Monday - 28 October 2024 - 6:39 PM

ये तो सीधे-सीधे मोदी पर तंज है

सुरेद्र दुबे 

साध्वी प्रज्ञा ने रविवार को मध्य प्रदेश के सिहौर में एक कार्यक्रम में कहा, वह सांसद हैं और उनका काम नालियां साफ कराना या शौचालय साफ कराना नहीं है। वह सांसद हैं और सिर्फ सांसद वाले कार्य ही करेंगी।

वैसे साध्वी प्रज्ञा ने यह कहा तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। परंतु इससे कई सवाल उठ खड़े होते हैं। पहला और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या साध्वी प्रज्ञा सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर तंज कर रही हैं, क्योंकि स्वच्छ भारत नरेन्द्र मोदी का एक चर्चित अभियान है, जिसकी जमकर प्रशंसा भी होती है।

उन्होंने न स्वयं झाड़ू लगाकर देश की जनता से स्वच्छ और गंदगी मुक्त भारत बनाने का आह्वान किया, बल्कि बड़े-बड़े नेताओं से, जिसमें भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं, झाड़ू लगवाकर एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया।

आप लोगों ने देखा होगा कि इस बार भाजपा के तमाम सांसदों ने संसद भवन में झाड़ू लगाकर सफाई की और कूड़ा उठवाया। और तो और इस बार बसंती को भी झाड़ू लगानी पड़ी। ऐसे में साध्वी प्रज्ञा का यह कहना कि उनका काम साफ-सफाई करवाना नहीं है। वो तो साफ-सफाई करवाना भी सांसद का काम नहीं मानती, तो फिर स्वयं झाडू़ लगाने का तो सवाल ही नहीं उठता।

 

मुझे एक बात समझ में नहीं आती है कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साध्वी प्रज्ञा के प्रति अपनी नाराजगी खुलेआम जता चुके हैं तो साध्वी प्रज्ञा पंगा लेने पर क्यो अड़ी हुई हैं। आप लोगों को याद होगा कि लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी तथाकथित विवादास्पद छवि को और विवादास्पद बनाने के लिए महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बता दिया था। पहले तो भाजपा के लोग खामोश रहे परंतु बाद में चौतरफा आलोचना के बाद साध्वी प्रज्ञा के बयान से किनारा कर लिया और साथ में दिल्ली से बयान जारी कर इस पर अफसोस जताया। साध्वी प्रज्ञा पर जब ज्यादा दबाव पड़ा तो उन्होंने अपने बयान के लिए माफी मांग ली।

पीएम नरेंद्र मोदी ने एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में प्रज्ञा के बयान पर नाराजगी जताते हुए कहा, ‘गांधी और गोडसे के संबंध भयंकर खराब है, हर प्रकार घृणा के लायक है, आलोचना के लायक है, सभ्य समाज में ऐसी बातें नहीं कही जा सकती हैं। ऐसा कहने वालों को आगे से 100 बार सोचना पड़ेगा।’ पीएम मोदी ने आगे कहा, ‘उन्होंने भले ही माफी मांग ली हो, लेकिन मैं दिल से कभी उन्हें माफ नहीं कर पाऊंगा।’

 

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे के प्रति इतना अशोभनीय बयान इससे पहले किसी नेता ने नहीं दिया था। नरेन्द्र मोदी उसी समय समझ गये थे कि यह बयान भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है,क्योंकि देश इसी वर्ष महात्मा गांधी का डेढ़ सौवां जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाने जा रहा है। इस कार्यक्रम के जरिए नरेन्द्र मोदी ये संदेश देना चाहते हैं कि उनका महात्मा गांधी के विचारों से काफी साम्य है। इसीलिए स्वच्छ भारत कार्यक्रम का जो लोगो बनाया गया है उसमें महात्मा गांधी के चश्मे को दर्शाया गया है।

 

इतनी गूढ़ बात शायद साध्वी प्रज्ञा की मूढ़ बुद्धि में नहीं आयी होगी। या हो सकता है उनकी जहनियत गांधी विरोधी या गोडसे समर्थक हो। अन्यथा वह यह कहने का कभी साहस नहीं जुटा पाती कि,  ‘नाथूराम गोडसे देशभक्त थे, देशभक्त हैं और देशभक्त रहेंगेे’। तो जाहिर है यह कोई अचानक निकला उदगार नहीं था। बल्कि उनकी गोडसे समर्थक जहनियत का प्रतीक था।

कट्टर हिंदुवाद का प्रतीक बनी साध्वी प्रज्ञा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को हराकर सांसद बन गई। भाजपा को चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला। प्रधानमंत्री की नाराजगी के बावजूद साध्वी प्रज्ञा पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्हें पार्टी की ओर से कारण बताओं नोटिस जरूर दिया गया, परंतु तबसे सारा मामला ठंडे बस्ते में पड़ा है।

साध्वी प्रज्ञा के विरुद्ध कोई कार्रवाई न होने के कारण बाद में मध्य प्रदेश के इंदौर में भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश विजयवर्गीय का बल्ला कांड हुआ, जिस पर भाजपा की काफी फजीहत हुई। उनके पिता कैलाश को लगा कि जब साध्वी प्रज्ञा पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उनके बिगड़ैल बेटे पर क्यों कार्रवाई होगी। सो उन्होंने एक टीवी कार्यक्रम में गुस्से में आकर चैनल के पत्रकार को ललकारते हुए पूछा- ‘तुम्हारी औकात क्या है’।

इस बात को नरेन्द्र मोदी ने गंभीरता से लेते हुए बाप-बेटा दोनों को लताड़ लगाई और कहा कि इस तरह के लोगों की पार्टी में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। तब से बाप-बेटा दोनों अपनी औकात समझ गए हैं और चुप्पी साधे बैठे हुए हैं।

आइये फिर साध्वी प्रज्ञा के ताजा बयान पर चलते हैं, जिसमें प्रज्ञा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आमने-सामने खड़ा कर दिया है। साध्वी प्रज्ञा ने एक तरह से प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान का मखौल उड़ाया है।

हो सकता है कि साध्वी प्रज्ञा जानबूझ कर ऐसी स्थिति पैदा करना चाहती हैं जिसमें या तो उन्हें मनमाने तरीके से बयान जारी करने की छूट मिल जाए या फिर वह सभी तरह के बंधनों से मुक्त हो जाए। क्योंकि एक बात उनको समझ में आ गई है कि जब वह सीधे-सीधे प्रधानमंत्री के निशाने पर है तो पार्टी में उन्हें बहुत तवज्जों नहीं मिलने वाली है। और साध्वी प्रज्ञा बगैर तवज्जों के रह नहीं सकती।

उन्होंने कभी मुंबई आतंकी हमले में शहीद हुए एटीएस चीफ हेमंत करकरे के खिलाफ जहर उगला तो कभी नाथूराम गोडसे के सम्मान में कसीदे पढ़े। उनके ऊपर मालेगांंव विस्फोट मामले में शामिल होने का गंभीर मुकदमा चल रहा है। ये सारी बातें बताती हैं कि वह मन से तो साध्वी कतई नहीं है। गेरूआ वस्त्र धारण करती हैं इसलिए लोगों ने साध्वी की पदवी दे दी है। या उन्होंने स्वयं को साध्वी कहलाने की आदत डाल ली है।

साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ नरेन्द्र मोदी का गुस्सा इससे भी पता चलता है जब 26 मई को संसद भवन के सेंट्रल हॉल में एनडीए की बैठक में कार्यवाहक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सर्वसम्मति से एनडीए गठबंधन का नेता चुना गया था। इसके बाद सभी सांसद मोदी को बधाई दे रहे थे। वह भी सबसे हंसकर मिल उनकी बधाई स्वीकार कर रहे थे, लेकिन जैसे ही प्रज्ञा उन्हें बधाई देने के लिए आगे बढ़ीं, मोदी ने मुंह फेर लिया और आगे बढऩे का इशारा कर दिया।

अब देखना है कि प्रधानमंत्री साध्वी प्रज्ञा के विरुद्ध कोई कड़ा कदम उठायेंगे या पिछली बार की तरह गुस्से का इजहार करते हुए सारे मामले को रफा-दफा कर देंगे।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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