जुबिली न्यूज डेस्क
शीर्ष अदालत ने गुजरात में रेलवे की उस जमीन पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए रेलवे की खिंचाई की जहां एक रेल लाइन का निर्माण होना है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करना रेलवे की वैधनिक जिम्मेदारी है। सार्वजनिक परियोजना को आगे बढ़ाना है और प्राधिकारियों को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए थी।
अदालत ने कहा अपनी संपत्ति की सुरक्षा खुद करें इसके लिए हाथ पर हाथ धरकर बैठे न रहें।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा, ”परियोजना को आगे बढ़ाना है। यह एक सार्वजनिक परियोजना है। आप अपनी योजनाओं और बजट व्यवस्था का मजाक बना रहे हैं। जो अतिक्रमण कर रहे हैं उन्हें हटायें। हटाने के लिए कानून है। आप उस कानून का प्रयोग नहीं कर रहे हैं।”
अदालत ने रेलवे की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज से कहा, ”यह आपकी संपत्ति है और आप अपनी संपत्ति की रक्षा नहीं कर रहे हैं। अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करना आपका एक वैधानिक दायित्व है।”
सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गुजरात और हरियाणा में रेलवे की जमीनों से अतिक्रमण हटाने से संबंधित मुद्दे उठाए गए हैं।
गुजरात के मामले में, याचिकाकर्ताओं ने पहले सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि गुजरात हाई कोर्ट ने यथास्थिति बनाये रखने का अपना अंतरिम आदेश वापस ले लिया था और पश्चिम रेलवे को सूरत-उधना से जलगांव तक की तीसरी रेल लाइन परियोजना पर आगे बढऩे की अनुमति दी थी।
हाई कोर्ट के आदेश के बाद, याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जिसने गुजरात में इन ‘झुग्गियों’ के ध्वस्तीकरण पर यथास्थिति प्रदान की थी।
वहीं दूसरी याचिका हरियाणा के फरीदाबाद में रेल लाइन के पास ‘झुग्गियों’ को तोड़े जाने से संबंधित है। फरीदाबाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहले उन लोगों के ढांचों को ढहाये जाने पर यथास्थिति प्रदान की थी, जिन्होंने हटाये जाने पर रोक के अनुरोध को लेकर कोर्ट का रुख किया था।
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सोमवार को सुनवाई के दौरान एएसजी ने पीठ से कहा कि रेलवे के पास उसकी जमीन पर अतिक्रमण करने वालों के पुनर्वास की कोई योजना नहीं है।
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उन्होंने ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का जिक्र किया जो पात्रता के अधीन है। एएसजी ने कहा कि राज्य को पुनर्वास के पहलू पर विचार करना होगा।
पीठ ने कहा कि कार्पोरेशन, राज्य और रेलवे को एकसाथ बैठकर एक योजना बनानी चाहिए और फिर कोर्ट को इसके बारे में सूचित करना चाहिए।
एएसजी ने कहा, ”रेलवे के दृष्टिकोण से, ये सभी लोग अनधिकृत रूप से रहने वाले हैं और यह एक अपराध है।”
पीठ ने कहा, ”क्या आपने इस पर कार्रवाई की? क्या आपने उन्हें हटाने के लिए अपने वैधानिक दायित्व का निर्वहन किया? क्या आपने सार्वजनिक परिसर अधिनियम लागू किया?”
नटराज ने कहा कि रेलवे की ओर से कुछ ”चूक” हुई है कि उन्होंने इस पर पहले कोई कार्रवाई नहीं की और अब मुद्दा पुनर्वास का है।
पीठ ने कहा, ”आप हाथ पर हाथ रखकर यह नहीं कह सकते कि यह मेरी समस्या नहीं है। यह आपकी संपत्ति है और आपको अपनी संपत्ति की रक्षा करनी होगी क्योंकि एक निजी व्यक्ति की तरह ही अपनी संपत्ति की रक्षा करनी होगी।”
पीठ ने कहा, ”आपको अतिक्रमण हटाना होगा। यह एक ऐसी परियोजना है जिसे तत्काल क्रियान्वित किया जाना है।”
पीठ ने पूछा कि क्या रेलवे ने उन लोगों की पहचान की है जो पीएम आवास योजना के तहत पात्र हैं या हो सकते हैं।
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नटराज ने कहा कि राज्य सरकार को इनकी पहचान करके जमीन देनी होगी। पीठ ने मामले की अगली सुनवायी मंगलवार को करना तय किया और कहा कि प्राधिकारियों को इस मुद्दे का कुछ हल खोजना होगा।
गुजरात मामला एक रेल लाइन परियोजना के लिए करीब पांच हजार झुग्गियां ढहाने से संबंधित है।