Tuesday - 29 October 2024 - 2:56 PM

पहली बार दिल्ली पहुंचे ये नन्हें शैतान

जुबिली न्यूज डेस्क

आखिरकार देश की राजधानी में ट्डिडी दल पहुंच ही गया। मई माह मेंं सिरसा बॉर्डर से लौट चुके टिड्डियों का दल महेंद्रगढ़ के रास्ते हरियाणा में प्रवेश किया औ हवाओं के साथ राजधानी दिल्ली में पहुंच गया। शनिवार की सुबह ये दिल्ली के आसमान में छा गए।

मानसून की दस्तक की वजह से हुई नमी और हवाओं का रूख पश्चिम से पूर्व दिशा में बदलने की वजह से टिड्डियों का दल दिल्ली पहुंचने में कामयाब हो पाया।

केंद्रीय टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) के अनुसार पहली बार  दिल्ली-एनसीआर में टिड्डे का प्रवेश हुआ है। एलडब्ल्यूओ के के अनुसार कि महेंद्रगढ़ में शुक्रवार को टिड्डियों के दल ने हमला किया था। वहां से गुरुग्राम होते हुए दिल्ली पहुंच गया। 26 जून तक उम्मीद थी कि यह दल हरियाणा के पलवल तक पहुंचने के बाद वापस लौट जाएगा, लेकिन हवाओं के बदले रूख के कारण ऐसा नहीं हो सका और दिल्ली पहुंच गया।

कृषि एवं विज्ञान पर कार्य करने वाली दिल्ली की गैर सरकारी संस्था साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर (सीएबीसी) के अनुसार वर्ष 1926-31 के पांच वर्षीय टिड्डी महामारी के बाद पहली बार दिल्ली में टिड्डियों का दल पहुंचा है। अब तक हरियाणा में सबसे बड़ा टिड्डियों का हमला 1993 में हिसार में हुआ था।

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश की वजह से नमी बन रही है, जिसके कारण टिड्डियों का दल ने इस तरफ रूख किया है। करीब तीन से चार वर्ग किलोमीटर में टिड्डियों का झुंड दिल्ली-गुरुग्राम बॉर्डर से सटे इलाके वसंत कुंज, आया नगर में देखा गया है। अब भी टिड्डियों का दल घूम रहा है और उम्मीद है कि करीब 50 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद शाम को यह डेरा डालेंगी।

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कुछ दिन पहले राजस्थान के बीकानेर के जरिए टिड्डियों का झुंड प्रवेश किया था और 26 जून को चुरू, हनुमानगढ़ समेत करीब 100 किमी की दूरी तय करते हुए हरियाणा के सीमा में प्रवेश किया। जब यह भारत में प्रवेश किया था, तो यह झुंड बहुत ही बड़ा था।

सीएबीसी के रिसर्च साइंटिस्ट का कहना है कि मार्च के मुकाबले अप्रैल महीने में टिड्डी दलों की बढ़ती संख्या बताती है कि भारत-पाकिस्तान सीमावर्ती क्षेत्र में टिड्डियों के लिए अनुकूल परिस्थितियां होने के कारण वहां पर प्रजनन दर बढ़ी है। जबकि इस क्षेत्र में अप्रैल महीने में प्रजनन नहीं होता था, लेकिन इस बार ऐसा हुआ है। अधिक प्रजनन दर की वजह से आने वाले महीनों में इस तरह टिड्डियों का हमला लगातार झेलना पड़ेगा।

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