जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर सकी है। यूपी चुनाव में अखिलेश यादव को एक बार फिर वनवास झेलने पड़ेगा। ये दूसरा मौका होगा जब अखिलेश यादव का सपना टूट गया है।
इससे पहले साल 2017 में भी उनको हार का मुंह देखना पड़ा था। हालांकि अखिलेश यादव और उनकी पार्टी को केवल इस बाद से संतोष करना पड़ेगा कि पिछले बार की तुलना में इस बार बेहतर प्रदर्शन रहा है।
दूसरी ओर बीजेपी ने एक बार फिर सत्ता के करीब पहुंच गई है। योगी सरकार यूपी में फिर से बनने जा रही है। योगी अब भी जनता की पहली पसंद बने हुए है।
ऐसे में देखा जाये तो समाजवादी पार्टी की साइकिल की रफ्तार पहले से तेज थी लेकिन सत्ता के करीब पहुंचने में नाकाम रही है। इन चुनावों में समाजवादी पार्टी ने ओपीएस, मुफ्त बिजली, सरकारी नौकरियों की संख्या में बढ़ोत्तरी जैसे कई वादे किए, लेकिन जनता ने इसे नाकार दिया है और अखिलेश यादव का हर दाव उल्टा पड़ता नजर आया है।
अखिलेश की हार के ये रहे बड़े कारण
इस चुनाव में अखिलेश यादव अपनी पार्टी की तरफ से अकेल स्टार प्रचारक रहे। मुलायम सिंह यादव अब राजनीति में सक्रिय नहीं रहे हैं। ऐसे में अखिलेश यादव अकेले बड़े चेहरे थे जबकि बीजेपी के पास बड़े-बड़े नेताओं की लम्बी कतार देखने को मिली। उसके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में सबसे बड़े चेहरे के साथ-साथ अमित शाह, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा और योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े कद के नेता हैं और यही सपा कमजोर पड़ गई।
यूपी का रण जीतने के लिए अखिलेश यादव ने कई बड़े-बड़े वादे किये थे लेकिन जनता को ये वादे भी पसंद नहीं आये। 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा एक बड़ी संख्या में मतदाताओं को खींचने की बड़ी ताकत माना जा रहा था लेकिन जनता को ये भी रास नहीं आया। वहीं बीजेपी ने अखिलेश सरकार का पिछला रिकॉर्ड भी खूब उठाया है। जनता को लगा कि योगी सरकार जनता को बुनियादी सुविधाएं बेहतर देने में कामयाब रही है।
दूसरी ओर सपा का वोट बैंक भी इस बार काम नहीं आया है। मतदाता मुस्लिम और यादव वोट बैंक भले ही मजबूत कहा जाये लेकिन अन्य जातियों ने सपा से किनारा किया है और इसका नतीजा रहा कि ये वोट बैंक अखिलेश को नहीं मिले। वोटरों के एक बड़े हिस्से पर लगभग एकमुश्त कब्जा जमाने के बाद भी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का दोबारा यूपी का सीएम बनने के लिए अभी और लम्बा इंतेजार करना पड़ेगा।
समाजावादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की दबंग छवि भी जनता के जहन में ताजा रही है और अखिलेश यादव को इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। इसके आलावा सपा के नेताओं का विवादित बयान भी अखिलेश यादव पर भारी पड़ा है। अब्बास अंसारी द्वारा कथित ‘हिसाब-किताब’ की बात करना भी जनता को रास नहीं आया है और बीजेपी ने सपा राज में कानून व्यवस्था को जमकर उठाया ।