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सुप्रीम कोर्ट ने संवेदनशील रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में अपना सुप्रीम फैसला सुना दिया है। इस फैसले का सभी ने स्वागत किया है। कोर्ट ने तथ्यों के आधार पर फैसला दिया है। पूर्व में जो गलत हुआ है कोर्ट ने उस पर भी टिप्पणी की है। कोर्ट ने ये माना है कि देवता एक कानूनी व्यक्ति हैं।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि 1992 में बाबरी मस्जिद को ढहाना और 1949 में मूर्तिया रखना गैरकानूनी था।
कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में विवादित ढांचे की जमीन हिन्दुओं को सौंपने का आदेश दिया, और केंद्र सरकार से तीन महीने के भीतर मंदिर के लिए ट्रस्ट गठित करने को कहा है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि मस्जिद के लिए केन्द्र या राज्य सरकार अयोध्या में ही सूटेबल और प्रॉमिनेंट जगह जमीन दे।
सुप्रीम कोर्ट (पांचों जजों की सहमति से फैसला) ने कहा- 2.77 एकड़ जमीन हिन्दुओं के पक्ष में। केंद्र सरकार तीन महीने के भीतर मदिर के लिए ट्रस्ट बनाएगी, ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा का प्रतिनिधि भी रहेगा। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, फिलहाल अधिग्रहीत जगह का कब्जा रिसीवर के पास रहेगा। सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ ज़मीन मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि पुरात्व विभाग ने मंदिर होने के सबूत पेश किए हैं। सैकड़ों पन्नों का जजमेंट पढ़ते हुए पीठ ने कहा कि हिंदू अयोध्या को राम जन्मस्थल मानते हैं और रंजन गोगोई ने कहा कि कोर्ट के लिए थिओलॉजी (धर्मशास्त्र) में जाना उचित नहीं है, लेकिन पुरातत्व विभाग यह भी नहीं बता पाया कि मंदिर गिराकर मस्जिद बनाई गई थी।
कोर्ट के फैसले में कहा गया कि 1856-57 से पहले हिंदुओं को आंतरिक अहाते में जाने से कोई रोक नहीं थी। मुस्लिमों को बाहरी अहाते का अधिकार नहीं था। सुन्नी वक्फ बोर्ड एकल अधिकार का सबूत नहीं दे पाया।
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