लोकसभा चुनावों में मतदान थमते ही भविष्य वक्ताओं की बाढ सी आ गई है। सात चरणों में हुई रायसुमारी के परिणाम मशीनों में बंद हो गये हैं।
कुछ ही घंटों बाद वास्तविकता सामने आ जायेगी। राजनैतिक गठबंधन स्वत: सुखाय को लेकर जीत के नाहक दावे कर रहे हैं जबकि व्यवसायिक प्लेटफार्म एग्जिट पोल के नाम पर जबरजस्ती का शब्द दंगल आयोजित करके धनार्जन में जुटे हैं। देश की आवास के मन-मस्तिष्क में मनमाने आंकडों की फसलें बोई जा रहीं हैं।
मृगमारीचिका के पीछे दौडाने की कोशिशों में लगे मुगेरी लाल अब भी अपने हसीन सपनों को कुछ घंटों और जीवित रखने के लिए माथ पच्ची कर रहे हैं।
राष्ट्रवाद, विकासवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाषावाद, स्वार्थवाद, लालचवाद, सम्प्रदायवाद, आस्थावाद के साथ-साथ शून्यवाद भी इस बार के चुनावों में बडे मुद्दे बनाकर सामने आते रहे।
अतीत के मनमाने आंकडों को सोशल मीडिया के अनगिनत देशी-विदेशी प्लेटफार्म से निरंतर प्रसारित किया जाता रहा। अमेरिकन रिपोर्ट को सही मानें तो इजराइल की एक फर्म ने तो योजनाबध्द ढंग से भारत के चुनावों को प्रभावित करने के लिए एआई यानी आर्टिफीशियल इंटेलिजेंसी जैसी तकनीक का भरपूर उपयोग किया।
इस कारक को भविष्य की आहट में विदेशी षडयंत्रकारियों के व्दारा लोकसभा चुनावों में कूदने के रूप में पहले भी रेखांकित किया जा चुका है, जिसकी पुष्टि अब अमेरिकन रिपोर्ट ने अब हुई है।
चैटजीपीटी बनाने वाली कम्पनी ओपन एआई ने अपनी रिपोर्ट में घोषित किया है कि भारत के लोकसभा चुनावों को प्रभावित करने के लिए उसके प्लेटफार्म को चीन, इजराइल, ईरान और रूस की धरती से भाजपा के विरुध्द उपयोग करने का प्रयास किया गया है।
इन प्रयासों के अधिकांश भाग को उसने बहुत ही सजगता के साथ असफल कर दिया। इस षडयंत्र को एक अभियान के रूप में चलाया गया था।
इसकी शुरूआत इजराइल स्थित एक नेटवर्क ने भारत की मौजूदा सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी की आलोचना तथा विपक्षी कांग्रेस पार्टी की प्रशंसा के रूप में वातावरण निर्मित करने हेतु किया।
यह कुकृत्य मई माह में सामने आया और कम्पनी ने तत्काल इसे रोकने की दिशा में प्रयास शुरू कर दिये। योजना के अनुसार इजराइल से संचालित अकाउण्ट्स के एक समूह का उपयोग गुप्त अभियानों के लिए कन्टेन्ट बनाने, एडिटिंग करने तथा उन्हें सोशल मीडिया पर प्रसारित करने के लिए किया गया। इन कन्टेन्ट्स को एक्स, फेसबुक, इंस्ट्राग्राम, यूट्यूब सहित विभिन्न लोकप्रिय साइट्स पर शेयर किया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस नेटवर्क ने मनगढन्त नामों से अकाउण्ट बनाये तथा उनका उपयोग भारत के लोकसभा चुनावों को सत्ताधारी दल के विरोध में करके कांग्रेस को लाभ पहुंचाने की नियत से किया गया। इस रिपोर्ट के खुलासे के पहले ही रेखांकित किया जा चुका था कि किस तरह से चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय समिति के स्वामित्व वाले ग्लोबल टाइम्स व्दारा चुनाव काल में जहर उगला जा रहा है।
ऐसे ही प्रयास अमेरिका के अनेक राजनायिकों, कनाडा की सरकार, आतंकवाद के संरक्षक देशों एवं शत्रुभावी भूभाग व्दारा होते रहे।
यह सब पूर्व निर्धारत कार्ययोजना का अंग था, जिसे विदेशी दौरों के दौरान राष्ट्रविरोधियों ने सुनिश्चित किया गया था। इसी कडी में संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर अमेरिका सहित विभिन्न देशो में वहां के कथित पत्रकारों व्दारा भारत विरोधी मुद्दे उठवाये जाते रहे। विपक्षी दलों के अनेक चर्चित चेहरों ने विदेशी दौरों में राष्ट्रविरोधी एवं घातक प्रचार किया ताकि अन्तर्राष्ट्रीय दबाव दिखाकर देश के मतदाताओं को प्रभावित किया जा सके। चुनावों में मतदान की समाप्ति के बाद अब जबरजस्ती की माथा पच्ची करने का सिलसिला शुरू हो गया है।
कुछ घंटों बाद ही वास्तविक परिणाम सामने आने वाले हैं तब भी संभावनाओं की भंवर में देश की आम आवास को डुबोने की कोशिशें की जा रहीं हैं। जीत के आंकडे, सीटों की संख्या, मुद्दों का रेखांकन, भावी योजनायें, सत्ता पर काबिज होते ही कामों की सूची जैसे अनेक बिन्दुओं पर चल रही चल रही बहस कथित भविष्य वक्ताओं के शब्द दंगल से अधिक अस्तित्व नहीं रखता।
कथित बुध्दिजीवियों के मनमाने वक्तव्यों को प्रवचन की तरह परोसने का क्रम साइबर जगत के साथ-साथ चौराहों से लेकर चौपालों तक चल निरंतर चल रहा है। अनेक स्थानों पर पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं के मध्य वाक्य युध्द से लेकर हाथापाई तक की स्थितियां भी देखने को मिल रहीं हैं।
चुनावी दौर मेें हिंसा का खुला खेला धीरे-धीरे नेपथ्य में चला गया। लोकतंत्र के हत्यारों की फाइलों पर धूल डालने की कोशिशें अभी से शुरू हो गई हैं। बंगाल तो देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है जहां की सरकार आरोपी को बचाने के लिए उच्चतम न्यायालय तक के दरवाजे पर दस्तक देने में गर्व महसूस करती है।
संवैधानिक व्यवस्था की कीमत पर मनमानियों को संरक्षण देने की दिशा में निरंतर बढोत्तरी देखी जा रही है। सब कुछ खुलेआम होने के बाद भी स्वत:संज्ञान जैसी स्थिति निर्मित न होने पर अनेक प्रश्न चिन्ह अंकित होना स्वाभाविक ही है।
कभी एक गुमनाम पत्र पर उच्चतम न्यायालय संवेदनशील हो जाता है तो कभी लोकतांत्रिक संविधान की रीढ पर हो रही निरंतर चोट को भी अनदेखा किया जाता है।
देश के संवैधानिक ढांचे के अनेक स्तम्भ निरंतर निरंकुशता की ओर बढते जा रहे हैं। अधिकारों के अतिक्रमण की बाढ सी आ गई है। तीनों कारक वर्चस्व की जंग में कूद पडे हैं। सामंजस्य, संतुलन और सहयोग को तो किस्तों में कत्ल किया जा चुका है।
अब तो केवल उसकी लाश को वैन्टीलेटर पर रखकर जबरजस्ती आक्सीजन देने का ढोंग ही किया जा रहा है। ऐसे में राष्ट्र के सामने मुंह खोले खडी वास्तविक चुनौतियों को रेखांकित करने के स्थान पर कथित भविष्यवक्ताओं, बुध्दिजीवियों और विशेषज्ञों की चिरपरिचित जमात के मध्य शब्दों का दंगल आयोजित करना कदापि सुखद नहीं कहा जा सकता। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।