Saturday - 26 October 2024 - 9:00 PM

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- हिंदुओं को भी राज्य दे सकते हैं अल्पसंख्यक का दर्जा

जुबिली न्यूज डेस्क

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने बताया है कि जिन राज्यों में हिंदुओं की संख्या कम है वहां की सरकारें उन्हें अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं।

केंद्र सरकार ने कहा है कि ऐसा होने की स्थिति में हिंदू इन राज्यों में, अपने अल्पसंख्यक संस्थान स्थापित और संचालित कर सकते हैं।

अदालत में सरकार ने बताया कि जैसे महाराष्ट्र ने साल 2016 में यहूदियों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दिया गया था वैसे ही राज्य, धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकते हैं। कर्नाटक ने भी उर्दू, तेलुगू, तमिल, मलयालम, मराठी,तुलु, लमानी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती को अपने राज्य में अल्पसंख्यक भाषाओं का दर्ज दिया है।

सरकार ने कहा, “राज्य सरकारें ऐसे समुदायों के संस्थानों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दे सकती हैं।”

केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दाखिल कर ये जानकारी दी है।

एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय.

ये हलफनामा एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की उस याचिका के बाद दायर किया गया है जिसमें उन्होंने दावा किया था कि लदाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल, पंजाब और मणिपुर में यहूदी, बहाई और हिंदू धर्म के लोग अपने संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थान के तौर पर संचालित नहीं कर सकते।

यह भी पढ़ें :  Video: जब CM नीतीश कुमार को मुक्का मारने दौड़ा युवक और फिर…

यह भी पढ़ें :  महिला WORLD CUP : हार से टीम इंडिया का सपना टूटा, सेमीफाइनल से चूकी

यह भी पढ़ें :   क्या गुल खिलायेगा गुड्डू जमाली पर मायावती का यह दांव

केंद्र सरकार ने अपने हलफनामें में लिखा, “इन राज्यों में वे अपने शिक्षण संस्थानों को स्थापित और संचालित कर सकते हैं। अल्पसंख्यक के तौर पर पहचान के विषय में संबंधित राज्य फैसला कर सकते हैं।”

केंद्र सरकार ने कहा कि अल्पसंख्यक मंत्रालय का गठन का मकसद अल्पसंख्यकों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए किय गया था ताकि हर नागरिक राष्ट्र निर्माण में हिस्सा ले सके।

इसके अलावा केंद्र सरकार ने ये भी कहा कि सिर्फ राज्यों को अल्पसंख्यकों के विषय पर कानून बनाने का अधिकार नहीं दिया जा सकता क्योंकि ये संविधान और सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों के विपरीत होगा।

केंद्र ने कहा, “संविधान की आर्टिकल 246  के तहत संसद ने ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक्ट 1992’ को कानून बनाया है। अगर ये मान लिया जाए कि सिर्फ राज्यों को ही अल्पसंख्यकों के विषय में कानून बनाने का हक है तो संसद की शक्ति का हनन होगा और ये संविधान के खिलाफ है।”

केंद्र सरकार ने अपनी दलील में टीएमए पाई और बाल पाटिल के केसों का जिक्र किया।

पीआईएल में क्या कहा गया था?

उच्चतम न्यायालय में दायर अपनी याचिका में वकील अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट से कहा था कि वे केंद्र राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने के लिए निर्देश जारी करे क्योंकि दस राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन उन्हें अल्पसंख्यकों के लिए दी जानी वाली सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।

उपाध्याय की याचिका में कहा गया है, “कई धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक पूरे भारत में फैले हुए हैं। उन्हें किसी राज्य या केंद्र शासित राज्य में सीमित नहीं किया जा सकता है। ”

यह भी पढ़ें : राम रहीम ने जेल से लिखी अपने अनुयाइयों को चिट्ठी

यह भी पढ़ें : योगी की मुफ्त राशन योजना UP में 60% आबादी को कवर करती है

यह भी पढ़ें : राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसलिए पुतिन को एक कसाई बताया

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com