उबैद उल्लाह नासिर
(यदि बहादुर शाह ज़फर और टीपू सुलतान ने भी अंग्रेजों से समझौता कर लिया होता तो अंग्रेज़ परस्त रजवाड़ों की तरह उनकी औलादें भी आज ऐश कर रही होती )
लगभग 300 वर्षों तक भारत पर शासन करने वाले उसकी सीमाओं को अफगानिस्तान और म्यांमार तक पहुंचा देने वाले मुग़ल साम्राज्य का सूरज डूब चूका था। सौदागर के रूप ,में मुगल सम्राट जहांगीर के आगे घुटने टेक कर व्यापार की इजाज़त मांगने वाले अंग्रेज़ अब भारत के शासक बन चुके थे, और सम्राट जहांगीर के पड़पोते बहादुर शाह ज़फर को 12 लाख रुपया सालाना पेंशन दे कर उन्हें लालकिला में एक तरह से खाना क़ैद कर चुके थे,
मगर भारत के सम्राट का उनका ओहदा बरकरार था और भारत के अवाम के दिलों पर अब भी उनकी हुकूमत थी। वह अंग्रेजों की गुलामी के बेड़ियाँ तोड़ देने का मन बना चुके थे। 1857 में आज़ादी की यह चिंगारी ज्वाला बन चुकी थी चारों और से अंग्रेजों के खिलाफ बगावत हो रही थी लेकिन इस बगावत का कोई केंद्र बिंदु नहीं था। यह केंद्र बिंदु केवल मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ज़फर ही हो सकते थे, क्योंकि अंग्रेजों की खाना क़ैद के बावजूद सभी रजवाड़े और नवाब ही नहीं अवाम भी उनको अपना सम्राट मानते थे और जब बागियों ने बूढ़े सम्राट से भारत की आजादी की इस जंग का नेत्रित्व करने को कहा था तो उसका तैमूरी खून फड़क उठा। उस ने अपनी आयु अपनी कमजोरी अपना छिना तख्त ओ ताज सब भूलकर खुद को देश की आज़ादी पर कुर्बान कर देने का फैसला किया, शाही मोहर से एक पत्र जारी हुआ:-
“मेरे प्यारे देश वासियों दुनिया में अल्लाह ने जितनी नेमतें बनाई है आजादी उन में सब से बड़ी नेमत है और किसी को अधिकार नहीं कि वह खुदा की मखलूक को गुलाम बनाए, सात समन्दर पार से आए फिरंगियों ने आज हमारे देश को गुलाम बना लिया है। उनके कारण हमारा देश और धर्म सब खतरे में है। उठो और अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने को तयार हो जाओ एक बार हम फिरंगियों को देश से निकाल दें उसके बाद एक आज़ाद देश में हम अपनी किस्मत का फैसला खुद करेंगे ।“
बहादुर शाह ज़फर के इस पत्र से बकौल सुभद्रा कुमारी चौहान
“ बूढ़े भारत में आई फिर से नई जवानी थी
.गुमी हुई आज़ादी की कीमत सब ने पहचानी थी
,दूर फिरंगी को करने की मन में सब ने ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी “
बहादुर शाह ज़फर ने आज़ादी की इस जंग का नेतृत्व तो किया यहाँ तक कि बूढ़े बादशाह ने” तख्त लन्दन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की” तक की हिम्मत दिखाई जब अंग्रेजों ने उनके तीन जवान बेटों के सर काट कर उनके सामने पेश किए तो बूढ़े बादशाह ने हाथ ऊपर उठा के “अल्लाह का शुक्र अदा किया “कि उसके बेटे देश पर शहीद हो गए। बूढ़े बादशाह को गिरफ्तार कर के अंग्रेजों ने उन्हें देश निकाला दे दिया उन्हीं रंगून भेज दिया गया जहाँ लाल किला का मालिक एक छोटे से कमरे मे सिसक सिसक कर अपने देश को याद करता रहा और अपने देश में दफन होने के लिए दो गज ज़मीन की चाह के साथ स्वर्गवासी हो गया।
“है कितना बदनसीब ज़फर दफन के लिए
दो गज ज़मीं भी मिल न सकी कूए यार में “
यही नहीं कि बूढा टूटा हुआ माजूल बादशाह अपने देश को ही याद करता था उसे अपने देश की जनता की चिंता भी सता रही थी। अंग्रेजों के ज़ुल्म से त्रस्त जनता के लिए भी उसके आँख में आंसू थे
“यह रिआया हिंद तबाह हु कहूँ कैसे उस पे जफा हुई
जिसे देखा हाकिमे वक्त ने कहा यह भी काबिले दार है “
विगत दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने तंज़ कसते हुए कहा था कि”मुगलों कि औलादें आज रिक्शा चला रही हैं’ सही कहा था। योगी ने बहादुर शाह जाफर की औलादें हों या टीपू सुल्तान की या 1857 की इस जंग आज़ादी में शरीक होने वाले सैकड़ों रजवाड़ों और नवाबों की औलादें हों सब दुर्दिन का शिकार हैं। दूसरी और जिन रजवाड़ों नवाबों निजामों आदि ने अंग्रेजों का साथ दिया था। वह सब आज भी ऐश कर रहे हैं। बड़ी बड़ी जागीरों महलों आदि के मालिक हैं I “यदि बहादुर शाह ज़फर और टीपू सुल्तान ने भी अंग्रेजों से समझौता कर लिया होता अपने देश की गुलामी स्वीकार कर ली होती तो आज उनके वंशज भी ऐश कर रहे होते “I
विगत दिनों इलाहबाद के मोहम्मद जाहिद और एनी लोगों ने बहादुर शाह ज़फर की एक बहू जो कोलकता में एक चाय नाश्ता का एक मामूली होटल चलाती है उनको एक बड़ी आर्थिक सहायता देने के लिए Crowd funding द्वारा 50 लाख रुपया एकत्रित करने का लक्ष्य रखा इसके लिए उनसे बैंक खाता अदि की डिटेल मांगी गयी तो उनका जवाब था “हम शाही खानदान से हैं दान देते हैं लेते नहीं अपनी मेहनत मजदूरी से अपना घर चला रहे हैं यही काफी है “इस स्वाभिमान को क्या कहेंगे ?
बहादुर शाह ज़फर को उस जमाने में 12 लाख रुपया सालाना पेंशन मिलती थी उनके भारत का सम्राट होने का पद भी बरक़रार था ब्रिटिश रेजिडेंट उनके सामने झुक कर सात बार कवर्निश भी बजा लाता था उन्हें “your Majesty” कह के सम्बोधित भी करता था बहादुर शाह ज़फर अगर अंग्रेजों से समझौता कर लेते और सही तरीके से अंग्रेजों से सौदा करते तो उनकी हैसियत ब्रिटेन के महाराजा जैसी भी हो सकती थी , ना तो उनके परिवार का क़त्ल आम होता न वह खुद सिसक सिसक के मरते और न ही अंग्रेजों के तलवे चाटने वाले दलाल मुखबिर पेंशन खोरों की “सियासी औलादें” उनके परिवार पर तंज़ कसते लेकिन देश की आज़ादी की ललक ने उनको अपने और अपने परिवार को बर्बाद कर लेने की हिम्मत और हौसला दिया था I
आज मुगलों को आक्रान्ता लुटेरा साम्प्रदायिक आदि न जाने क्या क्या कहने का चलन है इसको लेकर एक ऐसा तूफ़ान खड़ा कर दिया गया है की वास्तविकता का कहीं अता पता नहीं है, कपोल कल्पित मन गढ़ंत घटनाओं द्वारा नफरत फैलाई जा रही है, झूट की इस आंधी में यह वास्तविकता छुप गई है की मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने दिल्ली के तख्त पर किसी हिन्दू राजा को नहीं बल्कि इब्राहीम लोदी को हरा कर कब्जा किया था और इसमें उनकी मदद राणा सांगा ने की थी I बाद में राणा सांगा से भी बाबर का युद्ध हुआ जिसमें राणा की तरफ से हसन खान मेवाती युद्ध में शरीक हुए थे इससे स्पष्ट है की यह युद्ध धर्म नहीं बल्कि राज्य के लिए हुए थे जो मध्य काल का नियम था I
बाबर जब बीमार पड़ा और उसे एहसास हो गया कि उसका अंतिम समय आ गया है तो उस ने अपने बेटे हुमायूं को वसीयत की थी “ऐ मेरे बेटे अल्लाह ने तुझे एक ऐसे मुल्क की हुकूमत दी है जो अनेकताओं से भरा है तुम इस देश की जनता का ध्यान रखना उनकी सुरक्षा करना उनके साथ न्याय करना इस देश के हिन्दुओं को गाय पर बहुत आस्था है तुम सख्ती से गौहत्या पर पाबंदी लगा देना “उसकी यह वासीयत उसकी जीवनी “बाबरनामा”में विस्तार से दर्ज है I
हुमायूं से ले कर औरंगजेब तक सभी ने बाबर की इस वसीयत का ध्यान रखा I जब मुग़ल साम्राज्य का सूरज पूरी तरह चढ़ा हुआ था सत्ता के लिए देश के विभिन्न हिन्दू राजाओं से उनके युद्ध तो ज़रूर हुए लेकिन इन युद्धों में धर्म का कुछ लेना देना नहीं था I सांप्रदायिक तत्व महाराणा प्रताप के अकबर से युद्ध और शिवाजी महाराज के औरंगजेब से युद्ध को हिन्दू मुसलमान युद्ध बना कर पेश करते हैं जबकि अकबर के सेनापति राजा मान सिंह थे और उनकी सेना में राजपूतों की संख्या बहुत ज्यादा थी इसी प्रकार महाराणा प्रताप के सेनापति हकीम खान सूरी थे जिनके साथ एक हज़ार पठान सैनिक थे और जब तक एक एक पठान सैनिक शहीद नहीं हो गया तब तक महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के मैदान में डटे रहे थे, सभी पठान सैनिको की शहादत के बाद ही उन्हें मैदान छोड़ कर जंगल की और जाना पडा था।
इसी प्रकार शिवाजी की सेना में भी हज़ारों मुस्लिम सैनिक और कमांडर थे जबकि औरंगजेब के मुख्य सेनापति राजा जय सिंह थे जिनकी वफादारी और बहादुरी से प्रसन्न हो कर औरंगजेब ने उन्हें मिर्ज़ा की उपाधि दी थी I इतिहासकार राम पुनियांनी ने दस्तावेजों से साबित किया है की सभी मुग़ल सम्राटों में सब से ज्यादा हिन्दू अफसर और अन्य कर्मचारी औरंगजेब के शासन में थे I शासन के दो प्रमुख अंग सेना और खजाना तो अकबर से ले कर औरंगजेब तक हमेशा हिन्दुओं के हाथ में रहा है I
पंडित बिशम्भर नाथ पाण्डेय ने औरंगजेब द्वारा जिन मंदिरों मठों को सहायता के रूप में जागीरें और नकद रकम दी उन सब का विस्तारपूर्वक विवरण औरंगजेब के फरमानों समेत अपनी किताब में दिया है जिसे कोई भी पढ़ कर वास्तविकता जान सकता है .
ऑड्रे ट्रेश्की नामक अंग्रेज़ लेखक ने भी अपनी किताब “औरंगजेब मैंन एंड मिथ” में औरंगजेब के कार्यकाल का बहुत ही सटीक वर्णन पेश किया है I
मौर्य काल के बाद भारत की सरहदों का सब से अधिक विस्तार औरंगजेब ने किया था वह लगभग 40 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ था उसकी सरहदें आधे अफगानिस्तान तक और उधर बर्मा तक फैली हुई थीं . औरंगजेब ने ही भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत चीन से छीन कर हिन्दुओं के लिए खोला था (गोगल देखें ). आज जिस अखंड भारत की बात संघ परिवार करता है वह असल में औरंगजेब द्वारा बहुत पहले ही बनाया जा चुका था जिसे अंग्रेजों ने अफगानिस्तान व भारत के बीच ड्यूरंड लाइन और चीन व भारत के बीच मैकमोहन लाइन खीच कर तथा बर्मा (म्यांमार ) को भारत से अलग कर के खंडित किया और बाद में 1947 के बटवारे के बाद वह और सिकुड़ गया.
क़ुतुबुद्दीन ऐबक़ से ले कर बहादुर शाह ज़फर तक लगभग 8-900 साल भारत पर मुस्लिम शासकों ने राज किया लेकिन उन्होंने शासन व्यवस्था में धर्म को कोई बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया, वह चाहते तो भारत को हिंदुस्तान नाम देने के बजाय इस्लामिस्तान या ऐसा ही कोई और नाम दे सकते थे उन्होंने सीतापुर को सीतापुर रामपुर को रामपुर श्रीरंगापटनम को श्रीर्नगापटनम ही रहने दिया भगवन राम की नगरी अयोध्या के सब मंदिर 5-600 साल ही पुराने है अर्थात सब मंदिर मुग़ल काल में ही बने, तुलसी दस जी ने रामायण भी मुगल काल में लिखी और खुद लिखा है “भीक मांग खैबो –मसीत मा सोयबो “ (भीक मांग कर खाएंगे मस्जिद में सो जायेंगे ) I मुगलों को लुटेरा कहने वाले यह नहीं बता पाते कि जैसे अंग्रेज़ भारत का धन ब्रिटेन ले गए थे वैसे ही मुग़ल भारत का धन लूट कर कहाँ ले गए ?
हुमायूं से लेकर बहादुर शाह जफर तक वह सब तो यहीं पैदा हुए और यहीं दफन हुए उनके समय भारत का विश्व की अर्थव्यवस्था में 33% योगदान था अर्थात भारत दुनिया में सब से अमीर देश था जो भी धन था सब भारत की जनता पर ही खर्च किया यहाँ तक की उनकी बनवाई इमारतों से आज भी देश को अरबों रुपया सालाना की आमदनी होती है .
शेरशाह सूरी से हार कर बाबर का पुत्र हुमायूं ईरान भाग गया था लेकिन ईरान के बादशाह की मदद से कुछ वर्षों बाद ही उसने शेरशाह सूरी को हरा कर दिल्ली के तख्त पर फिर क़ब्ज़ा कर लिया था I वह बंगाल की मुहिम पर था की गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तोड़गढ़ पर हमला कर दिया उस समय रानी कर्णावती वहां की शासक थीं वह बहादुर शाह के सामने कमजोर पड़ रही थीं इस लिए उन्होंने राखी भेज कर हुमायूं से मदद मांगी राखी मिलते ही हुमायूं उनकी मदद के लिए चल पड़ा लेकिन समय पर चित्तोड़ गढ़ नहीं पहुँच सका अपनी हार देख कर रानी कर्णावती ने अन्य राजपूत महिलाओं के साथ जौहर कर लिया, चित्तोड़ गढ़ पर बहादुर शाह का कब्जा हो चुका था हुमायूँ ने बहदुर शाह को हरा कर चित्तोड़ गढ़ पर क़ब्ज़ा कर के रानी कर्णावती के बेटे विक्रमसिंह को सत्ता सौंप दी .
हुमायूं को पढने लिखने का भी शौक़ था कहते हैं की अपने पुस्तकालय की सीढ़ी से फिसल कर उसकी मौत हो गयी थी . उसके बाद उसका बेटा जहांगीर बादशाह बना वह अपनी न्याय प्रियता के लिए मशहूर है उसने अपने महल के बाहर एक ज़ंजीर टंगवा दी थी ताकि कोई भी फरियादी वह ज़ंजीर हिला कर बादशाह से न्याय मांग सकता था उसका यह किस्सा बहुत प्रचलित है कि उसकी सब से प्यारी बेगम नूर जहाँ के हाथों एक धोबी की हत्या हो गयी उसकी पत्नी ने वह ज़ंजीर हिला कर जहांगीर से न्याय माँगा जहांगीर ने क़ाज़ीउल कुज़ा (मुख्य न्यायाधीश ) से शरई आदेश पूछा उस ने कहा इस्लाम में खून का बदला खून है जहाँगीर नें तुरंत सिपाहियों को नूर जहाँ को गिरफ्तार कर के दरबार में पेश करने का आदेश दिया, हथकड़ी बेड़ि में जकड कर नूर जहाँ को दरबार में पेश किया गया जहाँगीर ने उसकी गर्दन उड़ा देने का आदेश दिया मगर क़ाज़ीउल कूज़ा ने फिर जहाँगीर से कहा कि इस्लाम मकतूल के वारिस को यह अधिकार देता है कि वह खूनबहा (Blood Money) ले कर कातिल को क्षमा कर दे इस पर नूर जहाँ ने उस धोबन को एक बड़ी धन राशि दे कर अपनी जान बचा ली थी I(इस पर एक क्लासिक फिल्म भी बनी थी )
जहांगीर के बाद उसका बेटा अकबर गद्दी पर बैठा, कम आयु होने के करण बैरम खान उसका संरक्षक बना लेकिन जब अकबर शासन चलाने लायक हो गया तो उसने शासन अपने हाथ में ले कर बैरम खान को हज के लिए रवाना कर दिया अकबर कम पढ़ा लिखा था लेकिन वह बहुत विवेक शील दूरदर्शी और कुशल शासक था उसने सब का साथ सब का विकास वाली पॉलिसी अपनाई और उस पर ईमानदारी से अमल किया, शोशेबाज़ी नही I उसने शासन व्यवस्था के लिए अपने समय के बेहतरीन और योग्य व्यक्तियों को चुन कर नवरत्न नाम की एक कमेटी बना ली थी जिसमें राजा मान सिंह, राजा बीरबल, राजा टोडर मल, राजा तान सेन, अबुल फज़ल, फैजी अब्दुर रहीम खानखाना जैसे विद्वान् शामिल थे I उसने शासन से धर्म को बिलकुल दूर रखा उसने अपना एक नया धर्म “दीन इलाही” शुरू तो किया लेकिन न तो अपने स्टाफ को उसे मानने के लिए मजबूर किया और न ही परिवार वालों को, उसके समय ही इस नए धर्म के अनुयायी एक दर्जन लोगों से आगे नहीं बढ़ सके थे I संघी अकबर और महाराणा प्रताप की लड़ाई को धर्म कि लड़ाई बताते है परन्तु वास्तव में वह धर्म की नहीं सत्ता की लड़ाई थी नहीं तो अकबर की सेना राजा मान सिंह की कमान में न होती और राणा प्रताप की सेना हकीम खान सूरी के कमान में न होती I
अकबर के बाद शाहजहाँ सम्राट बना उस ने राजधानी आगरा से हटा कर दिल्ली को बनाया यहाँ उसने लाल किला जमा मस्जिद और अनेकों इमारते बनवाइ, इमारतें बनवाना उसका खास शौक़ था आज भी इन इमारतों से देश को अरबों डालर की विदेशी मुद्रा मिल रही है I
इस लेख का असल मक़साद न मुगलों का गुण गान है और न ही उनकी ट्रोलिंग, बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों को पाठकों के सामने पेश करना है क्योंकि एक सोचे समझे राजनैतिक लाभ के लिए मुगलों को दानव बना कर पेश किया जा रहा है। जबकि वास्तव में वह अन्य शासकों की तरह ही मध्य युग के निरंकुश शासक थे जिनमें गुण और दोष दोनों थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)