Monday - 28 October 2024 - 8:45 PM

यूपी के इन महाविद्यालयों पर लगा रिश्वतखोरी का आरोप

जुबिली न्यूज़ ब्यूरो

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के कई विश्वविद्यालयों में इन दिनों एक अजब-गज़ब खेल चल रहा है. विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध महाविद्यालयों में स्थाई प्राचार्य की नियुक्तियां नहीं की जा रही हैं. रुहेलखंड विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालयों में अनुमोदित प्राचार्यों की नियुक्तियां न किये जाने का मामला बदायूं के हेमंत गुप्ता ने प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और रुहेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति के सामने उठाया तो उत्तर प्रदेश के तमाम विश्वविद्यालयों में चल रही इस तरह की धांधली की तस्वीर दिखाना ज़रूरी महसूस हुआ.

हेमंत गुप्ता ने राज्यपाल और कुलपति को भेजे पत्र में कहा है कि बदायूं केसरी चौधरी बदन सिंह मेमोरियल महाविद्यालय, इस्लामनगर में मार्च 2020 से कोई भी अनुमोदित प्राचार्य नहीं हैं लेकिन विश्वविद्यालय के कर्मचारियों की मिलीभगत से और रिश्वत लेकर इसे परीक्षा केन्द्र लगातार बनाया जा रहा है. बदायूं केसरी चौधरी बदन सिंह महाविद्यालय, इस्लामनगर की तरह ही श्रीमती भगवती देवी महाविद्यालय, रुदायन में भी काफी समय से कोई अनुमोदित प्राचार्य नहीं है. हेमंत गुप्ता ने राज्यपाल से अपनी शिकायत का भौतिक सत्यापन कराने की प्रार्थना की है.

हेमंत गुप्ता की यह शिकायत इसलिए और भी गंभीर हो जाती है कि जहाँ एक ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ परीक्षाओं को बिलकुल पारदर्शी तरीके से कराना चाहते हैं और परीक्षा में धांधली उन्हें बर्दाश्त नहीं है तो फिर बगैर अनुमोदित प्राचार्यों वाले महाविद्यालयों में होने वाली परीक्षाओं पर प्रश्नचिन्ह का लग जाना भी लाज़मी है.

अब आइये आपको विभागीय तैयारी की भी तस्वीर दिखाते हैं. साल 2021 के 13 अगस्त को उच्चतर शिक्षा आयोग प्रयागराज ने 290 प्राचार्यों की सूची जारी की थी ताकि इन्हें विभिन्न महाविद्यालयों में नियुक्त कर दिया जाए. इसके बाद भी महाविद्यालय बचजाएं तो 66 प्राचार्यों की प्रतीक्षा सूची भी तैयार रखी गई थी.

उच्चतर शिक्षा आयोग ने महाविद्यालयों में नियुक्त करने के लिए प्राचार्यों की जो सूची बनाई थी उसमें विभिन्न महाविद्यालयों के 16 एसोसियेट प्रोफेसर भी शामिल किये गए थे. आयोग ने अपना काम कर दिया लेकिन महाविद्यालयों को स्थाई प्राचार्य इसके बावजूद नहीं मिल पाए. नतीजा यह है कि नियुक्ति के आदेश के बावजूद महाविद्यालयों को कार्यकारी प्राचार्यों के भरोसे चलाया जाता रहा. यह हालात एक दो दिन से नहीं हैं. महाविद्यालयों की ऐसी दशा पिछले 20 साल से है.

उच्चतर शिक्षा आयोग ने 356 प्राचार्यों की तलाश कर ली थी लेकिन हालात यह हैं कि प्रदेश के 300 से ज्यादा अनुदानित महाविद्यालयों को कार्यवाहक प्राचार्य के भरोसे चलाया जाता रहा. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय (बलिया) और वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय (जौनपुर) से सम्बद्ध 60 अनुदानित महाविद्यालयों में स्थाई प्राचार्य नियुक्त नहीं किया गया.

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय (बलिया) और वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय (जौनपुर) की हालत को संज्ञान में लेने के बाद उच्चतर शिक्षा चयन आयोग ने इससे पहले भी 26 जून 2017 को प्राचार्यों के खाली पदों को भरने के लिए 284 पदों को भरने के लिए अखबारों में विज्ञापन दिया था. इसके बाद एक संशोधित विज्ञापन भी छपा जिसमें बताया गया कि प्राचार्यों के रिक्त पदों की संख्या 290 है.

प्राचार्यों की कमी को दूर करने के लिए विभागीय प्रयास चलते रहे और 29 अक्टूबर 2020 को लिखित परीक्षा भी कराई गई. इस परीक्षा के बाद 610 लोगों को इंटरव्यू के योग्य पाया गया. 21 मार्च 2021 को इंटरव्यू की प्रक्रिया भी शुरू हुई. यह प्रक्रिया चल ही रही थी कि अचानक से कोरोना ने हमला बोल दिया और सब कुछ जहाँ का तहां रोक देना पड़ा. सात जुलाई से 12 अगस्त तक इंटरव्यू की प्रक्रिया फिर से चली और चयन प्रक्रिया पूरी कर ली गई. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने लम्बी प्रक्रिया के बाद चयनित प्राचार्यों की नियुक्ति के आदेश जारी किये. योगी सरकार ने विभिन्न महाविद्यालयों में 230 प्राचार्यों को स्थाई प्राचार्य दे भी दिए हैं. कुछ महाविद्यालयों में प्राचार्य का मसला अदालत में होने की वजह से उन्हें कार्यवाहक प्राचार्य के भरोसे चलाया जा रहा है.

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