Monday - 28 October 2024 - 7:41 PM

वित्त विभाग में हर साल 5 करोड़ का हो रहा है नुकसान लेकिन कार्यवाही अब तक नहीं

जुबिली स्पेशल डेस्क

यूपी  के आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा निदेशालय की अनदेखी के कारण कई ऐसे कर्मचारियों के गलत प्रोमोशन के कारण सरकार के ऊपर वित्तीय बोझ बढ़ा हुआ है मगर मामला खुलने के बाद सरकार द्वारा दिए गए आदेश पर कार्यवाही अब तक नहीं हो पाई है । नतीजतन सरकार को हर महीने अतिरिक्त आर्थिक  बोझ का सामना करना पड़ रहा है ।  

जुबिली पोस्ट ने फरवरी 23, 2020 को खबर लगाई थी कि आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा निदेशालय की मेहरबानी से करोड़ों का अधिक भुगतान किया जा रहा है ।  इसके बाद निदेशक, आंतरिक लेखा परीक्षा विभाग ने शासन से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए कहा था।  अब फिर 22 जुलाई 2020 को शासन ने तत्काल कार्यवाही करने को कहा है लेकिन निदेशक ने इस पर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।

इस मामले में  जिन कर्मचारियों से  वसूली की जानी है उन्हें मौका देने के लिए उन हजारो़ कर्मचारियों  की भी एसीपी नहीं लगाई जा रही है जो वास्तव में इसे पाने के योग्य हैं। इसे निदेशालय के उन अधिकारियों का मनमानपन ही कहा जाना चाहिए , जो शासनादेश को भी मानना नहीं चाहते।

क्या है पूरा मामला 

निदेशक आंतरिक लेखा परीक्षा विभाग द्वारा, शासनादेश की अनदेखी करने के कारण प्रतिवर्ष लगभग 5 करोड़ से अधिक भुगतान किए जाने का प्रकरण संज्ञान में आया था । शासनादेश संख्या एस ई-130/दस-2020-आ-6/2018,  13.02.2020 द्वारा उत्तर प्रदेश के लेखा संवर्ग के सहायक लेखाकारों की लेखाकार के पद पर तथा लेखा परीक्षक संवर्ग के ज्येष्ठ लेखा परीक्षक के पद पर विभागीय परीक्षा प्रथम के कारण पदोन्नति के पूर्व व्यवस्था में उत्पन्न असमानता को दूर करने के संबंध में दिशा-निर्देश और मार्गदर्शन दिया गया है।

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इस शासनादेश में स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि 24.09.2001 से 10.10.2011के मध्य विभागीय परीक्षा पास किये बिना ही पदोन्नति की कार्यवाही की गई है जो शासनादेश के विपरीत है। शासनादेश न मानने का परिणाम यह है कि शासन को हर वर्ष 5 करोड़ 1 लाख 39 हजार 648 रुपये (5,01,39,648) का चपत लग रही है।

कैसे अधिक भुगतान हो रहा है

24.09.2001-10.10.2011 तक ग्रेडेशन लिस्ट के अनुसार लेखा परीक्षक से वरिष्ठ लेखा परीक्षक जो क्रमांक 177 से 220 तक बनाये गए ? हैं जो संख्या में 43 है, और इन लोगों ने विभागीय परीक्षा पास नहीं की है। वरिष्ठ लेखा परीक्षक का सातवें वेतनमान में 4200/-ग्रेड पे पर न्यूनतम वेतन 35400/-और सम्प्रेक्षक के ग्रेड पे 2800/-पर न्यूनतम वेतन 29200/-है।

  • यदि दोनों पदों में न्यूनतम वेतन को ही आधार माना जाए तो 6200/-का अंतर आता है जिस पर 17 प्रतिशत डीए की दर से 7254/- आ रहा है। 43 लेखा परीक्षक पर प्रतिमाह लगभग तीन 3 लाख 11 हजार 922/-हुआ।
  • इसी प्रकार उक्त अवधि में ग्रेडेशन लिस्ट के अनुसार क्रमांक 824 से 1369 तक सहायक लेखाकार से लेखाकार बनाए गए हैं जिसमें 13 कर्मी 24.09.2001 के पहले के हैं।

इस प्रकार उक्त अवधि में कुल 533 कर्मी का अनियमित प्रोन्नति की गयी है,जिसके कारण 533*7245/-से 38 लाख 66 हजार 382 रुपये की क्षति हो रही है।

अर्थात यह धनराशि अकाउंटेंट और लेखा परीक्षक को मिलाकर प्रति माह 41लाख 78 हजार304 रुपए हुआ और यह धनराशि 1 वर्ष में 5 करोड़ 01 लाख 39 हजार 648 रुपये होगी। इस प्रकार प्रति वर्ष शासन के आदेश का पालन न करने के कारण 5 करोड़ से भी ज्यादा की राजस्व क्षति पहुंचाई जा रही है।

फिर कार्यवाही से बचाने के लिए लिखा पत्र

22 जुलाई 2020 को शासन ने अधिक भुगतान की वसूली के लिए तत्काल कार्यवाही करने को कहा लेकिन अब निदेशक ने  28 जुलाई 2020 को उन विभागों को कार्यवाही करने के लिए लिख दिया है जहां से इन कर्मियों को निदेशालय के अंदर लाया गया है।

सूत्र बता रहे हैं कि आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा निदेशालय सब कर्मियों की एसीपी लगाता है, उनके सर्विस रिकॉर्ड भी यहीं रखे जाते हैं।इस लिये इस पत्र का कोई मतलब नहीं होना चाहिये। ऐसा लगता है कि निदेशालय के अधिकारी वसूली के शासन के आदेश पर कार्यवाही करने से बचना चाह रहे हैं।

अधिकारी समय से नहीं लगा रहे एसीपी

सूत्रों का कहना है कि यहां पूरी मनमानी है। समय से कोई काम नहीं होते हैं। इन लेखाकार/लेखा परीक्षकों को फायदा देने के फेर में अन्य कर्मियों की भी एसीपी नहीं हो रही है और उन्हें हर माह आर्थिक नुकसान उठा रहे हैं। ऐसे कर्मियों को कुछ गड़बड़ किये जाने का अंदेशा दीख रहा है।

पढ़ें अगला अंक- लेखा परीक्षकों की सीनियारिटी लिस्ट में की गई भारी गड़बड़ी।

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