जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ / झांसी. पिछले डेढ़ सौ साल से झांसी के सय्यर गेट के पास काली बाड़ी मन्दिर में होने वाली दुर्गा पूजा हिन्दू-मुस्लिम एकता की प्रतीक बनी हुई है. इस पूजा को एक मुस्लिम परिवार ने ही शुरू किया था. इस परिवार के लोग खाड़ी देशों से पैसा कमाकर लौटे तो उन्होंने दुर्गा पूजा शुरू करने का फैसला किया.
मुस्लिम परिवार ने इस पूजा की शुरुआत अपने घर से ही की और हर साल इसका रूप बड़ा होता चला गया. अब इस पूजा की बागडोर बांधव समिति ने संभाल ली है लेकिन उस मुस्लिम परिवार का अभी भी इसमें पूरा दखल बना हुआ है. दुर्गा जी की मूर्ति का निर्माण यही मुस्लिम परिवार परम्परागत रूप से करता आ रहा है.
इस दुर्गा पूजा की शुरुआत 1861 में गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की जयन्ती पर हुई थी. मुस्लिम परिवार ने इसकी शुरुआत अपने घर से की थी लेकिन अब यह पूरी झांसी के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गई है. यह मुस्लिम परिवार बंगाली है इस नाते दुर्गा पूजा को लेकर इस परिवार में शुरू से ही लगाव है. खाड़ी देश से पैसा कमाया तो दुर्गा जी की पूजा शुरू की. अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा दुर्गा मन्दिर के लिए दान किया. धीरे-धीरे मन्दिर भी भव्य होता चला गया.
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अब्दुल खलीक की बनाई मूर्ति ही दुर्गा पूजा में रखी जाती रही है. अब्दुल खलीक की मौत हो गई तो यह ज़िम्मा उनके बेटे अब्दुल खलील को मिल गया. अब्दुल खलीक की तरह ही अब्दुल खलील भी मंझे हुए मूर्तिकार हैं. झांसी की इस दुर्गा पूजा की ख्याति हिन्दू-मुस्लिम एकता के रूप में फैली हुई है.