Wednesday - 20 November 2024 - 12:02 AM

विकास के सपने हैं, शजरा है, मंजर है उजाड़ का..

ओम प्रकाश सिंह
ओम प्रकाश सिंह

जहां गूंजती थी रामनाम धुन वहां शोर है हथौड़ों की चोट का..

रामनगरी अयोध्या की जो वीथिकाएं राम नाम से गूंजा करती थी, वहां आजकल हथौड़ों के चोट आवाज सुनाई पड़ती है। जिन दीवारों को रोली और चंदन से संवारा गया था उन्हें मशीनों से रौंदा जा रहा है। राम की अयोध्या का यह मंजर देखकर हर अयोध्यावासी का दिल दहल जा रहा है फिर भी वह यह सोच कर सह ले रहा है कि विकास का जो सपना और शजरा योगी सरकार दिखा रही है, वह बहुत अच्छा है।

 

पौराणिक अयोध्या सिर्फ शब्द भर नहीं है , शब्दब्रह्म है। कमोबेश व्यापक,व्यापक , अखंड और अनंत जैसी स्थिति मे है। संस्कृति की शिला पर हर युग मे स्वर्णिम हस्ताक्षर करती रही है। संस्कृति एवं सभ्यता का अंतिम शिरा जिस बिंदु पर जाकर ठहर जाता है , वह अयोध्या ही है। सभ्यता के नजरिए से कुछ कुछ सकुचाती हुई लेकिन संस्कृति के फलक पर इठलाती हुई आदि से आज तक चेतना के गौरीशंकरों के प्रसव की उर्वर भूमि है अयोध्या। कला ,साहित्य ,संगीत अध्यात्म और राजनीति हर क्षेत्र में अपने युग में नव-व्याकरण की रचना करती है। अयोध्या से आशय सिर्फ एक धार्मिक नगरी भर से नहीं है ,बल्कि अयोध्या की संस्कृति -सभ्यता -संस्कार -सरोकार की प्राण ऊर्जा जहां तक प्रवाहमान है ,वह सब कमोबेश अयोध्या ही है।

अयोध्या ऐसी भूमि है, जहां सभी धर्मों के बहुरंगी फूल खिलते हैं। हिंदू, जैन, बौद्ध, सिक्ख सबके सब इसके आंगन में पलते हैं, पुसते हैं, बड़े होते हैं। ऐसी पवित्र भूमि है, जिसने सबको रिझाया। कल – कल करती पुण्य सलिला सरयू का स्पर्श अयोध्या को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सौंदर्य से भर देता है। अयोध्या चार हज़ार से ज्यादा मंदिरों से भरी हुई है। सूर्य की किरण फूटने के पहले रामनगरी के आँगन मे देववाणी के स्वर गूंजने लगते हैं। अखंड राम नाम संकीर्तन अयोध्या की पहचान है। नैतिक मान्यताओं का प्रकाश पुंज रामचरितमानस इसी आंगन में पूर्णता को प्राप्त हुआ। भारत की बहुरंगी संस्कृति को मिटाकर एकरंगी बनाने की कवायद परवान चढ़ रही है। स्वर्ग से सुंदर कश्मीर हो या मर्यादित अयोध्या, सियासत इसे विद्रुप बना रही है।

अब नव्य अयोध्या बसाई जा रही है। रामनगरी को पर्यटन नगरी बनाने के लिए अरबों रुपया खर्च हो रहा है। जाहिर सी बात है कि इतने ख़र्च के बाद आलीशान निर्माण होना स्वाभाविक है। आधुनिक अयोध्या के विश्वकर्मा की पदवी से विभूषित हो रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब भी आते हैं तो विश्व की खूबसूरत नगरी बनाने की बात दोहराते हैं। ऐसा नहीं है कि योगी सिर्फ हवा में बोल रहे हैं बल्कि निर्माण हो भी रहा है, सिर्फ़ दिखाया और बताया ही नहीं जा रहा है।

अयोध्या में विध्वंस की तस्वीरें विचलित कर दे रही हैं, जिन पर बीत रही है उनकी व्यथा दूसरा कोई लिख नहीं सकता। शासन प्रशासन की ज़ोर-ज़बर्दस्ती के आगे अयोध्यावासियों की विवशता देखना पीड़ादायी है। पीड़ित पक्ष ने सरकार से गोहार लगाया कि उनकी आजीविका, धर्म, उनकी संस्कृति को इस तरह से नष्ट न किया जाए। सरकार के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी। प्रशासन, गोदी मीडिया के साथ भक्तों ने पीड़ितों को यह कहकर बदनाम करने की कोशिश किया कि यह सब लोग मुआवज़े के लिए और राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए कर रहे हैं।

सैकड़ों मंदिर ढहाए जा रहे हैं। अयोध्या गर्दा गर्दा है। व्यापारिक प्रतिष्ठान तोड़े जा रहे हैं। तोड़फोड़ के ठेकेदार भी पैदा हो गए हैं। विरोध कर रहे लोगों की संख्या कम है। अयोध्या के विकास की परियोजना का खाका हिंदू धर्म के उद्धार में लगी पार्टी की सरकार और उसके नेताओं ने रचा है। इसलिए तमाम आवाजें जो मुखर हो सकती थीं, वो भी दबकर रह गईं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में हो रहे इस विध्वंस में राम का राजतंत्र भी शामिल है। अयोध्या में दिन रात चल रहे बुलडोजर उस ताक़त का प्रदर्शन हैं जहां विशाल बहुमत के आगे सत्तासीन लोग ऐसे ही मदमस्त हो जाते हैं।

बेलगाम सत्ता लोकतंत्र में लोकभावनाओं को कुचल कर जता रही है कि वो जो कर रही है वही भावना है, वही आस्था है और वही धर्म है। निश्चित तौर से कुछ समय बाद अयोध्या आने पर आपकी आंखें जगमगाती लाइटों से चुंधिया जाएगीं। वह सब कुछ होगा जो एक बेहतरीन पर्यटन स्थल के लिए होना चाहिए। बस सवाल यह है कि क्या अयोध्या धार्मिक रह पाएगी। क्या अयोध्या में रामत्व रहेगा। जैसे अयोध्या में पौराणिकता नष्ट हो रही है वैसे ही कुछ समय पूर्व काशी और उज्जैन में भी हुआ है।

भव्य राम मंदिर बनाने के लिए कई हजार करोड़ रुपया ट्रस्ट के खाते में जमा हो चुका है। मंदिर की आड़ में अयोध्या को एक नया स्वरूप दिया जा रहा है। यूं तो अयोध्या का इतिहास ही बनने बिगड़ने का रहा है लेकिन इस बार बस रही नव्य अयोध्या के हिस्से कई स्याह पहलू भी हैं। घुटती, सिसकती आहों पर रिमोट चालित अयोध्या बस रही है। भव्य मंदिर और पंचसितारा संस्कृति के निर्माण पर गर्व करने की बजाय अयोध्या कुछ लोगों की धर्म, धार्मिक आस्थाओं और धार्मिक निर्माण का केंद्र बनती दिख रही है।

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अयोध्या की गली गली में विनाश के मंजर उजड़े पड़े हैं। सत्ता बार-बार विकास के सपने और शजरे को दोहराती है। आगे चलकर उस सपने और शजरे की अयोध्या बन भी जाए तो भी आज का मंजर देखकर दिल दहल जाता है। राम नाम से गूंजने वाली वीथिकाएं हथौड़ों की चोट से गूंज रही है। वर्षों तक रोली और चंदन से संवारी गई दीवारें मशीनों से रौंदी जा रही हैं। सरकार ने अच्छा शजरा खींचा है, सपने दिखाए हैं लेकिन जो राम की पौराणिक अयोध्या को देखते आए हैं वो उसे टूटता देख कर सहन नहीं कर पा रहे हैं।

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