जुबिली न्यूज डेस्क
दिल्ली के विधान सभा चुनावों में अब बहुत काम वक्त ही बचा है , लेकिन इस बीच एक मंदिर के ढहाए जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है । इसकी वजह से जो हलचले तेज हुई हैं उससे लगता है कि ये मुद्दा आने वाले विधान सभा चुनावों में कुछ बड़ा रंग ले सकता है ।
दरअसल ये मुद्दा उस मंदिर का है जिसमे दलितों की बड़ी आस्था है। दिल्ली की आबादी में दलितों की संख्या करीब 17 प्रतिशत है ।
हालांकि ये मंदिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ढहाया गया है , मगर जिस तेजी से राजनीति शुरू हुई है उससे लगता है कि इसके चुनावी असर भी हो सकते हैं ।
बीते दिनों दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए तुगलकाबाद स्थित दलितों के पूजनीय संत रविदास के मंदिर को ढहा दिया है । इस कार्यवाही से न सिर्फ दिल्ली बल्कि पंजाब में भी बहुत रोष फैल गया है और इस मामले को लेकर दिल्ली से पंजाब तक प्रदर्शन हो रहे हैं । पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पीएम नरेंद्र मोदी से मामले में दखल देने को कहा है ।
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने भी ट्वीट करते हुए कहा है – ‘हमारे संतो के प्रति आज भी इनकी हीन और जातिवादी मानसिकता साफ झलकती है.’
मायावाती के निशाने पर केंद्र और दिल्ली की सरकारे हैं ।
दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी (आप) से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक में इसे लेकर भूचाल मचा हुआ है. इसकी वजह ये है कि दिल्ली में दलित खासी संख्या में हैं ।
जिस मंदिर को ढहाया गया है वह दिल्ली के तुगलकाबाद में स्थित था और यह 15वीं सदी के महान संत रविदास का एक मंदिर है । मान्यता के अनुसार ये मंदिर वही बनाया गया था जहां संत रविदास तीन दिनों तक ठहरे थे ।
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डीडीए ने दावा किया था कि मंदिर अवैध तरीके से कब्ज़ा की गई ज़मीन पर बना था. मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एम आर शाह ने नौ अगस्त को सबसे ताज़ा सुनवाई की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के मुखिया और दिल्ली सरकार के सचिव को ये सुनिश्चित कराने का आदेश दिया था कि 13 अगस्त से पहले मंदिर गिरा दिया जाए । 10 अगस्त को मंदिर गिरा दिया गया ।
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