जुबिली न्यूज डेस्क
छत्तीसगढ़ में ऐसा पहली बार हुआ है, जब 13 किन्नरों को पुलिस में भर्ती किया गया। इसके पहले सिर्फ तमिलनाडु और राजस्थान में किन्नरों को पुलिस में भर्ती किया गया था।
किन्नरों को यह अवसर देकर छत्तीगढ़ ने उन्हें बराबरी के अवसर देने की दिशा में नई पहल की है। छत्तीसगढ़ पुलिस के इस कदम से किन्नर समुदाय के लिए सम्मान और आजीविका पाने के नए रास्ते खुलने की उम्मीद है।
सबसे पहले तमिलनाडु और राजस्थान में किन्नरों को पुलिस में भर्ती किया गया था, लेकिन वहां भी इतनी बड़ी संख्या नहीं थी।
छत्तीसगढ़ पुलिस ने साल 2017 में ही किन्नरों को भर्ती करने का फैसला ले लिया था, लेकिन फैसले पर अमल होते होते लगभग चार साल बीत गए।
पुलिस भर्ती के लिए परीक्षा की प्रकिया 2019-20 में पूरी हुई और एक मार्च को इसके नतीजे आए। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने चुने गए सभी किन्नर उम्मीदवारों को बधाई देते हुए एक ट्वीट में बताया कि इन 13 के अलावा दो और उम्मीदवार वेटिंग लिस्ट में हैं। इन्हें मिला कर कुल 2038 कांस्टेबल भर्ती किए गए हैं, जिनमें 1736 पुरुष हैं और 289 महिलाएं हैं।
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रायपुर रेंज पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा के परिणाम घोषित कर दिए गए हैं। इस परीक्षा में तृतीय लिंग समुदाय के 13 उम्मीदवारों का पुलिस आरक्षक पद पर चयन हुआ है और दो उम्मीदवार वेंटिंग लिस्ट में हैं।
इस उपलब्धि के लिए सभी चयनित उम्मीदवारों को बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं। pic.twitter.com/n9G1loPXEP
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) March 1, 2021
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ही ट्रांसजेंडरों या किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दे दी थी और कहा था कि संविधान पुरुषों और महिलाओं को जो मूलभूत अधिकार देता है उन पर किन्नरों का भी उतना ही अधिकार है।
अदालत के इस फैसले के बाद भी किन्नरों के प्रति समाज के रवैये में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला। अधिकतर किन्नरों को आज भी समाज में ना तो अपनापन मिलता है और ना रोजगार के मौके।
सबसे बड़ी विडंबना है कि किन्नरों से उनके परिवार भी मुंह मोड़ लेते हैं जिसकी वजह से वो आज भी समाज के हाशियों पर ही जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ पुलिस के इस कदम से किन्नर समुदाय में एक नई आशा जगी है।
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2011 की जनगणना के अनुसार देश में 4.9 लाख किन्नर हैं, लेकिन इनकी असल संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। साल 2018 में आई राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट में भी ये दावा किया गया था कि 96 प्रतिशत किन्नरों को नौकरी देने से मना कर दिया जाता है।
ऐसे में छत्तीसगढ़ पुलिस के इस प्रयास के कई सार्थक असर होने की उम्मीद है। जल्द ही खाकी वर्दी को अपनाने वाले इन 13 प्रत्याशियों के बयान कई मीडिया रिपोर्टों में छपे हैं जिनमें इन्होने बताया कि पढ़े-लिखे होने के बावजूद इन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी और ये सड़क पर भीख मांग कर, तिरस्कार और छेड़छाड़ से जूझते हुए किसी तरह से जिंदगी बिता रहे थे।
फिलहाल इन लोगों को उम्मीद है कि अब पुलिस कांस्टेबल के रूप में उनका अपना जीवन तो बदलेगा ही, साथ ही वो दूसरे किन्नरों के हालात भी सुधारने की कोशिश करेंगे।