मयंक पांडेय
कोविड-19 से लड़ने मे हमारा पहला हथियार है “मास्क”, इसकी अनिवार्यता में कोई दो राय नहीं है।हम कोरोना से बचाव के लिये घरों से बाहर निकलते समय मास्क का प्रयोग करते हैं और ये सबके लिये आवश्यक भी है। इस महामारी से बचाव में एक अहम कड़ी है मास्क।
कल शाम को रोजमर्रा का सामान लेने जनरल स्टोर पर गया तो दुकानदार ने एक अजनबी की तरह सामान दिया। एक अजीब सा बेगानापन लगा, हम अपनी जरूरत का सामान लेते हैं तो अक्सर आस- पड़ोस की एक ही दुकान से लेते हैं और ग्राहक दुकानदार का एक रिश्ता- सा बन जाता है जहां दुकानवाला धीरे- धीरे जान जाता है कि आप पेस्ट कौन सा लेंगे और साबुन कौन सा !पर आज मुंह पर मास्क लगा होने से वो पहचान छुप गयी थी।
घर लौट कर इस बात पे सोचा तो पाया कि इस 3×6 इंच के मास्क ने बहुत कुछ उलट -पलट कर रख दिया है हम सबकी जिंदगी में। मैं इस मास्क से जुड़े कुछ अन्य अनछुए पहलुओं पर आपका ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूं।
सामाजिक एवम साहित्यिक पहलू
जब हम किसी से मिलते हैं बात करते हैं तो हमारे जाने के काफी समय बाद भी हमारा चेहरा सामने वाले की स्मृति में अंकित रहता है। अक्सर ऐसा होता है कि सामने वाले का नाम नहीं याद आता पर चेहरा जाना- पहचाना लगता है, ऐसा बार- बार लगता है कि इस शख्स को कहीं मिला हूं, पहले भी देखा है। हमारे व्यक्तित्व को पहचान देता हमारा चेहरा आजकल छुप गया है।
चाहे वों “हंसता हुआ नुरानी चेहरा, काली जुल्फें रंग सुनहरा” हो या “तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती नजारे हम क्या देखें” या “तेरे चेहरे में वो जादू है बिन डोर चला आता हूं” ……
चेहरा सदा से फिल्मी गानों में प्रेम प्रदर्शित करने का जरिया रहा है। शायरों ने इसकी तुलना चांद से की है,महबूब की एक झलक को बेचैन आशिक इस चेहरे के दीदार को ही तरसते हैं।
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प्रेम रस या सौंदर्य रस के साहित्य में चेहरे के वर्णन के बिना नायक या नायिका के बखान की आप कल्पना ही नहीं कर सकतें हैं। चाहे वो कालिदास की अभिज्ञानशाकुंतलम हो या अपनी प्रेमिका के उपर शायरी करता पास पड़ोस का प्रेमी बिना चेहरे की सुंदरता को बताये प्रेम की अभिव्यक्ति अधूरी होगी।कोई चेहरे की चांद से तुलना करता है तो आंखों को झील से, किसी कवि की रचना में अधरों की लालिमा का बखान होता है तो कोई आंखों के काजल की। चेहरा हमेशा से केंद्र बिंदू रहा है प्रेम रस और सौंदर्य के वर्णन में।
आज हमसे हमारी पहचान छीन रहा है मास्क,अभिवादन कम हो गया है मास्क के कारण। पहले जब हम किसी बड़े को देखते है सर झुका के अभिवादन करते हैं, अब मास्क में पता ही नहीं चलता की सामने से कौन गुजर गया। ये सब कुछ महीनों तक ही चलेगा.उसके बाद मानव सभ्यता कोरोना को हरा देगी पर जब तक है तब तक इसने बहुत ज्यादा प्रभावित किया है हम सबको।
आर्थिक पहलू
पाउडर,क्रीम, लिपस्टिक, फांउडेशन, काजल,आई लाइनर इत्यादि कास्मेटिक के सामान हमें देखने में या खरीदते समय उतने आवश्यक नहीं लगते पर राष्ट्रीय स्तर पर इसका स्वरूप बहुत बड़ा है। एसोचैम के अनुसार भारतीय कास्मेटिक का बाजार 6.4 बिलीयन अमेरिकी डालर (48,000 करोड़) रूपये का है जो एक अनुमान के मुताबिक 2025 तक लगभग 20 बिलीयन डालर (1.5 लाख करोड़) तक पहुंचने की संभावना है। तमाम आर्थिक उतार चढ़ाव के बावजूद कास्मेटिक इंड्रस्ट्री पिछले 5 साल से 20-25% की दर से हर साल बढ़ रही है। सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग हाल फिलहाल के दशकों से नहीं हजारों सालों से हो रहा है।
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मिस्र की सभ्यता आज से लगभग 12000 वर्ष पूर्व स्त्री और पुरूषों द्वारा सुगंधित तेल के प्रयोग के साक्ष्य मिले हैं जिनका प्रयोग उस समय मिस्र की भीषण गर्मी के समय त्वचा को मुलायम रखने के लिये किया जाता था। सौंदर्य प्रसाधन के प्रचीनतम साक्ष्य 1500 ई पू(3500) वर्ष पूर्व सिन्धु घाटी सभ्यता में मिले हैं जिनमें सौंदर्य की रक्षा और सुन्दरता के लिये बहुत ही उनन्त तकनीक का प्रयोग होता था।
इसके अलावा हल्दी,चंदन,ऐलोवीरा इत्यादि के प्रयोग और उनके महत्तव बारे में बहुत सारे ग्रंथों संहिताओं मे विस्तृत वर्णन मिलता हैं। महाभारत में पांडव अज्ञातवास का समय गुजार रहे थे तब द्रौपदी ने विराट की रानी के यहां शैरांध्री के रूप में कार्य किया था और इस कार्य मे वो प्रसाधन पेटिका लेकर जाती थी जिसमें सौंदर्य प्रसाधन से जुड़ी सामग्रीयां होती थी। हजारों साल से हमारी दिनचर्या का हिस्सा रहा सौंदर्य प्रसाधन आज कोविड-19 के समय सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है जिसका प्रमुख कारण है मास्क। मास्क पहनने के बाद चेहरा ढक जाता है और फिर किसी सौंदर्य प्रसाधन(कास्मेटिक) का प्रयोग हास्यादपद लगेगा।
हालिया की रिपोर्ट में एक मजेदार बात पता चली है कि 25-35 वर्ष के भारतीय युवा वर्ग में पुरूषों द्वारा सौंदर्य प्रसाधन पर किया गया खर्च पूरे विश्व मे किये जाने वाले खर्च से प्रतिशत में ज्यादा है। भारत में पुरूष कास्मेटिक सेगमेंट 2021 तक अकेले 35,000 करोड़ रूपये तक पहुंचने की संभावना है। सौंदर्य प्रसाधन पर अब युवाओं का अधिकाधिक रूझान हुआ है भारतीय पुरूष कास्मेटिक मार्केट की चक्रवृद्धि वार्षिक दर (CAGR) 45% है जो विश्व में सर्वाधिक है। इसके अलावा इस क्षेत्र से लाखों लोग रोजगार पा रहे हैं, ब्यूटी पार्लर,स्पा और मसाज सेंटर छोटे छोटे शहरों तक पहुंच चुके हैं। इस पूरे उद्योग पर मास्क ने कुछ समय के लिये ग्रहण लगा दिया है। इस समय सबसे ज्यादा आवश्यक मास्क है इसमें कोई दो राय नहीं है पर क्या किसी ने कल्पना भी की थी कि एक 4X6 इंच का मास्क 48000 करोड़ के सालाना उद्योग पर भारी पड़ेगा।
मानसिक पहलू
लगातार मास्क पहने रहने से एक अजीब सी उलझन महसूस होती है, चिढ़चिढ़ापन आता है। हम सब ये जानते हैं कि ये हमारा जीवन ऱक्षक है और हमें इसकी आदत डालनी है पर आदत नहीं है हमें इस बंधन की। हमारा शरीर हमारा मन इसके लिये तैयार नहीं है। अपनों के बीच हमें अजनबी बना देता है मास्क। शायद कभी हमें महसूस न होता हो कि झुंझलाहट चिढ़चिढ़ापन जो अक्सर आ रहा है सबको उसको पीछे कहीं न कहीं ऐसे बंधन में जीना उत्तरदायी है। स्वच्छंद रूप से हंसते खिलखिलाते घूमने का आदी मनुष्य बंध सा गया है लाकडाउन,मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के चक्रव्यूह में।
डार्विन के उत्तरजीविता की प्रत्याशा के सिद्धांत का पालन करते हुए मानव सभ्यता हजारों साल तक आवश्यकता के अनुरूप खुद को ढालने में सफल रही है और आगे भी रहेगी। कोविड-19 के बुरे दौर से हम सब बाहर आयेंगे और फिर से वही चहचहाते चेहरे, मुस्कुराहटे बिखेरते लोग,पार्कों में झूलते बच्चे और एक दूसरे के साथ हंसी खुशी सारे त्योहार, शादी-ब्याह, बर्थडे मनायेंगे हम। चेहरे पर मास्क द्वारा लगाया ये ग्रहण अभी हमारी भलाई के लिये है, हमारे अस्तित्व को बचाने के लिये है इसलिये हम सब इसे लगाये हुए ईश्वर से प्रार्थना करतें हैं कि इस मास्क के ग्रहण को जल्दी खत्म करे।
(लेखक आयकर विभाग सूरत में ज्वाइंट कमिश्नर हैं।)