प्रमुख संवाददाता
नई दिल्ली. ओडीशा के हलधर नाग कोसली भाषा के शानदार कवि हैं. उन्होंने अब तक बीस महाकाव्य लिखे और सारे के सारे उन्हें कंठस्थ हैं. सादगी उनकी पहचान है. जिस्म पर मामूली कपड़े और पाँव में टूटी हुई चप्पल के बावजूद उनके चेहरे पर बिखरी हंसी यही बताती है कि उन्हें हालात से कोई शिकायत नहीं है.
तीसरी क्लास के आगे पढ़ाने के लिए सर पर किसी का सहारा नहीं रहा. उनकी गरीबी ने कभी ऐसे हालात भी नहीं बनाए कि कोई उनके नाम के साथ श्री भी लिखता लेकिन उनकी जीवन की तपस्या ने इस साल उन्हें पद्मश्री बना दिया.
पद्मश्री हलधर नाग उड़िया भाषा के लोक कवि हैं. वह सिर्फ दस साल के थे कि उनके पिता का निधन हो गया. इसी के बाद पढ़ाई छूट गई. ढाबे में बर्तन धोते हुए बचपन गुज़र गया.
विपरीत परिस्थितियों में भी उनके अन्दर बैठा कवि कभी निराश नहीं हुआ. वह लगातार कवितायें लिखते रहे. 1995 में उन्होंने राम-शबरी पर लिखकर लोगों के सामने गाना शुरू किया तो देखते ही देखते वह लोकप्रिय हो गए. वह इतने लोकप्रिय हो गए कि इस साल राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने उन्हें पद्मश्री के लिए चुना.
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हलधर नाग की खासियत यह है कि वह खुद तो तीसरी क्लास के आगे नहीं पढ़ पाए लेकिन मौजूदा समय में उनके लेखन पर पांच लोग पीएचडी कर रहे हैं. जानकारी मिली है कि पद्मश्री लेने जाने के लिए न तो उनके पास किराया है न वहां पहनने लायक कपड़े, इसी वजह से उन्होंने सरकार को लिखा है कि उनका पुरस्कार डाक से भेज दिया जाए. शोभा शुक्ला ने लखनऊ कनेक्शन वर्ल्डवाइड में हलधर नाग के बारे में विस्तार से चर्चा की है.