जुबिली न्यूज ब्यूरो
लखनऊ. उत्तर प्रदेश के वित्त विभाग से सरकार ने लेखा परीक्षकों की रिक्तियों के सम्बन्ध में सूचना माँगी थी लेकिन मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी अवनींद्र दीक्षित और उनके अधीन कर्मचारियों ने सरकार को सूचना उपलब्ध नहीं कराई. इसका खामियाजा विभाग के उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है जो अपने प्रमोशन की बाट जोह रहे थे.
यह मामला है वित्त विभाग के अंतर्गत आने वाले सहकारी समितियां एवं पंचायतें, उत्तर प्रदेश के लेखा परीक्षा विभाग में लेखा परीक्षकों को नियमानुसार प्रमोशन देने का.
इस विभाग के मुखिया मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी अवनीन्द्र दीक्षित और उनके मातहत कुछ कर्मचारियों पर आरोप है कि शासन द्वारा लेखा परीक्षकों की रिक्तियों के सम्बन्ध में सूचना मांगे जाने के बाद भी रिक्तियों की सूचना शासन को नहीं दी जा रही है जिसके कारण हजारों की संख्या में प्रमोशन की बाट जोह रहे लेखा परीक्षकों को नियम से न तो प्रमोशन मिला और ना ही वेतन वृद्धि.
वित्त विभाग के अंतर्गत आने वाले सहकारी समितियां एवं पंचायतें के लेखा परीक्षा विभाग में तैनात लेखा परीक्षकों को पांच जुलाई 2007 के शासनादेश से पहली जुलाई 1995 से पदोन्नति की गयी. शासन में वित्त विभाग के अंर्तगत वेतन वित्त आयोग ने नियमों के सुसंगत परीक्षण में पाया कि ज्येष्ठ लेखा परीक्षकों को प्रमोशन 1995 से पूर्व से रिक्त पदों के सापेक्ष स्वीकृत किया जाना चाहिये.
इसी बाबत शासन ने 12 मई 2017 में मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी अवनीन्द्र दीक्षित से वर्ष 1991-94 के बीच ज्येष्ठ लेखा परीक्षकों की रिक्तियों की संख्या पदवार भेजने के लिये पत्र लिखा जिसके जवाब में मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी ने यह कर कि 1991से 1994 के मध्य के कार्यरत और रिक्त पदों का विवरण और उससे संबंधित अभिलेख कार्यालय में उपलब्ध नहीं है इसलिये यह सूचना नहीं दी जा सकती है.
उच्च न्यायालय में रिक्तियों की सूचना पहले दी अब किया इंकार
आश्चर्यजनक बात ये है कि वर्ष 2007 में 1991से 1994 के मध्य के कार्यरत और रिक्त ज्येष्ठ लेखा परीक्षकों के पदों की रिक्तियों की सूचना उच्च न्यायालय में मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी ने खुद दी थी. इसी आधार पर उच्च न्यायालय के निर्देश पर पदोन्नति की कार्रवाई की गयी थी.
शासन के वित्त विभाग की भी मिली भगत आई सामने
जुबली पोस्ट को जानकारी मिली है कि जब मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी ने यह कहा कि 1991से 1994 के मध्य के कार्यरत और रिक्त पदों का विवरण और उससे संबंधित अभिलेख कार्यालय में उपलब्ध नहीं हैं तो तत्कालीन अपर मुख्य सचिव वित्त संजीव मित्तल ने मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी के विरूद्ध कोई कार्रवाई नहीं की और तो और प्रमोशन की प्रक्रिया को ही समाप्त कर दिया.
वित्त विभाग मे आडिटर्स के प्रकरण को देखने वाले सचिवालय के एक सेक्शन आफीसर ने तो यहां तक कह दिया कि शासन का वित्त वेतन आयोग फर्जी है वो सब नियम कानून नहीं जानते और गलत सलत आदेश करते रहते हैं, जबकि वित्त वेतन आयोग नियमों की ही समीक्षा करता है और वहां शासनादेश के जानकारों की पूरी टीम है.
एसीएस वित्त भी संदेह के घेरे में, बंद की फाइल
मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी के विरुद्ध कई लेखा परीक्षकों के प्रमोशन की फाइल को बन्द करने से एसीएस वित्त पर भी संदेह की उंगली उठ रही है,क्योंकि संजीव मित्तल एक तेज तर्रार और इमानदार अफसर माने जाते हैं फिर ऐसा कैसे हो गया.
महत्वपूर्ण अभिलेख कार्यालय से गायब होने की अधिकारी की सूचना पर भी शासन के उच्च अधिकारियों खासकर तत्कालीन एसीएस वित्त संजीव मित्तल ने इस अधिकारी के विरुद्ध कोई भी प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की. जबकि अभिलेख गायब होने पर सम्बंधित अधिकारी एवं कर्मचारी के विरूद्ध एफआईआर कराने और प्रशासनिक कारवाई के निर्देश दिये जाते हैं, लेकिन एसीएस की चुप्पी और वैध प्रक्रिया को बन्द करना पहेली बना है.
जानकारी निकलकर आई है कि अभिलेख और जरूरी सूचनायें सभी मुख्य संप्रेक्षा अधिकारी के कार्यालय में हैं लेकिन भारी रिश्वत की डिमाण्ड होने से इस सूचना को अब तक शासन को नहीं दिया गया है.
बताया जाता है कि पहले, प्रमोशन के लिए मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी द्वारा भारी धन राशि की डिमांड की गई थी लेकिन डिमाण्ड अधिक हो जाने पर मामला तय नहीं हो पाया. इसीलिए कार्यालय के उन्हीं लिपिकों (जिनका भ्रष्टाचार के कारण ट्रांसफर किया गया है पर हैं अधिकारी ने कार्यमुक्त नहीं किया है) के कहने पर मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी ने शासन को यह सूचित कर दिया कि 1991 से 1994 के मध्य रिक्तियों एवं कार्यरत कार्यालय में उपलब्ध नहीं है.
सालों से मुख्य सम्प्रेक्षा अधिकारी के कई कारनामे फिर भी नहीं हुई कोई कारवाई
सूत्रों के अनुसार मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी अवनीन्द्र के ऊपर सहकारी समितियां और पंचायतों के लेखा परीक्षा विभाग में कार्मिकों के तबादलों और नियुक्ति में भारी भ्रष्टाचार करने का आरोप लगा जो सही भी पाया गया.
रिश्वत लेकर शासनादेश के विरूद्ध जाकर कार्मिकों को प्रतिनियुक्ति पर भेजने और ट्रांसफर के बाद भी चहेते और भ्रष्टाचार में लिप्त लिपिकों को रिलीव न करने के आरोप भी लगे और ये आरोप शासन के संज्ञान में भी आये.
विभागीय सूत्रों के अनुसार जिला लेखा परीक्षा अधिकारियों की मासिक मीटिंग का अधिकार रेंज में तैनात रेंज के अधिकारियों से लेकर मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी सीधे लेने लगे जो अब सीधे जिला लेखा परीक्षा अधिकारी से धन उगाही का एक साधन बना है. यह भी पता चला है कि नव नियुक्त जिला लेखा परीक्षा अधिकारियों की मीटिंग पुरानों से अलग की जा रही है.
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हजारों की संख्या में ये लेखा परीक्षक शासन के अधिकारियों की परिक्रमा करते करते थक गये हैं अब उम्मीद है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस करने वाली योगी सरकार इनकी सुनेगी और बन्द फाइल को खोलते हुए उस पर नियमानुसार कार्यवाही जरूर करेगी. वैसे भी सरकार वेतन विसंगति को दूर करने की बात कर रही है तो देखना है कि वैध प्रमोशन और ग्रेड पे देती है या नहीं. लेखा परीक्षकों को मौजूदा एसीएस वित्त राधा एस चौहान से अभी भी यह उम्मीद है कि वह उन्हें इन्साफ ज़रूर दिलाएंगी.