ओम प्रकाश सिंह
- दरी बिछा कर्मचारी धरने पर, कहा संघर्ष होगा आरपार..
- शिक्षकों ने मुख्यमंत्री से लगाई न्यायिक जांच की पुकार…
अयोध्या। अवध विश्वविद्यालय भारी भ्रष्टाचार के चपेट में है। शिक्षक व कर्मचारी सब बेहाल हैं। सब तरफ से उंगली कुलसचिव की कार्यप्रणाली पर है, लेकिन मजाल है कि कोई उन्हें टस से मस कर सके। नियमित कुलपति के अभाव में कुलसचिव ‘उमानाथ’ ही विश्वविद्यालय के ‘नाथ’ हैं, वही भ्रष्टाचार के भी नाथ हैं और उनके खिलाफ शिक्षकों व कर्मचारियों की गुहार सुनने वाले कोई नहीं। मांगों को लेकर कर्मचारियों ने दरी बिछा दिया है तो शिक्षक संघ ने प्रेसवार्ता कर विश्वविद्यालय की गरिमा बचाने व न्यायिक जांच की मांग किया है।
कुलसचिव उमानाथ के भ्रष्टाचार की पोल खोलने के लिए शिक्षक संघ ने विश्वविद्यालय में प्रेस वार्ता किया। प्रेस वार्ता शुरू हुई ही थी कि कुछ जिंदाबाद मुर्दाबाद के नारे लगने शुरू हो गए, मानो सब कुछ तय था। मूल्यांकन कार्य कर रहे स्ववित्तपोषित शिक्षकों के माध्यम से विघ्न डालने का प्रयास भी हुआ।कुलानुशासक डाक्टर अजय प्रताप सिंह की सूझबझ से अप्रिय घटना होने से बची। शिक्षक संघ ने कहा कि स्ववित्तपोषित शिक्षक छोटे भाई समान हैं लेकिन फूट डालो राज करो की नीति अपना रहे हैं आरोपी अधिकारी।
संघ अध्यक्ष डॉ विजय प्रताप सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय की गिरती हुई गरिमा को बचाने की जिम्मेदारी बुद्धिजीवियों की भी है । लगातार हो रही परीक्षाओं से महाविद्यालयों में पठन-पाठन का काम ठप्प हो गया है। एक परीक्षा खत्म हुई नहीं की दूसरी शुरू हो जाती है। बिना सहमति महाविद्यालयों को जबरन परीक्षा केंद्र बनाना पूर्णतया अनुचित है। एलएलबी छात्रों के लिए यदि विश्वविद्यालय ने महाविद्यालयों को मान्यता दी है तो उनके पास संसाधन एवं शिक्षकों की संख्या देखकर की होगी। हर कॉलेज अपने महाविद्यालय की परीक्षा कराए अगर कहीं पर नकल की आशंका हो तो विश्वविद्यालय आब्जर्वर द्वारा निगरानी करे।
विश्वविद्यालय में मौखिकी एवं प्रायोगिक परीक्षा के लिए कुछ और नियम है और मूल्यांकन के लिए कुछ और। शिक्षक परास्नातक मौखिकी परीक्षा के लिए योग्य माना जा रहा है पर विश्वविद्यालय उन्हें मूल्यांकन के लिए योग्य नहीं मानता है। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। शिक्षक संघ ने कई बार यह मांग की कि शिक्षकों को प्रैक्टिकल और वाइबा की सूचना विश्वविद्यालय द्वारा दी जानी चाहिए, किंतु इस पर कोई असर नहीं हुआ। कभी कभी महाविद्यालयों द्वारा इसकी शिक्षकों को सूचना दी जाती है और कभी-कभी महाविद्यालय शिक्षक की जानकारी के बिना भी परीक्षाएं हो जाती हैं। यह प्रवृत्ति विश्वविद्यालय के लिए बहुत ही घातक है। शिक्षक संघ अध्यक्ष ने स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में कार्यरत शिक्षकों के वेरिफिकेशन का भी मुद्दा उठाया।
महाविद्यालय द्वारा परीक्षक बनकर आए शिक्षकों से मनमाना नंबर देने का दबाव बनाया जाता है। उनकी इच्छा के अनुरूप नंबर न देने पर उन्हें अपमानित होना पड़ता है। जिसकी शिकायत परीक्षा नियंत्रक से करने पर भी कोई समाधान नहीं मिलता है। जिससे ऐसे महाविद्यालयों में इस प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है। शिकायतकर्ता को ही दंडित कर उसे उसकी जगह दूसरा परीक्षक नियुक्त कर दिया जाता है। इसी तरह मूल्यांकन में भी यही खेल चल रहा है। पचहत्तर प्रतिशत अधिकतम अंक की सीमा का निरन्तर उल्लंघन हो रहा है, जबकि इससे अधिक नंबर पाने वाले छात्रों का स्पष्टीकरण परीक्षक द्वारा दिए जाने का प्रावधान है। पहले पचास से कम छात्र होने पर महाविद्यालयों को परीक्षा केंद्र नहीं बनाए जाने की परंपरा थी। विश्वविद्यालय द्वारा इसकी तिलांजलि दे दिया गया है। अब 20 से 25 छात्रों पर भी परीक्षा केंद्र बनाया जा रहा है। इस नीति से विश्वविद्यालय पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ रहा है। 5 से 10 किलोमीटर की दूरी पर ही परीक्षा केंद्र बनाए जाने के शासनादेश का भी उल्लंघन हो रहा है । चालीस किलोमीटर दूर तक छात्रों को परीक्षा केंद्र जाना पड़ रहा है।
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केंद्रों पर प्राचार्य ना होने पर केंद्र न बनाने का शासनादेश का उल्लंघन हो रहा है। सब मिलाकर विश्वविद्यालय समस्त नियम शासनादेश को ताक पर रखकर परीक्षा नियंत्रक की मनमानी से चलाया जा रहा है। जो विश्वविद्यालय के लिए बहुत ही अहितकर है। शिक्षक संघ ने मुख्यमंत्री से इन बिंदुओं की किसी सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति से जांच कराकर दोषियों को दंडित करने की मांग किया है। प्रेसवार्ता में शिक्षक नेता डॉक्टर आरपी सिंह, के एन आई डॉ अवधेश सिंह, डॉ अनिल यादव, डॉ अनुराग पांडे, अमेठी से डॉ राधेश्याम तिवारी, डॉक्टर धनंजय सिंह, संतोष सिंह बाराबंकी से डॉ राम शंकर यादव, डॉ मनोज, डॉ बिहारी, डॉ कुशवाहा आदि उपस्थित रहे।
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पेंशन,जीपीएफ, ग्रेच्यूटी का भुगतान ना होने पर सेवानिवृत्त कर्मचारी अरुण प्रताप सिंह, सरदार वल्लभभाई पटेल प्रशासनिक भवन के फर्श पर दरी बिछा अनशन पर बैठ गए हैं। उनके समर्थन में सभी कर्मचारियों ने कार्य बहिष्कार कर दिया। सलाहकार समिति अध्यक्ष प्रो अजय प्रताप सिंह ने कर्मचारियों से वार्ता में कहा कि मैं खुद पीड़ित कर्मचारी के साथ हूं। कर्मचारियों ने धरना जारी रखते हुए समस्या समाधान के लिए दो दिन का समय विश्वविद्यालय प्रशासन को दिया है। विश्वविद्यालय परिसर दिन भर जिंदाबाद, मुर्दाबाद के नारों से गूंजता रहा।