डॉ. सीमा जावेद
लखनऊ शहर में हाल ही में आए भीषण तूफान और बारिश इस बात की एक झलक मात्र है कि अगर हमने अपने शहरों के बुनियादी ढांचे में सुधार ना किया तो आगे आने वाले तो भविष्य में क्या होने वाला है।
इसके लिए बरसों पुराने हो चुके ड्रेनेज सिस्टम को फिर से जलवायु परिवर्तन के चलते उपज रही परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए नवनिर्माण किए जाने की ज़रूरत है।
उनकी संरचना को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल क्लाइमेट रेसिलिएंट बनाए जाने के लिए जल्द कार्यवाही करनी होगी ।
थोड़े समय की भारी बारिश के कारण लखनऊ के आसपास के 22 से अधिक जिले प्रभावित हुए हैं, जिससे सड़क धंस गईं और फसल को नुकसान हुआ।
हालांकि फसल बीमा योजना ने किसानों के लिए चीजें आसान कर दी हैं, लेकिन वर्तमान मूसलाधार बारिश के कारण जलभराव और जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले वर्षों में ऐसी स्थितियां बढ़ने की संभावना है, जो चिंता का कारण है।
क्लाइमेट रेसिलिएंट ढाँचा इस तरह से योजनाबद्ध, डिज़ाइन, निर्मित और संचालित किया जाता है जो बदलती जलवायु परिस्थितियों का अनुमान लगाता है, तैयारी करता है और उनके अनुकूल होता है।
यह इन जलवायु परिस्थितियों के कारण होने वाले व्यवधानों का सामना कर सकता है और उसे तेजी से उभर सकता है।जलवायु अनुकूलन के लिए अत्यधिक बारिश की घटनाओं के कारण होने वाली बाढ़ सहित जलवायु परिवर्तन के परिणामों से उत्पन्न जोखिमों को कम करने का प्रयास करता है।
सिंगापुर के वृद्धजन के लिए बनाये गये होम कम्पुंग एडमिरल्टी ने वर्ल्ड आर्किटेक्चर फेस्टिवल अवार्ड 2016, स्कायराइज ग्रीन अवार्ड 2017 और वर्ल्ड बिल्डिंग ऑफ द ईयर 2018 जीता है। इसकी हाइड्रोलॉजिकल प्रणाली का डिज़ाइन हर साल दस लाख गैलन से अधिक के पानी को संरक्षित करता है। बारिश और स्टॉर्म वाटर के बहाव को वर्षा जल संचयन टैंक में संग्रहीत किया जाता है और सिंचाई के लिए पुन: उपयोग किया जाता है।
कुछ विकसित देशों में एक मनोरंजन पार्क क्षेत्र के साथ जल निकासी कार्यों का संयोजन किया गया है । पार्क के नीचे शहर के रेन वाटर ड्रेनेज की एक जल नहर बनायी है जो एक झील की ओर फैली हुई है जिसमें वर्षा जल समाहित रहता है। जैसे की क्लाइमेट पार्क, डेनमार्क।इस पार्क में 22.6000 घन मीटर वर्षा जल के लिए जगह है ।
बादल फटने से होने वाली बाढ़ से बचने के प्रयास में, कोपेनहेगन की सड़कों में से एक, हेलेनवेज स्ट्रीट को वर्षा जल के घुसपैठ के साथ एक जलवायु सड़क में बदल दिया गया है। इसमें हर दो टाइलों के बीच में जगह है जो अंडरग्राउंड ड्रेनेज में वर्षा जल को ले जाती है। यहाँ से यह वर्षा जल ग्राउंड वाटर में रिचार्ज किया जाता है। क्लाइमेट एडाप्टेशन की ऐसे कई मिसालें दुनिया में बन रही है।
भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी के शोध निदेशक और संयुक्त राष्ट्र की आईपीसीसी रिपोर्ट में में शहरों, निपटान और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के प्रमुख लेखक – डॉ अंजल प्रकाश के अनुसार – भारत के अधिकांश शहरों का बुनियादी ढाँचा क्लाइमेट रेसिलिएंट नहीं है। यह स्थिति सभी राज्यों में शहरों की है। अब क्लाइमेट चेंज के बढ़ते प्रभावों के बीच, नुकसान और परेशानी को कम करने के लिए नगर नियोजन और नीतिगत निर्णयों पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।
स्काईमेट वेदर के महेश पलावत के अनुसार- “लखनऊ और उसके आस पास के इलाके कानपुर बहराइच लखीमपुर खीरी, सीतापुर में हुई भारी बारिश की वजह बंगाल की खाड़ी में लो प्रेशर एरिया बना जो छत्तीसगढ़ तक फैल गया और उसके बाद उसने साइक्लोनिक सर्कुलेशन का रूप ले लिया।
यह साइक्लोनिक सर्कुलेशन नार्थ ईस्ट डिश में रिकर्व हुआ जिसने सेंट्रल उत्तर प्रदेश में झमाझम गरज चमक के साथ पानी बरसाया। अब अगले कुछ दिनों में रिमझिम बारिश बनी रहेगी और प्रदेश के अधिकांश हिस्सों को इससे राहत मिलेगी।
अब एक और लो प्रेशर एरिया बंगाल की खड़ी पर डेवलप हो रहा है।हमारा अनुमान है की छत्तीसगढ़, उड़ीसा और मध्य प्रदेश सहित प्रदेश के दक्षिण कुछ हिस्सों में 15-17 सितंबर के बीच खूब जम कर बारिश होगी।“
ऐसे में जलवायु संबंधी चिंताओं के इर्द-गिर्द शहरी विकास योजना बनाने और नीति बनाने की तत्काल आवश्यकता है। मौसम की ये चरम स्थितियां और बदलते पैटर्न आने वाले समय में और अधिक तीव्र और लगातार होंगे। जलवायु परिवर्तन की योजना जैव क्षेत्रीय स्तर, जिला और उप-जिला स्तर पर होनी चाहिए।
संसाधनों, घटती नीतियों, जलवायु परिस्थितियों और जिलों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है और लोगों की मदद के लिए उन्हें कैसे बदला जा सकता है, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। शहरी विकास योजनाओं को जलवायु संबंधी चिंताओं के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।