सुरेंद्र दुबे
पूरे देश में युद्ध चल रहा है। भले ही चुनावी युद्ध है पर किसी महाभारत से कम नहीं। महाभारत की याद आई तो हरियाणा को याद करना ही पड़ेगा, जहां कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध में अर्जुन बार-बार युद्ध से भाग रहा था। पर भगवान श्रीकृष्ण ने मार-मार कर अर्जुन को 18 अध्याय में उपदेश दे डाला कि युद्ध तो लड़ना ही पड़ेगा। यही युद्ध लड़ाऊ उपदेश बाद में भगवत गीता के नाम से मशहूर हो गया। जिनके माध्यम से जीवन का युद्ध जीतने के प्रयास किए जाते हैं।
इसके पहले सबसे चर्चित राम-रावण युद्ध था। जो लड़ा तो सीता को मुक्त कराने के लिए गया था, पर कालांतर में इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में परिभाषित किया गया। युद्ध लड़े किसी काम के लिए जाते हैं और कालांतर में हमारे ऋषि मुनि उसमें गूढ़ार्थ मिलाकर महाकाव्यों की रचना कर देते हैं। अब चाहे राम-रावण का युद्ध हो और चाहे महाभारत का युद्ध…एक सीमित समय में लड़े गए और बाद में इतिहास और धर्मशास्त्रों में अंकित हो गए। पर लोकतंत्र में युद्ध चलते ही रहते हैं और इनके मुद्दे इतने गतिमान होते हैं कि कभी रूकते ही नहीं। हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं इसलिए सबसे बड़ा युद्ध हमारे देश में चलता ही रहता है।
युद्ध का सबसे सामान्य नियम है कि पहले हम दुश्मन को हराने के लिए छोटे-छोटे हथियारों का इस्तेमाल करते हैं फिर जब उनसे बात नहीं बनती है तो मझोले किस्म के हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। अंतिम प्रहार के लिए ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल किया जाता है। आइए चलते है और देखते हैं कि महाराष्ट्र और हरियाणा में हो रहे विधानसभा चुनाव में कौन-कौन से हथियार इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
दुश्मन (कांग्रेस) देश की बदहाल अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी को हथियार बनाकर युद्ध लड़ रहा है। दुश्मन शब्द का इस्तेमाल मैं जानबूझकर कर रहा हूं क्योंकि अब राजनीति में विपक्षी नहीं होती। जो विपक्ष में होता है उसे दुश्मन ही समझा जाता है। अगर ऐसा न होता तो सत्ताधारी दल ये कभी नहीं कहता कि हम कांग्रेस को नेस्तानाबूत कर देंगे। बदहाल अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी और लोकतंत्र की रक्षा के हथियार काफी पैने साबित हो रहे हैं। इसलिए भाजपा फिर राष्ट्रवाद, पाकिस्तान, अनुच्छेद 370 जैसे वाणों की वर्षा कर रही है। बीच-बीच में एनआरसी की मिसाइल भी छोड़ देती है। कांग्रेसी जीतेंगे या हारेंगे पता नहीं, पर उनके तेवर देख सत्ता पक्ष बदहवास सा है। इसीलिए कभी उसको चुनौती दी जाती है कि हिम्मत है तो 370 बहाल करने का वादा करके दिखाओं। ये भी चुनौती दी जा रही है कि हिम्मत है तो तीन तलाक पर बने कानून को रद्द करने का वादा करके दिखाओं। बीच-बीच में डराने के लिए पाकिस्तान नाम का गोला भी फेंकते रहते हैं। ये अजब किस्म का गोला है, हर मौसम में काम आ जाता है।
सत्ता पक्ष इस बात को लेकर काफी बेचैन है कि वह कांग्रेसियों को फंसाने के लिए इतने किस्म के जाल फेक रहा है पर कांग्रेसी हैं जिन्हें इस देश की गिरती अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी के अलावा कुछ सुहा ही नहीं रहा है। ये दोनों मुद्दे सीधे-सीधे जनता से जुड़े हैं इसलिए कांग्रेसियों को जनता का समर्थन मिल रहा है। ये बात अलग है कि हमारा मदहोश मीडिया इन खबरों को दिखाने के बजाए सत्ता पक्ष की बाजीगरी को दिखाने में मशगूल है। पर सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर जनता की आवाज मुखर होती जा रही है। इंवेट मैनेजमेंट व दुष्प्रचार फैलाने में माहिर लोग इस पर पैनी नजर गड़ाए हुए हैं।
सत्ता पक्ष ने अपना सबसे ताकतवर ब्रह्मास्त्र-राम मंदिर का मुद्दा फिर अपने झोले से निकाल लिया है। कल सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर मुद्दे पर सुनवाई समाप्त हो गई। इसके साथ ही भाजपा की रणभेरी बज गई। पूरे देश में ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है जैसे कल से ही मंदिर निर्माण शुरु हो जायेगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं और मंदिर मामले पर जजमेंट देने का वादा कर चुके हैं। हालांकि गोगोई साहब ने किसी से कहा नहीं है कि वे किसके पक्ष में निर्णय देंगे, पर सत्ता पक्ष ने यह हवा फैला रखी है कि निर्णय मंदिर के पक्ष में ही आयेगा। मीडिया भी रामधुन गाने में लग गया है। अब निर्णय आने तक देश में और कोई काम करने की जरूरत भी नहीं है और यही एक ब्रह्मास्त्र चुनाव जीतने में काफी बड़ी भूमिका निभा सकता है।
देश में तारीखें बड़ी महत्व की होती हैं। एक ऐसी ही तारीख है 21 अक्टूबर, जिस दिन महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा के चुनाव होंगे। उत्तर प्रदेश में 11 सीटों पर उपचुनाव होगा। आज 17 अक्टूबर है और 21 अक्टूूबर तक मानो कत्ल की रात है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कल से ही अयोध्या को छावनी के रूप में तब्दील कर दिया है। अफसरों की छुट्टिया रद्द कर दी गई हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने जनजागरण के कार्यक्रम घोषित कर दिए हैं। और साधु-संतों को राममय कर दिया गया है। कोर्ट का निर्णय तो 15 नवंबर के आस-पास आने की संभावना है। तो क्या सरकार तब तक इंतजार करती। कर्मशील सरकारें इतना इंतजार नहीं करती। चुनाव जब 21 अक्टूबर को होने हैं तो नवंबर में हो-हल्ला मचाने से क्या फायदा होगा। सारी राजनीति तो फायदे के लिए होती है। इसलिए कल से ही पूरे देश को राम मंदिर का शंखनाद शुरु कर दिया गया है। 21 अक्टूबर तक तुरही और तेजी से बजने लगेगी और दुनिया के काम आने वाले भगवान राम हो सकता है कुछ लोगों के काम आ जाएं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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