शबाहत हुसैन विजेता
ताज़िये दफ्न करने की इजाज़त नहीं है. जब तक कोरोना वायरस खत्म न हो जाये अजाखानों में ताज़िये सजे रहेंगे. मतलब मोहर्रम चलता रहेगा. ताज़ियों की मौजूदगी रहेगी तो अज़ाखानों में ताला कैसे लग जाएगा?
ताज़िये नहीं दफ्न होंगे तो क्यों? यह सवाल बहुत बड़ा सवाल है. हाईकोर्ट ने 20 पेज का आर्डर किया है. इस आर्डर में कोरोना गाइडलाइंस को फालो करने की बात है. इस आर्डर में हुकूमत के फैसले पर अदालत की मोहर लगी है.
कोरोना एक वायरस है. इसने पूरी दुनिया को परेशान किया है. सुपर पॉवर को भी घुटने पर झुका दिया है. यह ऐसी बीमारी है जो ज़रा सी लापरवाही पर पकड़ लेती है. एक बार कोरोना हो जाये तो ज़िन्दगी बचाना दूभर हो जाता है. इससे बचने का सिर्फ एक तरीका है कि फिजीकल डिस्टेंसिंग से रहा जाये. भीड़ से दूरी बनाकर रखी जाये. खुद को ऐसी बीमारी का शक हो तो खुद को आइसोलेट कर लिया जाये.
यह वायरस किसी को नहीं बक्शता. हिन्दुस्तान का होम मिनिस्टर कोरोना की गिरफ्त में है. कई सूबों के हेल्थ मिनिस्टर और चीफ मिनिस्टर कोरोना के शिकार हैं. कई मिनिस्टर इसके हमले से अपनी जान नहीं बचा पाए. तमाम डॉक्टर, कई सीएमओ, जर्नलिस्ट और ऑफिसर कोरोना के अटैक को रोक नहीं पाए. कई ऐसे एक्जाम्पिल हैं जिनमें कोरोना ने पूरी फैमिली निगल ली.
हालात अच्छे नहीं हैं. बेशक हालात ऐसे नहीं हैं कि कोई बड़ा जुलूस निकाला जा सके. बेशक हालात ऐसे नहीं हैं कि कहीं भीड़ जमा करने की इजाजत दी जा सके. बेशक कोर्ट के भी हाथ बंधे हैं. कोर्ट ऐसा कोई फैसला नहीं सुना सकता जिसमें बाद में उँगलियाँ उस पर उठें.
हुकूमत को भी ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. हुकूमत की मंशा जो भी हो मगर भीड़ जमा करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती. मज़हब हर किसी के सेंटीमेंट्स से जुड़ा मुद्दा है. मोहर्रम तो ऐसे सेंटीमेंट्स का हिस्सा है जिसमें फैमिली से भी पहले कर्बला है. कर्बला एक ऐसा मरहला है जहाँ दोस्त यार रिश्तेदार सब पीछे छूट जाते हैं. जो कर्बला के शहीदों का नहीं वह हमारा भी नहीं.
इन सेंटीमेंट्स पर कोई वार अज़ादारों को बर्दाश्त नहीं है. मगर सोचने का वक्त यही है कि क्या ताज़िये दफ्न करने की कोई तरकीब नहीं है. क्या कोई ऐसा तरीका नहीं है कि ताज़िये भी दफ्न हो जाएं और कोरोना गाइडलाइंस से भी न हटना पड़े.
हुकूमत और अदालत इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि कोरोना ताज़ियों से नहीं फैलता. कोरोना फैलता है इंसानों के करीब आने से. कोरोना फ़ैल सकता है जुलूस से. अगर जुलूस न निकले तो कोरोना की आहट भी नहीं आ सकती.
हुकूमत दस मोहर्रम को सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक कर्बला में ताज़ियों को दफ्न करने की इजाज़त दे सकती है. जिन घरों में ताज़िये रखे हैं उन घरों में दो-तीन लोग ताज़िया लेकर मातम करते हुए कर्बला की तरफ रवाना किये जा सकते हैं. पुराने लखनऊ को कई ज़ोन में बांटा जा सकता है. हर ज़ोन का ताज़िये ले जाने का अलग वक्त तय किया जा सकता है. कर्बला के भीतर कितने लोग रहेंगे यह जिला एडमिनिस्ट्रेशन और पुलिस से तय कराया जा सकता है. कर्बला के भीतर तय किये गए लोगों से ज़्यादा को जाने से रोका जा सकता है. कर्बला के दरवाज़े तक ज्यादा ताज़िये पहुँच गए हैं तो उन्हें तीन-तीन गज़ की दूरी पर खड़ा कर अपना नम्बर आने को कहा जा सकता है. ताज़िया लेकर कर्बला जाने और वापसी का रास्ता भी अलग किया जा सकता है.
हुकूमत अगर इस रास्ते को पसंद नहीं करती है तो एक दूसरा रास्ता भी है. पुराने शहर में एक-एक किलोमीटर की दूरी पर खुली मेटाडोर खड़ी की जा सकती हैं. हर मेटाडोर को सैनेटाईज़ करने के बाद उसमें दरी बिछा दी जाये. हर मेटाडोर में एक धर्मगुरु और दो नौजवान खड़े कर दिये जाएँ. घरों से ताज़िये पूरे एहतेराम से लाकर धर्मगुरु को सौंप दिए जाएँ. मेटाडोर भर जाए तो उसे कर्बला के लिए रवाना कर दिया जाए. कर्बला के गेट पर कुछ नौजवान मौजूद रहें वह गेट पर ताज़िये लेकर मातम करते हुए अन्दर जाएँ और वहां उन्हें पूरे एहतेराम से दफ्न कर दें. इससे हुकूमत और अदालत के हुक्म पर भी आंच नहीं आयेगी और ताज़िये भी 10 मोहर्रम को ही दफ्न हो जायेंगे.
शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने मोहर्रम को लेकर जो एडवायजरी जारी की थी. उसमें भी यही कहा गया था कि ताज़िये निकलें तो सड़कों पर भीड़ न रहे. लोग जियारत कर वापस अपने घरों पर लौट जाएं. इस एडवायजरी के जारी होने के बाद मौलाना कल्बे जवाद नाराज़ हो गए थे. उन्होंने इसे लेकर वीडियो जारी किया. इस वीडियो को जवाब में शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के स्पोक्समैन मौलाना यासूब अब्बास का वीडियो भी आया. वीडियो वार शुरू हुआ तो हुकूमत और एडमिनिस्ट्रेशन को भी यह मौका मिला कि छोटे जुलूस को परमीशन न दी जाए.
मौलाना कल्बे जवाद की कौम के लिए की गई खिदमात पर ऊँगली नहीं उठाई जा सकती लेकिन वीडियो वार में पड़ने से उन्हें बचना चाहिए था क्योंकि असल मकसद ताजियों को वक्त पर दफ्न करना था. इसमें किसको क्रेडिट मिला इस पर बात करने की ज़रूरत नहीं थी.
बात फिर हुकूमत और एडमिनिस्ट्रेशन पर आती है. आप एक्जाम करवाने की तैयारी कर रहे हैं. बड़ी तादाद में पुलिस को सड़कों पर तैनात कर रहे हैं. इमामबाड़ों के बाहर बड़ी तादाद में पुलिस तैनात है. क्या पुलिस की भीड़ जुटाना सही है. क्या पुलिस कोरोना प्रूफ है. क्या पुलिस की फैमिली नहीं होती. आखिर पुलिस को क्यों इस बीमारी के मुंह में झोंका जा रहा है.
हुकूमत पर लगातार यह इल्जाम लग रहा है कि वह एक कम्युनिटी को टार्गेट कर रही है. हुकूमत खामोशी के साथ इस इल्जाम को अपने सर पर लिए ले रही है. हुकूमत को समझना होगा कि हुकूमत स्टेट की होती है किसी कम्युनिटी की नहीं. स्टेट की हर कम्युनिटी के सेंटीमेंट्स का ध्यान रखना हुकूमत की ज़िम्मेदारी होती है.
हुकूमत बेशक उन बातों को नहीं माने जिसमें कोई नुक्सान होता हो लेकिन जो काम कोरोना गाइडलाइंस के साथ हो सकता है उसमें सियासत की क्या ज़रूरत है. कर्बला हक़ और इन्साफ को बचाने की लड़ाई का नाम है. पैगम्बर-ए-इस्लाम के नवासे ने एक दिन में अपना भरा-पूरा घर लुटा दिया ताकि इंसानियत पामाल न होने पाए. यह मुसलमानों का नहीं इंसानियत को मानने वालों के सेंटीमेंट्स का मुद्दा है. मोहर्रम को बड़ी तादाद में हिन्दू भी मनाते हैं.
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हुकूमत कोरोना गाइडलाइंस का पालन करे मगर ताज़िया दफ्न होने से न रोके. ताज़िया दफ्न नहीं होगा तो जिन घरों में ताज़िया रखा गया है वहां रोजाना मातम जारी रहेगा. घरों के इमामबाड़े भी बंद नहीं हो पाएंगे. यह प्रेस्टीज इश्यू का मुद्दा नहीं है. हम उस हिन्दुस्तान में रहते हैं जहाँ हज़रत इमाम हुसैन आना चाहते थे. मुद्दा अज़ादारी का है तो हुकूमत से ही कहा जाएगा. फैसला तो हुकूमत भी कर चुकी है और अदालत भी मगर मुझे लगता है कि वतन की रेत मुझे एड़ियाँ रगड़ने दे, मुझे यकीन है पानी यहीं से निकलेगा.