहीं बना सकती थी। इसीलिए बीजेपी ने मंत्री पद के लिए चेहरे चुनने में सख्ती की। पार्टी ने अपने ही नेताओं पर कठोर रुख अपनाया जबकि, जबकि नए लोगों और कांग्रेस के विद्रोहियों को तवज्जो दी।
कमलनाथ सरकार गिरने के बाद जब शिवराज सिंह चौहान ने राज्य की कमान संभाली, तब देश में पूर्णबंदी लागू थी। इसलिए उस वक्त सिर्फ पांच मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकी थी, मगर उसके बाद मंत्रिमंडल विस्तार में इतनी देर लगी, तो उसकी वजहें कुछ और थीं। एक तो राज्यपाल के अस्वस्थ होने का कारण बताया गया। पर हकीकत यह है कि द्वंद्व इस बात को लेकर था कि मंत्रिमंडल में किन लोगों को शामिल किया जाए।
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दरअसल, चौहान सरकार कांग्रेसी विधायकों के बगावत और इस्तीफे के बाद बनी थी। उसमें राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सिंधिया कांग्रेस में महत्व न मिलने की वजह से भी भाजपा में गए। जाहिर है, शिवराज सिंह सरकार में उन्हें अधिक महत्व मिलने की अपेक्षा थी। इसलिए शुरू से स्पष्ट था कि मध्य प्रदेश सरकार में सिंधिया समर्थकों को अधिक जगह मिलेगी। वही हुआ। मंत्रिमंडल विस्तार में सिंधिया समर्थकों को तरजीह दी गई है और बीजेपी के विधायकों को दरकिनार किया गया।
हालांकि अब इस विस्तार से बीजेपी नेताओं में खासा असंतोष है। सरकार बनने के साथ ही शिवराज सिंह पर दबाव बनना शुरू हो गया था कि वे सिंधिया समर्थकों को उपकृत करने के बजाय अपनी पार्टी के ऐसे नेताओं को तरजीह दें, जो काम कर सकें। यह द्वंद्व केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचा और काफी समय तक मंथन चलता रहा। आखिरकार शिवराज सिंह पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को अपना गणित समझाने में सफल रहे।
दरअसल, यह हकीकत है कि सिंधिया समर्थकों के सहयोग के बिना चौहान के लिए सरकार चलाना संभव नहीं है। उनकी नाराजगी सरकार का भविष्य अधर में डाल सकती है। इसलिए शिवराज सिंह किसी भी रूप में उनकी अनदेखी नहीं कर सकते।
उधर सिंधिया समर्थकों की चिंता इस बात की है कि वे कांग्रेस के टिकट पर जीती अपनी सीट दांव पर लगा कर शिवराज सिंह के साथ आए हैं और उन्हें फिर उपचुनाव में उतरना है। उनकी बगावत और इस तरह पाला बदलने को लेकर काफी आलोचना हो चुकी है। ऐसे में वे अगर इस सरकार में उपेक्षित रह जाते, तो उनका भविष्य चौपट होने का खतरा था। फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया का मध्य प्रदेश में अपना दबदबा बनाने का सपना भी धरा रह जाता।