जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली. अंकिता ने जब से आँख खोली तब से सिर्फ संघर्ष ही देखा और संघर्ष ही जिया. दो वक्त का चूल्हा जलाने के लिए माँ-बाप दोनों सब्जी का ठेला लगाते थे और भाई सुबह से मजदूरी पर निकल जाता था लेकिन अंकिता ने ठान लिया कि पढ़ाई करनी है और खूब पढ़ाई करनी है. उसने रात-दिन मेहनत की, हालांकि जब भी उसे वक्त मिलता वह पिता के ठेले पर खड़ी होकर सब्जियां भी बेचती लेकिन उसका फोकस अपनी पढ़ाई पर ही रहा. पढ़ते-पढ़ते वह लॉ ग्रेजुएट हो गई. इससे भी उसका मन नहीं भरा और कम्पटीशन के ज़रिये वह सिविल जज की कुर्सी तक पहुँच गई.
मध्य प्रदेश के इंदौर की 25 साल की अंकिता की कहानी विद्यार्थियों के लिए ऐसी सक्सेस स्टोरी है जो उन्हें बुलंदियों तक जाने का रास्ता दिखा सकती है. अपने संघर्ष के दिनों की याद करते हुए अंकिता बताती है कि जब सिविल जज की परीक्षा का फ़ार्म भरना था तो उसके पास सिर्फ 500 रुपये थे जबकि फ़ार्म 800 का था. उसने माँ से कहा. उसकी माँ ने दिन भर ठेला लगाकर सब्जी बेची और शाम को उसे 300 रुपये दे दिए. अंकिता ने भी माँ को निराश नहीं किया. उसका वही फ़ार्म उसके घर खुशियाँ लेकर आया.
अंकिता ने 2017 में एलएलबी और 2021 में एलएलएम किया. 2022 में वह सिविल जज के इग्जाम में चुन ली गई. अब उसके परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं है. अंकिता ने साबित किया कि मन में जज्बा हो तो आर्थिक अभाव और ज़िन्दगी की तमाम दिक्कतें पीछे छूट जाती हैं. अंकिता न सिर्फ मध्य प्रदेश के लिए बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का विषय है. जुबिली पोस्ट परिवार अंकिता के संघर्ष को सलाम करता है.
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