जुबिली स्पेशल डेस्क
राजस्थान में जल्द विधान सभा चुनाव का एलान हो सकता है। ऐसे में चुनावी मौसम में बीजेपी से लेकर कांग्रेस अपनी पूरी ताकत लगा दी है।
अगर वहां के सियासी समीकरण पर नजर दौड़ायी जाये तो असली लड़ाई 119 सीटों पर है। इसके साथ ही राजस्थान में 60 सीट ऐसी है जहां पर बीजेपी का कब्जा रहता है।
दूसरी तरफ कांग्रेस के साथ भी ऐसा ही है। दरअसल 21 सीटों पर कांग्रेस का दबदबा देखने को मिलता है। ऐसे में 119 सीटें ऐसी है जिस पर कांग्रेस से लेकर बीजेपी अपना-अपना दावा कर रही है। इन सीटों पर अगर जीत नसीब होती है तो उसे फिर सरकार बनाने में कोई खास परेशानी नहीं होने जा रही है।
बात अगर बीजेपी की करे तो इसमें पाली में उसे पांच बार जीत नसीब हुई जबकि 4 बार उदयपुर, लाडपुरा, रामगंज मंडी, सोजत, झालरापाटन, खानपुर, भीलवाड़ा, ब्यावर, फुलेरा, सांगानेर, रेवदर, राजसमंद, नागौर में उसका दबदबा देखने को मिला है।
वहीं कोटा साउथ, बूंदी, सूरसागर, भीनमाल, अजमेर नॉर्थ, अजमेर साउथ, मालवीय नगर, रतनगढ़, विद्याधर नगर, बीकानेर ईस्ट, सिवाना, अलवर सिटी, आसींद में 3 बार बीजेपी ने बाजी मारी है जबकि 33 सीटों पर 2 बार भाजपा को जीत का स्वाद मिला है।
इसी तरह से कांग्रेस के लिए कुछ ऐसी सीटे जहां उसका दबदबा विधान सभा चुनाव में देखने को मिलता रहता है।5 बार जोधपुर की सरदारपुरा सीट कांग्रेस ने जीत हासिल की है। वहीं बाड़ी सीट पर 3 बार कांग्रेस ने बाजी मारी है। इसी तरह से 3 बार झुंझुनू में बागीदौरा, सपोटरा, बाड़मेर, गुढ़ामालानी, फतेहपुर में कांग्रेस ने अपने विरोधियों को धूल चटायी है।
इसी तरह से डीग कुमेर, सांचौर, बड़ी सादड़ी, चित्तौडग़ढ़, कोटपूतली, सरदारशहर सहित 13 सीटों पर कांग्रेस का परचम बुलंद हुआ है।
वहीं उदयपुर एक ऐसी जगह है, जहां पर 25 साल से कांग्रेस जीत के लिए तरस रही है। इस सीट के इतिहास पर गौर करें तो 51 साल में 11 चुनाव हुए लेकिन कांग्रेस सिर्फ 1985 और 1998 में जीती थी।फतेहपुर में 1993 के चुनाव में आखिरी बार भंवरलाल ने जीत हासिल की।
बस्ती में कांग्रेस के लिए हालात कुछ अच्छे नहीं है और वो यहां पर 1985 में अंतिम बार जीती थी। इस तरह से 38 साल में कांग्रेस को वहां पर जीत नसीब नहीं हुई है।
पिछले तीन चुनाव में वहां पर निर्दलीय ने बस्ती सीट से जीते हैं ।कोटपूतली में 1998 के चुनाव में बीजेपी के रघुवीर सिंह जीते थे लेकिन इसके बाद वहां पर कभी कमल का फूल नहीं खिला है।
इसी तरह से सांगानेर सीट से 1998 के चुनाव में कांग्रेस से आखरी बार इंदिरा मायाराम विजय हासिल की थी लेकिन इसके बाद कांग्रेस को निराशा हाथ लगी और वो जीत नहीं सकी है। इस तरह से अलवर की रामगढ़ विधानसभा सीट जातीय समीकरण पर चलती है और यहां पर हिंदू-मुस्लिम का फैक्टर काफी काम करता है।