जुबिली न्यूज डेस्क
बिहार में एक और युवा नेतृत्व उभर कर सामने आ रहा है। अब तक पिता रामविलास पासवान के पीछे रहने वाले चिराग पासवान अब सियासी पिच पर खुलकर बैटिंग कर रहे हैं। पिता की छत्रछाया में उन्हीं से राजनीति का ककहरा सीखने वाले चिराग ने हाल के दिनों में अपने ही सहयोगी दलों को जो तेवर दिखाया है उसकी सियासी हलकों खूब चर्चा रही। वह अपने आक्रामक रुख से अपने नेतृत्व को धार देने की कोशिश कर रहे हैं। इससे साफ जाहिर है कि वह अपने पिता की विरासत संभालने के लिए तैयार हैं।
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बिहार की सियासत में प्रमुख धुरी रही लोक जनशक्ति पार्टी का हालिया रुख एक नए दौर का संकेत दे रहा है, जहां लीक तो ‘पुरानी’ है, पर राह नई। रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली पार्टी का कमान अब उनके बेटे चिराग पासवान के हाथ में है। पार्टी की कमान चिराग के हाथ में आने के बाद से सियासत में उनका एक अलग ही रूप देखने को मिला है।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा होते हुए भी चिराग का इन दिनों जिस तरह अपनी ही सरकार पर प्रत्यक्ष-परोक्ष हमलावर रुख है, उससे सियासी हलकों में इस धारणा को बल भी मिल रहा है। वह विकास के मुद्दे पर अपनी ही सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं।
पिछले दिनों उन्होंने खगडिय़ा के एक चचरी पुल (बांस-बल्ले से बना अस्थायी पुल) को लेकर सरकार पर निशाना साधा। खगडिय़ा उनका पैतृक घर भी है और यहीं से सवाल उठाते हुए उन्होंने अपने नेतृत्व में पार्टी के रुख का संदेश देने की भी कोशिश की है। वैसे भी उनके पिता रामविलास पासवान साफ शब्दों में यह कह चुके हैं कि अब उनका वश नहीं। कोई भी निर्णय पार्टी अध्यक्ष ही लेंगे।
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चिराग के लोक जनशक्ति पाटी के अध्यक्ष बनने के साथ ही पार्टी में एक नये अध्याय की शुरुआत हो चुकी है। राजनीतिक पंडित चिराग के बयानों को इससे भी जोड़कर देख रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि बिहार की सियासत ने चिराग के पिता रामबिलास पासवान का आक्रामक रूख देखा है। चिराग भी उसी लीक पर चले रहे हैं, बस राह नई बनती दिख रही है।
बिहार में विधानसभा चुनाव होना है। भले ही चुनाव की तिथि की घोषणा अभी तक नहीं हुई है पर सभी राजनीतिक दल चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है। चिराग पासवान के आक्रामक रूख को भी चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। चिराग के तेवर के पीछे सीटों की हिस्सेदारी से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
फिलहाल ऐसा भी नहीं है कि इससे पहले चिराग आक्रामक नहीं थे। वह इससे पहले भी कभी विधि-व्यवस्था तो कभी विकास के सवालों को लेकर आक्रामक होते रहे हैं। हालांकि, उनके बयानों का बहुत ज्यादा नोटिस भी नहीं लिया गया है। अब चूंकि बिहार में चुनावी माहौल है और चिराग लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष हैं इसलिए उनके तेवर को नोटिस किया जा रहा है।
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चिराग को भी भलीभांति इसका संज्ञान है कि नई राह बनाए बिना वह बिहार की राजनीति में खुद को स्थापित भी नहीं कर पायेंगे। अभी तक उनकी पहचान उनके पिता से ही है। पिता के आवरण से निकलना भी उनके लिए आसान नहीं है। इससे निकलने के लिए उन्हें सियासी पिच पर फ्रंट पर आना होग और खुलकर खेलना भी होगा। चिराग ऐसा ही कुछ कर रहे हैं।
चिराग ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ अभियान से एक ओर खुद के नेतृत्व में मौलिक शुरुआत तो दूसरी ओर आक्रामक रुख से अपने नेतृत्व को धार देने की कोशिश में लगे हुए हैं। अब जबकि चिराग के रूप में नई कोपल फूट चुकी है तो एक नई धारा के साथ अलग पहचान की कवायद भी एक रणनीति के रूप में देखी जा रही है।