जुबिली स्पेशल डेस्क
सीरिया में असद सरकार चली गई और पूरे सीरिया पर विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया।
दूसरी तरफ ईरान असद सरकार बचाने में पूरी तरह से नाकाम रही। 27 नवंबर को विद्रोही गुटों ने सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर कब्जा कर लिया लेकिन ईरान की ठोस कार्रवाई करने के बजाये बैैठक करने में ज्यादा विश्वास दिखाया जबकि विद्रोही गुटों का हमला दूसरी तरफ लगातार जारी रहा। महज़ 4 दिन में ही विद्रोहियों ने सीरिया के बड़े शहर पर कब्जा जमा लिया।
विद्रोहियों से लड़ाई में रूस और ईरान ही सीरिया के सबसे बड़े सहयोगी रहे हैं. लिहाजा यह ईरान की जिम्मेदारी थी कि वो असद शासन की मदद करे लेकिन कई दिनों तक ईरानी राष्ट्रपति और विदेश मंत्री सैन्य मदद भेजने के लिए सिर्फ भरोसा ही देते रहे।
रूस ने असद सरकार की मदद के लिए विद्रोहियों के ठिकानों पर बमबारी की लेकिन ये काफी नहीं थी क्योंकि खुद रूस अभी यूक्रेन से जंग लड़ रहा है। इसका नतीजा ये हुआ कि 11 दिनों में हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व में विद्रोहियों ने दमिश्क की तरफ बढ़ गए और कब्जा भी आसानी से जमा लिया।
सीरिया में असद शासन का अंत भी हो गया है और विद्रोही गुट के लीडर अबु मोहम्मद अल-जुलानी ने ईरान की लेकर अपनी राय रखते हुए साफ कर दिया है कि अब ईरान का दखल बर्दाशत नहीं करेगा।
ईरान भी इस बात को अब समझ गया है और उसने अपने रूख में बदलाव किया है। ईरान सरकार की प्रवक्ता फातिमा मोहजेरानी ने मंगलवार को एक बयान में कहा है कि ‘बशर अल-असद के पतन का एक विश्लेषण यह है कि वह जनता की शक्ति को समझने में विफल रहे।
सेना की निष्क्रियता के साथ-साथ बातचीत में शामिल होने से इनकार करने के कारण उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा। हमारा मानना है कि हमें लोगों से बात करनी चाहिए और उनके साथ मिलकर काम करना चाहिए।’ कुल मिलाकर सीरिया अब नये सिरे से अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है और उसने अब ईरान का दखल पसंद नहीं है।