Wednesday - 30 October 2024 - 7:44 AM

…तो भविष्य में मानव शरीर में इस रास्ते पहुंचेगा ऑक्सीजन!

जुबिली न्यूज डेस्क

पिछले दिनों देश के बड़े-बड़े महानगरों में ऑक्सीजन को लेकर हाहाकार मचा हुआ था। सैकड़ों लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हो गई।

भारत में आज भी कोरोना संक्रमण की वजह से हजारों लोग अपनी जान गवां रहे हैं। अधिकांश लोगों की जान फेफड़े खराब होने की वजह से हो रहा है। फेफड़े का हमारे शरीर में क्या काम है हम सभी जानते हैं।

इन सब खबरों के बीच एक बड़ी खबर यह है कि वैज्ञानिक ऐसा तरीका खोजने में लगे हैं जिसमें इंसान के शरीर में अन्य रास्ते से ऑक्सीजन पहुंचाया जा सके।

जी हां, जापानी शोधकर्ताओं का कहना है कि स्तनधारी जीव अपनी अंतडिय़ों से भी सांस ले सकते हैं। शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने सूअर और चूहों को उनकी ऑक्सीजन का स्तर घटाकर उन्हें जानलेवा परिस्थितियों में डाला तो पाया कि श्वसन तंत्र को फेल होने से बचाने के लिए उन्होंने गुदा से सांस लेना शुरू कर दिया।

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यह रिसर्च रिपोर्ट पत्रिका मेड में छपी है। यह रिपोर्ट फेफड़ों के काम करना बंद करने की स्थिति में शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बनाए रखने का हल खोजने के लिए किए जा रहे प्रयासों की दिशा में नए रास्ते खोल सकती है।

टोक्यो मेडिकल एंड डेंटल विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले मुख्य शोधकर्ता ताकानोरी ताकेबे सेल प्रेस में छपे एक लेख में लिखते हैं, “निमोनिया या श्वसन तंत्र की अन्य खतरनाक बीमारियों की सूरत में आर्टिफिशियल रेस्पिरेटरी सपोर्ट की भूमिका इलाज में अहम हो जाती है, लेकिन हमारा तरीका ऐसे खतरनाक रोगों से ग्रस्त मरीजों को मदद पहुंचाने की दिशा में नया रास्ता खोल सकता है, लेकिन इसका इन्सानों पर असर और सुरक्षा का गहन आकलन जरूरी है।”

ताकेबे ने बताया कि उन्हें इस खोज की प्रेरणा कुछ जलीय जीवों से मिली जो सांस लेने के लिए उदर का प्रयोग करते हैं।

दरअसल शोधकर्ता पता लगाना चाहते थे कि क्या सूअर और चूहे भी ऐसा ही कर सकते हैं। आमतौर पर इंसानों के लिए किसी खोज का पहले इन्हीं जीवों पर प्रयोग किया जाता है।

इंजेक्शन से ऑक्सीजन

डॉ. ताकेबे कहते हैं कि हम यह भी जानते हैं कि गुदा के कुछ हिस्से दवा या पोषण का अवशोषण अच्छे से कर सकते हैं। गुदाद्वार से दवा या द्रव भी शरीर में पहुंचाए जा सकते हैं, जहां से ये रक्त में मिल जाते हैं और शरीर के बाकी हिस्सों तक पहुंच जाते हैं।

शोधकर्ताओं ने ऑक्सीजन की कमी से बेहोश चूहों को गुदाद्वार से इंजेक्शन के जरिए ऑक्सीजन दी। स्टडी के दौरान बहुत ही कम ऑक्सीजन स्तर के कारण 11 मिनट में ही चूहे की मौत हो गई, लेकिन जब उन्हें गुदा से ऑक्सीजन दी गई तो खतरनाक स्तर तक प्राणवायु कम किए जाने के बावजूद 75 प्रतिशत चूहे 50 मिनट तक जिंदा रहे।

शोधकर्ताओं ने कहा कि, हालांकि यह स्थायी हल नहीं है और इसे अंतरिम हल के तौर पर 20 से 60 मिनट की जरूरत के लिए ही प्रयोग किया जा सकता है। इस तरीके के सही इस्तेमाल के लिए उन्हें अंतडिय़ों की परत भी खुरचनी पड़ी। यानी गंभीर रूप से बीमार मरीजों में इसका उपयोग बहुत संभव नहीं हो पाएगा। अन्य विशेषज्ञ भी ऐसा ही मानते हैं।

नया नहीं है यह विचार

फिलहाल गुदाद्वार से ऑक्सीजन देने का विचार नया नहीं है। पिछले साल स्पेन में छोटे स्तर पर एक अध्ययन हुआ था जिसमें ऐसा ही प्रयोग किया गया था। एसएन कॉम्प्रिहेंसिव क्लिनिकल मेडिसन में छपे उस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के कारण गंभीर निमोनिया से पीडि़त चार मरीजों में गुदाद्वार से ओजोन शरीर में पहुंचाई थी।

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उस रिसर्च में पाया गया कि इस तरीके से खून में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा और जलन कम हुई। ओजोन गैस ऑक्सीजन के तीन एटम से बनी होती है। तब शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि गुदा से ओजोन दिया जाना एक प्रभावशाली, सस्ता, सुरक्षित और साधारण विकल्प हो सकता है।

फिलहाल जापानी वैज्ञानिक अपने प्रयोग की प्री-क्लिनिकल ट्रायल शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं और अगले दो साल में इंसानों पर प्रयोग करना चाहेंगे।

मुख्य शोधकर्ता ताकेबे कहते हैं कि उनके द्वारा खोजा गया तरीका अगर इतना विकसित हो जाता है कि इंसानों पर प्रयोग किया जा सके तो ऐसे मरीजों पर भी इस्तेमाल हो सकेगा जिनके श्वसन तंत्र कोविड-19 के कारण फेल हो गए हों।

हालांकि डॉ. बुद्धाराजा कहते हैं कि उस जगह पहुंचने के लिए अभी लंबा सफर तय करना होगा। वह ध्यान दिलाते हैं कि अंतडिय़ों में गैस इधर से उधर भेजने की क्षमता ज्यादा नहीं होती है।

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