जुबिली न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली. बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने राज्य के मदरसों में पढ़ रहे 15 लाख से ज्यादा बच्चो के भविष्य को ध्यान रखते हुए एक बड़ा फैसला लिया है. मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे अब उर्दू- अरबी तो पहले की तरह से पढ़ेंगे ही साथ ही साइंस की पढ़ाई भी करेंगे. लैब में एक्सपेरिमेंट भी करेंगे. इंग्लिश में बात करते हुए अपनी पढ़ाई की खूबियाँ भी बताएँगे.
बिहार में तकरीबन चार हज़ार मदरसे हैं. इन मदरसों में 15 लाख बच्चे शिक्षा ले रहे हैं. केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने कुछ साल पहले मदरसों का सिलेबस बदलते हुए मदरसों की पढ़ाई को रोजगारपरक शिक्षा से जोड़ने का आदेश दिया था. पीएम मोदी ने कहा था कि मदरसों में पढने वाले बच्चो के एक हाथ में कुरआन हो तो दूसरे हाथ में विज्ञान की पुस्तक होनी चाहिए. वह धर्म का ज्ञान लें साथ ही रोज़गारपरक शिक्षा भी हासिल करें. बिहार सरकार ने नरेन्द्र मोदी सरकार के उसी मॉडल को अपनाने का फैसला लिया है.
कुछ दिन पहले लोकसभा में बिहार के मदरसा शिक्षा बोर्ड की शिक्षा को लेकर अवाल भी उठा था. जिस पर शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा था कि बिहार में चार हज़ार मदरसे रजिस्टर्ड हैं. इनमें 1942 मदरसे सरकारी हैं और उन्हें सरकारी अनुदान दिया जाता है. सरकार ने शिक्षा व्यवस्था में बदलाव का फैसला किया तो सभी मदरसों के लिए लिया. सभी 15 लाख बच्चो का भविष्य बेहतर बनाने के लिए उन्हें धार्मिक शिक्षा के साथ देश की मुख्यधारा से जोड़ने वाली शिक्षा देने का फैसला किया गया.
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मदरसों के बच्चो को मुख्यधारा की शिक्षा देने के लिए मदरसा शिक्षकों को ट्रेनिंग दी गई ताकि वह इस शिक्षा के लिए भी अपडेट रहें. कोरोना काल आया तो मदरसा शिक्षकों को ऑनलाइन पढ़ाने की ट्रेनिंग भी दी गई ताकि वह बच्चे पढ़ाई में पिछड़ न जाएँ.