Saturday - 26 October 2024 - 12:10 AM

पर्दे के पीछे रहकर इन लोगों ने बदली भारतीय हॉकी की तस्वीर

सैय्यद मोहम्मद अब्बास

याद करिये बीजिंग ओलम्पिक को जब भारतीय हॉकी के वजूद पर ही सवाल उठ गया था। भारतीय हॉकी का पतन 2008 में उस समय अपने चरम पर पहुंच गया जब पुरुष टीम 1928 के बाद पहली बार बीजिंग ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर सकी।

ये एक ऐसा जख्म था जो भारतीय हॉकी को अंदर ही अंदर खा रहा था। ये वो दौर था जब भारतीय हॉकी मैदान और मैदान के बाहर संघर्ष कर रही थी। कोच बदले जा रहे थे…कप्तान बदले जा रहे थे लेकिन परिणाम जीरो ही रहा था।

उस वक्त तो लोग इसे नेशनल गेम कहने से भी शर्म महसूस करते थे। हॉकी पर वक्त की ऐसी मार पड़ी कि वो लगातार मैदान पर फिसड्डी साबित हो रही थी लेकिन कहते हैं कि हर रात की एक सुबह होती है और वो सुबह भी आ गई जब भारतीय हॉकी एक बार फिर अपने सुनहरे अतीत को फिर से जिंदा कर दिया है और एक बार फिर भारतीय हॉकी पटरी पर लौट आई है।

PHOTO : SOCIAL MEDIA

उसने 52 साल बाद कंगारुओं को ओलम्पिक में हराया और फिर ब्रिटेन के गुरूर को एक झटके में तोड़ दिया। पेरिस ओलम्पिक में भारतीय टीम भले ही सोना नहीं जीत पाई हो लेकिन उसने कमाल का प्रदर्शन किया। हालांकि जर्मनी के खिलाफ खराब अंपायरिंग ने भारत का खेल बिगाड़ दिया लेकिन उसने स्पेन को हराकर कांस्य पदक जीत लिया है। इसके साथ ही भारत ने लगातार दो ओलंपिक में पदक हासिल किया है।

भारत की इस जीत पर हर भारतवासी गर्व महसूस कर रहा है लेकिन क्या आपने सोचा है भारतीय हॉकी की ये तस्वीर कैसे बदल गई। दरअसल पर्दे के पीछे न जाने कितने लोगों की मेहनत का फल भारतीय हॉकी को मिला है। ये बात सच है कि मैदान पर खिलाड़ी को खेलना होता है लेकिन पर्दे के पीछे कई लोग भी खिलाडिय़ों के साथ-साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं।

ओडिशा सरकार ने जब बढ़ाया मदद का हाथ

आज भारतीय हॉकी एक बार फिर शानदार प्रदर्शन कर रही है। एक दौर था जब भारतीय हॉकी को स्पांसर देने से लोग कतराते थे लेकिन उस कठिन समय में ओडिशा सरकार सबसे पहले आगे आई।

ओडिशा सरकार करीब एक दशक से ज्यादा समय से भारतीय हॉकी को स्पांसर कर रही है। इस वजह से भारतीय हॉकी विश्व स्तर की सुविधा मिली।

इसको लेकर हाल में ही ओडिशा सरकार के पूर्व चीफ एडवाइजर मनीष कुमार ने मीडिया से जानकारी साझा करते हुए कहा था कि कोच, सपोर्ट स्टाफ और बुनियादी सुविधाए के साथ-साथ खिलाडिय़ों के खाने-पीने तक ध्यान रखा गया। अब ओलंपिक में लगातार दो पदक अपने आप में कहानी कह रहा है।

डॉ आरपी सिंह ने चुनी एक बेहतरीन टीम

पेरिस ओलंपिक टीम का चयन किसी और ने नहीं बल्कि अपने जमाने के धाकड़ खिलाड़ी डॉ. आरपी सिंह ने किया है। उन्होंने पर्दे के पीछे रहकर एक अच्छी टीम को चुनी है। उन्होंने एक ऐसी टीम चुनी जिसमें युवाओं के साथ-साथ अनुभव भी कूट-कूट के भरा रहा।

न्होंने देश भर से प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों का चयन किया जो पोडियम पर पहुंचने के हकदार नजर आये। इतना ही नहीं  डॉ. आरपी सिंह यूपी के खेल निदेशक के पद पर रहकर भारतीय हॉकी को संवारने का काम भी करते रहे। हॉकी इंडिया ने जब उनको 2023 में चयनकर्ता बनाया था तभी से वो ओलंपिक के लिए टीम तैयार करने में जुट गए थे।

यूपी के देवरिया में जन्मे आरपी सिंह इससे पहले भी हॉकी इंडिया में कई अहम जिम्मेदारियां निभा चुके थे लेकिन चीफ सेलेक्टर बनने के बाद उनकी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ गई।

पेरिस ओलंपिक खेलों में मुख्य चयनकर्ता डॉ. आरपी सिंह हॉकी इंडिया का भी प्रतिनिधित्व किया। जिनके कार्यकाल में भारतीय हॉकी टीम का प्रदर्शन पहले से बेहतर हुआ।

 

अगर आप रिकॉर्ड देखेंगे तो समझ जायेगे उन्होंने कितने प्रतिभावान खिलाडिय़ों को मौका दिया और आज उसका अच्छा परिणाम देखने को मिल रहा है।

पिछले एक साल में पुरुष और महिला दोनों भारतीय टीमों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन किया है। इसमें पुरुष टीम ने एशियाई खेल व एशियाई हॉकी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता, वहीं महिला टीम एशियाई हॉकी चैंपियनशिप में शीर्ष पर रही। इसके साथ ही जूनियर एशिया कप में लडक़ों और लड़कियों की टीमों ने अच्छा प्रदर्शन किया।

कोचिंग स्टाफ ने भी किया अच्छा काम

भारत की जीत में कोचिंग स्टाफ का खास योगदान है। मुख्य कोच क्रेग फुल्टन ने टीम को आक्रामक और रक्षात्मक दोनों तरह के खेल के लिए भारतीय हॉकी के लिए तैयार किया। कुल मिलाकर पर्दे के पीछे रहकर भारतीय हॉकी कोचिंग स्टॉफ काफी अच्छा काम किया है और आज भारतीय हॉकी एक बार फिर अपने स्वर्णिम काल की तरफ मजबूती से कदम बढ़ा दिया है।

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