जीवन क्या है और उसका अर्थ क्या है यह प्रश्न सदियाँ से हमारे साहित्यकारो,कवियो और विचारकों से लेकर दार्शनिकों और मनोवैज्ञानिको की चिंतन का विषय बना हुआ है।इस विषय पर अनेको प्रयोग तथा अध्ययन किए गये हैं ।पर शायद इस सवाल का एक ऐसा जवाब जो अधिकतर लोगों को मान्य हो मिल पाना संभव नही है ,एक ही जवाब पर सब एकमत हो, शायद ये भी संभव नही है,क्यूंकि जहां एक ओर हम सभी के जीवन मे अनुभव अलग अलग होते हैं वही हमारा उन अनुभवो को देखने और उन पर अपनी प्रतिक्रिया वयक्त करने का तरीक़ा भी अलग होता है।
पिछ्ले दिनो विक्टर फ्रैंकल की प्रसिद्ध पुस्तक “Man’s Search for Meaning” पढते समय ये विचार बार बार मन मे आता रहा की वो कौन सी ऐसी चीज़ है जो जीवन मे सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है और जो विषम परिस्थितियों मे भी हम को जीने का हौसला देती रहती है।
ये किताब नाज़ी कैम्पस मे यहूदियों के जीवन और वहां उनको दी गयी यातनायो के विषय मे है, और ये भी कि कैसे उस समय पर जब करीब करीब सभी कैदी एक जैसी ही अत्यंत विषम परिस्थितियों से गुज़र रहे थे, फिर भी उन मे से कुछ का मनोबल उतना नही टूटा था, जितना अधिकांश दूसरों का।
कौन थे वो लोग जो उस समय पर भी हौसले से उस समय के बीत जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे? फ्रैंकल के अनुसार वो कैदी जिन्होने जीवन से हार मान ली थी और ये विश्वास कर लिया था की अब उनके जीवन मे आगे सुख पाने या जीवन के कोई सार्थक मायने पाने की उम्मीद ही नही बची है वो मरने वालो मे सबसे पहले थे,वो भोजन और दवा की कमी से भी ज्यादा जीवन मे कुछ मायने ना होंने और जीवन के प्रति निराशा के कारण जीने की इच्छा ही ना होने के कारण मरने वालो मे पहले थे।
बहुत सारे कैदी जीवन की इच्छा रखने के बावजूद भी मारे गये या विभिन्न बीमारियों से मर गये पर फ्रैंकल की ये जानने की इच्छा ज़ोर पकड़ती गयी की वो कौन सी ऐसी चीज़ या भावना थी जिस ने उन मे से कुछ ही लोगों को सही,ऐसी विषम परिस्थितियों मे भी जीने का हौसला दिया,और अत्यन्त विषम और दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थति मे भी,उम्मीद का एक दिया जलाए रखा।
इस अनुभव ने उनके इस विचार को और भी मज़बूत बनाया कि जीवन केवल सुख पाने की इच्छा का नाम नही है जैसा फ्रायड ने माना था या पॉवर पाने की इच्छा भी नही है जैसा प्रसिध्द मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड एडलर ने माना था अपितु इन सब से ज़्यादा महत्वपूर्ण है जीवन मे कोई अर्थ होना। ये अर्थ कुछ लोगों के लिये उनका काम हो सकता है,कुछ के लिये उनके जीवन मे सर्वाधिक महत्वपूर्ण लोग या कुछ के लिये कोई और एब्स्ट्रैक्ट विचार, पर हम सबको कुछ तो ऐसा चाहिये जो विषम परिस्थितियों मे हमे जीने का हौसला दे सके।
मैने अपने अनुभवो मे अक्सर ऐसा देखा है की कई लोग रिटायरमेंट के बाद डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं, क्योंकि उनके लिये जीवन सिर्फ़ उनके काम से ही परिभाषित होता है,उनकी और कोई पहचान ही नहीं है उनके काम के अलावा । वहीं कुछ लोग मिडिल एज मे बच्चों के घर से जाने को लेकर बहुत डिप्रेशन में आ जाते हैं क्यूंकि अचानक ही उनके पास बहुत सारा खाली समय हो जाता है और उनको कोई आइडिया नही है की उसका इस्तेमाल कैसे करना है।
दूसरी ओर कुछ लोग जीवन के इस घटनाक्रम को बहुत पॉजिटिव ढ़ंग से भी लेते है । वे सोचते हैं कि ये जीवन की एक नई शुरुआत भी हो सकती है जब हम अधिक सेटल हैं और आर्थिक रूप से आधिक सक्षम हैं साथ ही उन सारी चीजों को करने के लिये तत्पर हैं जो पहले समय के अभाव मे या धन के अभाव मे नही कर पाये थे।
तो सब कुछ हमारे नजरिये पर निर्भर करता है की हम कैसे अपना जीवन जीना चाहते हैं । जीवन के अनुभव के लिये हमारा दृष्टिकोण क्या है ? क्योंकि सच यही है कि हम सब के जीवन मे सुख और दुख,अच्छे और बुरे दोनो तरह के अनुभव होते हैं पर उन अनुभवो और घटनाओं को देखने का हमारा नजरिया अलग अलग होता है यही कारण है की वही अनुभव किसी के लिये भारी होता है और वो उस से कभी उबर नही पाते जबकि दूसरी ओर , कोई अन्य व्यक्ति उसी तरह का अनुभव करने के बाद अधिक समझदारी से जीवन मे आगे बढ़ जाता है। और शायद उस अनुभव की बदौलत भविष्य मे और बेहतर फैसले कर पाता है।
इसलिये बहुत महत्त्वपूर्ण है की जहां तक संभव हो हम जीवन को अर्थपूर्ण बनाने की कोशिश हर समय करे ये अन्य किसी भी भौतिक जगत की वस्तु से अधिक महत्वपूर्ण हैं हमारे जीवन को सही मायने देने के लिये।