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प्रतिष्ठा बचाने और वापस पाने की जीतोड़ कोशिश है तीसरा चरण

जुबिली न्यूज़ ब्यूरो

लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अपने तीसरे चरण की तरफ बढ़ चला है. सभी राजनीतिक दल बाकी पांच चरणों के लिए अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं. इस विधानसभा चुनाव में यूं तो कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी भी अपना गणित ठीक करने की कोशिश में हैं लेकिन असल संघर्ष बीजेपी और समाजवादी पार्टी में है. जहाँ बीजेपी सत्ता को अपने हक़ में बनाए रखने की कोशिश में जुटी है तो वहीं समाजवादी पार्टी अपनी उस ज़मीन को वापस पाने का संघर्ष कर रही है जो 2017 में बीजेपी ने छीन ली थी.

इस चुनाव में बीजेपी ने सत्ता को बरकरार रखने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी समेत तमाम केन्द्रीय मंत्री चुनावी सभाओं को संबोधित कर रहे हैं. ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए बीजेपी ने जातीय गणित के हिसाब से टिकट बांटे हैं. समाजवादी पार्टी भी मुसलमानों और कई पिछड़ी जातियों की सोशल इंजीनियरिंग में लगी है. पिछड़ी जातियों के ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल करने के लिए सपा ने पिछड़ी जातियों के नेताओं से गठबंधन किया है.

तीसरे चरण का चुनाव 20 फरवरी को होना है. इस दिन 59 सीटों के लिए संघर्ष होना है. तीसरे चरण में महोबा, हमीरपुर, ललितपुर, झांसी, जालौन, कानपुर नगर, कानपुर देहात, औरैया, इटावा, कन्नौज, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, कासगंज, एटा, फिरोजाबाद और हाथरस में वोट डाले जायेंगे.

तीसरे चरण में सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा बीजेपी की ही दांव पर लगी है. 2017 में बीजेपी ने 59 में से 49 सीटें जीती थीं. समाजवादी पार्टी को आठ पर ही जीत मिल पाई थी जबकि कांग्रेस और बसपा को एक-एक सीट ही मिली थी. इस बार सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है. तीसरे चरण के चुनाव में कन्नौज से बीजेपी ने कानपुर के पूर्व पुलिस कमिश्नर असीम अरुण को मैदान में उतारा है.

बीजेपी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को कुर्मी वोटों को साधने की ज़िम्मेदारी दी है. साध्वी निरंजन ज्योति केवट, मल्लाह और कश्यप वोटों को बिखरने से रोकने का ज़िम्मा है जबकि सुब्रत पाठक को कन्नौज, इटावा और मैनपुरी के ब्राह्मणों को एकजुट रखने का ज़िम्मा दिया गया है.

तीसरे चरण की 59 सीटों में 2017 में सपा सिर्फ आठ सीटें ही जीत पाई थी लेकिन 2012 में यहाँ की 37 सीटों पर सपा का कब्ज़ा था. समाजवादी पार्टी की बड़ी हार की प्रमुख वजह अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच का मनमुटाव था. अखिलेश ने इस चुनाव में उस कमी को दूर कर लिया है. शिवपाल यादव खुद समाजवादी पार्टी के सिम्बल पर चुनाव लड़ रहे हैं. इस वजह से यह चुनाव खुद शिवपाल यादव की प्रतिष्ठा का चुनाव भी बन गया है. इस चुनाव में अखिलेश की सबसे बड़ी चुनौती अपना खिसका हुआ जनाधार वापस पाना है. यही वजह है कि अखिलेश उन दो दर्जन सीटों पर सबसे ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जो बहुत मामूली अंतर से हार गए थे.

अखिलेश यादव ने इस बार सीटों का बंटवारा इस हिसाब से किया है कि जहाँ जिसकी ताकत ज्यादा है वहां उसी को पूरा मैदान सौंप दिया है. अखिलेश खुद करहल से मैदान में उतर गए हैं ताकि पूरी यादव बेल्ट में वोटों को बिखरने से रोक दिया जाये.

तीसरे चरण के चुनाव में फर्रुखाबाद से सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद कांग्रेस की उम्मीदवार हैं. तीसरे चरण में शिवपाल सिंह यादव, अखिलेश यादव, केन्द्रीय मंत्री डॉ. एसपी सिंह बघेल और कानपुर की महाराजपुर सीट से सतीश महाना की प्रतिष्ठा दांव पर है.

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