हिन्दू धर्म में भगवान अपने भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई मंत्र हैं, जिनका नित्य जाप कर मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं, लेकिन जब भी आरती पूर्ण होते ही यह मंत्र विशेष रूप से बोला जाता है। जिसको हम लोगों में अपने घरों और मंदिरों में सुन होगा, आइये जाने इस मंत्र का अर्थ…
“कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि”।।
ये मंत्र शिवजी को समर्पित है और इसके जाप से शिवजी प्रसन्न होते हैं। भगवान की कृपा से सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं।
इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है। इसका अर्थ इस प्रकार है-
कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।
करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।
संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं।
भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।
सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।
मंत्र का पूरा अर्थ- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे हृदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।