जुबिली न्यूज डेस्क
यह सरकार संस्थानों को कमजोर करने की प्रक्रिया को तेज कर रही है क्योंकि ये चीजों को इस्तेमाल करने के मामले में काफी बेशर्म हैं, लेकिन समस्या इससे कहीं ज्यादा गहरी है। समय के साथ सभी संस्थानों जैसे संसद, विधायिका, नौकरशाही, न्यायपालिका और मीडिया का क्षरण हो रहा है।
यह बातें पूर्व कंद्रीय मंत्री अरूण शौरी ने एक साक्षात्कार में कहीं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे शौरी मौजूदा सरकार के खिलाफ काफी मुखर रहे हैं। अब तक कई बार वह सरकार के कामकाज पर सवाल उठा चुके हैं।
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में एक बार फिर अरुण शौरी ने केन्द्र सरकार पर तीखा हमला बोला है।
मौजूदा सरकार की तुलना पूर्व की इंदिरा गांधी सरकार के कार्यकाल से करते हुए शौरी ने कहा कि श्रीमती (इंदिरा गांधी) गांधी में कई खासियतें थीं। जैसे कि उनमें शर्म थी, लेकिन मौजूदा सरकार में वह भी नहीं है। इस सबकी शुरुआत पूर्व कानून मंत्री पी.शिवशंकर के समय से हुई थी, जहां समर्पित न्यायपालिका और समर्पित नौकरशाही थी।
शौरी ने कहा कि इंदिरा गांधी ने तीन जजों को बर्खास्त कर दिया था। उनके इस कदम से ऐसी धारणा बन गई कि “अगर आप वैसा नहीं करोगे, जैसा हम चाहते हैं तो हम उसी के अनुसार कार्रवाई करेंगे।
यह भी पढ़ें : आखिर सरकारें कब पूरा करेंगी सुशासन देने का वादा?
यह भी पढ़ें : बिहार चुनाव में क्या कर रहे हैं राहुल गांधी?
यह भी पढ़ें : भीड़ के उत्साह में खुद की नसीहत भूल रहे हैं नेता
पूर्व मंत्री शौरी ने कहा कि ” मुझे ऐसा लगता है कि मौजूदा दौर में कई बड़े पेड़ कुल्हाड़ी से काटे जाने के बजाय धीरे-धीरे दीमक की वजह से ही गिर जाएंगे। ऐसे में हम नागरिकों को समय रहते जागना पड़ेगा। न्यायपालिका के मामले में हमें जवाबदेही तय करनी होगी और यह लगातार फैसलों का विश्लेषण करने से होगी।”
यह भी पढ़ें : मतदान से पहले अमेरिका में लोग क्यों खरीद रहें है बंदूकें
यह भी पढ़ें : शांत रहने वाला यूरोप फिलहाल चिंता से भरा क्यों दिखाई दे रहा है ?
यह भी पढ़ें : … तो इस मुद्दे से बदली बिहार की चुनावी हवा
उन्होंने कहा कि ” मुझे लगता है कि मौजूदा सरकार में जो कुछ हो रहा है, वह बीते 40 सालों का प्रतिफल है। यह सोचने पर विवश कर रहा है कि संस्थान, जांच एजेंसियां और पुलिस सभी सीएम की निजी सेना बन गए हैं। साथ ही जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट का व्यवहार रहा है। कई मामलों में उनकी प्राथमिकताओं को इस बात से समझा जा सकता है कि उनके पास अर्नब गोस्वामी और सुशांत सिंह राजपूत के लिए समय है लेकिन कश्मीर या प्रवासियों के लिए नहीं?”